रेडियो सुनने से समय की बचत व बढ़ती है कल्पनाशीलता: डॉ श्रीवास्तव
—आपदा के समय सूचना का सबसे प्रभावी माध्यम है रेडियो
—आकाशवाणी दुनिया का सबसे बड़ा रेडियो नेटवर्क
—भारत की 99% जनसंख्या तक रेडियो की पहुंच
—वॉइस कल्चर से सुधर सकता है उच्चारण
आज के दौर में इंटरनेट क्रांति आने से युवाओं का ध्यान भले ही रेडियो की ओर कम पड़ता है। लेकिन, इसका महत्व आज भी कम नहीं हुआ है। अखबार, टीवी अथवा सोशल मीडिया के विपरीत रेडियो के उपयोग से समय की बचत होती है और रेडियो पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम सुनने से श्रोताओं की कल्पनाशीलता भी बढ़ती है। उक्त बातें शनिवार को आकाशवाणी पटना के वरीय कार्यक्रम अधिशासी व ‘विविध भारती’ पटना केंद्र के हेड डॉ. राजीव रंजन श्रीवास्तव ने कहीं। वे पटना कॉलेज के स्नातक जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित इंटरएक्टिव सेशन में बतौर मुख्य वक्ता छात्र-छात्राओं को संबोधित कर रहे थे। विषय था- ‘एआईआर: ए रेडियो फॉर एवरीवन।’
कार्यक्रम के दौरान डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि 2008 में कोसी में आई बाढ़ के दौरान आकाशवाणी के विशेष कार्यक्रम के माध्यम से उस क्षेत्र में बिछड़े हुए सैकड़ों लोगों को उनके परिवारों से मिलवाया। इसके अलावा समय-समय पर राहत और बचाव कार्य संबंधी सूचनाएं देकर लाखों लोगों की जान बचाने में सहायता की। उन्होंने कहा कि आज भी बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश आदि के मछुआरे जब अपनी नाव पर सवार होकर समुद्र में निकलते हैं, तो अन्य आवश्यक वस्तुओं के साथ एक रेडियो सेट जरूर रखते हैं। समुद्र तटीय इलाकों में बहुत सारे छोटे-छोटे रेडियो स्टेशन प्रसार भारती द्वारा बनाए गए हैं, जहां से मौसम संबंधी अद्यतन अपडेट हर घंटे प्रसारित किए जाते हैं। इसमें विशेष रूप से तूफान और वर्षा संबंधी सूचनाएं होती है। तटीय इलाकों में रहने वाले हर व्यक्ति को पता है कि तूफान आदि में बिजली ध्वस्त हो जाने से टीवी और इंटरनेट बाधित हो जाते हैं। लेकिन, उस आपदा के समय में त्वरित, तथ्यपरक और प्रामाणिक सूचना पाने का साधन सिर्फ रेडियो रहता है।
आकाशवाणी की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि आज भी देश के 95% भूभाग और 99% जनसंख्या तक इसकी पहुंच है। 15 विदेशी भाषाओं में 108 देशों में इसका प्रसारण होता है। सूचना समाचार के अलावा मनोरंजक और शैक्षिक कार्यक्रम भी आकाशवाणी के विभिन्न चैनलों द्वारा प्रसारित किया जाता है।
इसके अतिरिक्त डॉ श्रीवास्तव ने आकाशवाणी, विविध भारती और एफएम चैनलों की पृष्ठभूमि, प्रसारण प्रक्रिया और इन पर प्रसारित होने वाले विविध कार्यक्रमों की जानकारी दी और इसमें युवा किस प्रकार से अपना करियर बना सकते हैं, इसके विषय में भी सरल ढंग से बताया। उन्होंने रेडियो पर होने वाली क्रिकेट कमेंट्री, युवा वाणी कार्यक्रम के अलावा उद्घोषणा और समाचार वाचन के क्षेत्र के लिए किस प्रकार की योग्यता चाहिए और फिर कैसे आवेदन करना है, यह भी बताया। साथ ही उन्होंने बताया कि आवाज किसी की भी खराब नहीं होती, हमें बस उसे रेडियो प्रसारण योग्य बनाने के लिए व्यक्ति का ‘वॉइस कल्चर’ करना होता है। थोड़े से प्रशिक्षण और नियमित अभ्यास के बाद कोई भी व्यक्ति उच्चारण आदि सुधारकर अपनी आवाज को प्रसारण योग्य बना सकता है।
इस कार्यक्रम में पटना कॉलेज के स्नातक जनसंचार विभाग की समन्वयक डॉ. कुमारी विभा ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान कॉलेज बंद रहने के बावजूद ऑनलाइन कार्यक्रमों के माध्यम से विशेषज्ञों को बुलाकर छात्रों के साथ परस्परसंवादात्मक चर्चा आयोजित की जा रही है, जिससे उन्हें जनसंचार के विभिन्न आयामों के बारे में रोचक और उपयोगी जानकारी मिल रही है। जनसंचार विभाग के शिक्षक डॉ. सुभाष कृष्ण ने कार्यक्रम का संचालन किया, वहीं विभाग के शिक्षक डॉ. गौतम कुमार, मुदस्सिर सिद्दीकी, रचना सिंह और प्रशांत रंजन के अलावा स्नातक जनसंचार विभाग के तीनों खंडों के सौ से अधिक विद्यार्थियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।