प्रस्थानम : संजय दत्त का स्लो आगमन

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राजनीतिक फिल्में भारत में हमेशा से चलती आ रहीं हैं और ऐसी फिल्में लोगों को काफी पसंद भी आतीं हैं।
संजय दत्त प्रोडक्शन के बैनर तले आयी फ़िल्म प्रस्थानम भी एक राजनीतिक फ़िल्म है, जो कि 2010 में तेलुगू भाषा मे बनी प्रस्थानम का हिंदी रूपांतरण है।

फ़िल्म की कहानी MLA बलदेव प्रताप सिंह (संजय दत्त) के इर्दगिर्द घूमती रहती है। बाकी राजनीतिक फिल्मों की तरह इस फ़िल्म में भी मर्डर, मार, नेतागिरी, गुंडागर्दी, बंदूक, आइटम सॉन्ग, घर की लड़ाई के अलावा कुछ नही था।

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पहला हाफ फ़िल्म के किरदारों का परिचय देने में निकल जाता है, वहीं दूसरे हाफ में फ़िल्म में कुछ अच्छा देखने को मिलता है। फिल्म में काफी संघर्षपूर्ण दृश्य हैं और देव कट्टा (डायरेक्टर) ने उन्हें अच्छी तरह से निष्पादित किया है। खासतौर पर, प्री-क्लाइमेक्स में संजय दत्त और सत्यजीत दुबे के बीच का दृश्य शानदार है।

कुछ चीज़ें फ़िल्म में जबरदस्ती डाली गई सी लगती है, जैसे कि गानों का गलत जगह पर होना, फ़िल्म में अली फ़ज़ल और अमायरा दस्तूर का लव सीन।

संजय दत्त के लिए यह फ़िल्म प्रस्थानम नहीं, बल्कि आगमन साबित हो सकती है।
फ़िल्म में जैकी श्रॉफ (बादशाह, बलदेव प्रताप सिंह का वफादार सेवक) का शानदार रोल है, हालांकि स्क्रीन टाइम कम है।
वहीं, अली फ़ज़ल (आयुष, बलदेव प्रताप सिंह के सौतेले बेटे) एकलौते ऐसे किरदार है जिनका रोल पूरी तरह में फ़िल्म में जान डाल देता है।
फ़िल्म में ऐसा लगता है कि चंकी पांडेय (खत्री, बिजनेसमैन) बेगम जान और साहो के बाद से नकारात्मक किरदारों का आनंद ले रहे है।

फ़िल्म और बेहतर होती अगर शुरुआत थोड़ा फ़ास्ट और एंडिंग थोड़ी स्लो होती।

पोलिटिकल ड्रामा फ़िल्म देखनी पसन्द है, तो यह फ़िल्म आपके लिए ही है।

स्वत्व रेटिंग— 2.5/5*

(प्रेम कुमार पोद्दार)

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