नहीं चेते, तो बूंद—बूंद को तरसेंगे लोग, पढ़िए जलसंकट की पड़ताल करती रिपोर्ट

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पीने योग्य पानी लगातार कम होता जा रहा है। यही नहीं, हमारी लापरवाही के चलते समुद्र का जलस्तर भी लगातार बढ़ रहा है। पिछले साल जारी हुई एक रिपोर्ट बताती है कि देश के 16 राज्यों के भूजल में खतरनाक रसायन मौजूद हैं। देश में पीने के लिए भूजल का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है, ऐसे में देश की एक बड़ी आबादी के ऊपर खतरा मंडरा रहा है।

बिन पानी 90 शहर

देश में 90 से ज्यादा शहर ऐसे हैं जो बेपानी हो गए हैं। इनकी हालत अफ्रीका के केपटाउन से भी ज्यादा खतरनाक है। सालाना 250 अरब घन मीटर भूजल निकालने के साथ भारत दुनिया में सर्वाधिक भूजल इस्तेमाल करने वाला देश बन गया है। देश में भूजल के तकरीबन 16 ब्लॉक ऐसे हैं जो गंभीर स्थिति में हैं और जहां पानी का दोहन क्षमता से अधिक हो चुका है। बेंगलुरु में अतिक्रमण के चलते जल स्रोत 79 फीसद से अधिक खाली हो चुके हैं। बिल्ट-अप एरिया 77 फीसद तक बढ़ गया है। दो दशकों में जल निकालने के कुएं 5,000 से 4.50 लाख हो जाने के कारण भूजल स्तर 12 मीटर से गिरकर 91 मीटर पहुंच गया है। झीलों के लिए मशहूर बेंगलुरु, आज जीरो डे की त्रासदी के कगार पर आ पहुंचा है। तालों वाले शहर भोपाल की जलापूर्ति अपर्याप्त हो चली है। झीलों के समृद्धि पर टिका नैनीताल के पानी की गुणवत्ता संकट में है। देश में हिमाचल प्रदेश के शिमला सहित कई ऐसे जिले हैं जहां लोगों के दिन का एक बड़ा हिस्सा पानी की खोज में खप जाता है। सूडान में तो आज भी महिलाएँ पानी लेने के लिये 10-12 किलोमीटर तक की यात्रा तय करती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी अफ्रीका की महिलाएँ हर रोज अपनी 10-12 प्रतिशत शक्ति पानी लाने में ही खर्च करती हैं।

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औद्योगिकीकरण ने किया सत्यानाश

हमारे देश में जल प्रदूषण के पीछे औद्योगिकीकरण का भी हाथ है देश में विभिन्न उद्योगों में साफ पानी की खपत लगभग 600 करोड़ घन मीटर है। आने वाले दिनों में इसकी मात्रा लगभग पाँच गुना और इसके 25-30 साल बाद पच्चीस गुना बढ़ जाएगी। इसके अलावा पानी पर नन्हें कीटाणुओं का कहर इस हद तक है कि आज भूमिगत जल भी अछूता नहीं रहा। कुछ साल पहले विष विज्ञान अनुसन्धान केन्द्र, लखनऊ ने भूजल को लेकर एक वैज्ञानिक अध्ययन किया था। इस अध्ययन में चौंकाने वाली बात यह निकली कि ऐसे जल में कीटाणुओं की भारी संख्या होती है। उत्तर प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर भूजल से लिये गए नमूनों में अधिकांश में संक्रमण पाया गया। दिल्ली जल वितरण और मल व्ययन संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार उथले हैण्डपम्प या कम गहराई पर लगाए गए हैण्डपम्प आपको पानी के सहारे रोग दे रहे हैं। दिल्ली जैसे शहर में भी हैण्डपम्प की गहराई कम-से-कम 150 फुट होना जरूरी है। इसमें कम दूरी पर लगाया गया हैण्डपम्प पानी के साथ रोगाणु लिये हुए होता है।

21 शहरों में भूजल स्तर शून्य हो जाएगा

इस समय हर कोई आते-जाते सबसे पहले अपने साथ पानी ही लेकर चलता है। यह इस बात का एहसास दिलाने के लिए काफी है कि हमारे चारों ओर जल की कमी होती जा रही है। जल का धीरे-धीरे उड़ जाना और छाया की कमी गर्मी के एहसास को बहुत ज्यादा बढ़ा देती है। अगर ऐसे ही जल संकट जारी रहा, तो वर्ष 2020 तक, भारत के 21 शहरों में भूजल स्तर शून्य तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 100 मिलियन लोगों के लिए पानी की पहुंच को प्रभावित करेगा |

भूजल दोहन पर लगाम लगे

बरसात के बाद के सभी जलस्रोत भूजल पर निर्भर होते हैं। हम यह भी जानते हैं कि धरती में भूजल का संचय स्थानीय भूगोल और धरती की परतों की पानी सहेजने की क्षमता पर निर्भर होता है। बरसात भले ही धरती की गागर भर दे, पर जब भूजल का दोहन प्रारंभ होता है, तो सारा गणित धरा का धरा रह जाता है। भूजल स्तर के घटने के कारण धरती की उथली परतों का पानी खत्म हो जाता है। उस पर निर्भर झरने और जल स्रोत सूख जाते हैं। चूँकि भूजल का दोहन हर साल लगातार बढ़ रहा है इस कारण धीरे-धीरे गहरी परतें भी रीतने लगी हैं।

कितना सुंदर होता है, जब हम किसी किनारे से अपार जलराशि को देखते हैं। हमें न केवल आंखों को सुकून मिलता है, बल्कि ठंडक और राहत भी मिलती है। जल की उपलब्धता अनवरत बनी रहे, इसके जरूरी है कि हम अपने भूजल को संरक्षित करने के लिए संकल्प लें। इस बरसात वर्षा के जल को संचय कर एक प्रशंसनीय पहल कर सकते हैं।
(वंदना कुमारी)

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