पटना : ‘नाच कांच बा, बात सांच बा।’ यह कहावत भिखारी ठाकुर द्वारा नाटक मंचन के दिनों कहा जाता था। हमारे लोकगीतों में जो कहानियां निहित थीं, उसको भिखारी ठाकुर ने नाटक के माध्यम से लोगों के सामने लाया। बिदेशिया की सामग्री भिखारी के पहले भी मौजूद थी। उनकी कई कृतियों में समय के साथ पररिवर्तन होते गए। जैसे बिदेसिया और बेटी बेचवा के शीर्षक में भी बदलाव आए। उक्त बातें तैयब हुसैन पीड़ित ने बुधवार को कहीं। वे बिहार संग्रहालय में भिखारी ठाकुर की पुण्यस्मृति में आयोजित ‘बिहारनामा’ कार्यक्रम में बोल रहे थे। भिखारी ठाकुर पर शोध कर चुके तैयब हुसैन पीड़ित ने कहा कि भिखारी ठाकुर नाई समाज से थे। औरतें अपने मन की बात नाई के माध्यम से मायके या परदेश में काम कर रहे अपने पति के पास पहुंचाती थीं। ऐसे में महिलाओं की व्यथा को भिखारी सहज और गहन रूप में रखा।
कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठ रंगकर्मी ऋषिकेश सुलभ ने भिखारी के कृतियों की चर्चा करते हुए कहा कि पहले बिदेसिया बहुत लोकप्रिय था, आजकल गोबरघिचोर ज्यादा लोकप्रिय है, क्योंकि वह आज का नाटक है। भिखारी ने उसे समय से पहले रच दिया था। स्त्री स्वतंत्रता पर 21वीं सदी में हो रहे विमर्श के आलोक में गोबरघिचोर प्रासंगिक है।
नॉर्वे में चिकित्सक और कुली लाइंस पुस्तक के लेखक डॉ. प्रवीण झा ने हिंदुस्तानी संगीत में बिहार के योगदान की चर्चा की। आयोलन आखर की ओर से किया गया था। इस अवसर पर आखर टीम के निराला, यशवंत मिश्र, नबीन कुमार, नवीन सिंह परमार समेत बिहार और देश के कोने—कोने से आए रंगकर्मी, साहित्यकार, संगीतकार, छात्र—छात्राएं उपसिथत थीं।