माहवारी पर चुप्पी जानलेवा, इसलिए चुप्पी तोड़ें

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पटना : महिला से ही इस सृष्टि का अस्तित्व है। माहवारी या मासिकधर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसपर हायतौबा मचाने का कोई कारण नहीं है। बअ समय आ गया है कि कुदरत के इस तोहफे पर चुप्पी तोड़ी जाए और खुलकर बातें की जाए। उक्त बातें सोमवार को डॉ. उषा झा ने कहीं। वे तरुमित्र में अंतरराष्ट्रीय मेंस्ट्रुअल डे की पूर्व संध्या पर आयोजित विमर्श को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत हमें अपने घरों से करना चाहिए।

संत जेवियर कॉलेज में अंग्रेज़ी विभागाध्यक्ष डॉ. मैरी डिक्रूज़ ने कहा कि आज हम जैसी शिक्षित व शहरी महिलाओं को सेनेटैरी नैपकिन आंचल में छुपाकर या कागज में लपेट कर ले जाना पड़ता है। आश्चर्य की बात है कि सेनेटरी नैपकिन देखकर पुरुष असहज हो जाते हैं। इस मानसिकता को बदलना होगा। माहवारी से संबंधित रोग होने पर भी महिलाएं खुलकर कह नहीं पाती हैं। आवश्यकता है कि पीरियड्स के मामलों पर घर के पुरुष सदस्यों से भी स्पष्ट वार्ता हो।

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दूरदर्शन के लिए कार्य कर चुके शंभू प्रसाद ने कहा कि अगर हम अपने घरों में पुरुष सदस्यों से खासकर किशोरों से खुलकर बातें करें। माहवारी को लेकर छिपाने जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए। सीटू तिवारी ने कई उदाहरणों द्वारा यह बताया कि गांवों में महिलाएं भूसे, गोइठे या राख का इस्तेमाल करती हैं, जिसके कारण वे बीमार पड़ती हैं। माहवारी को लेकर अनावश्यक चुप्पी जानलेवा भी हो सेकती है।

चुप्पी तोड़ो अभियान की स्वाति ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि देहात की कौन कहे मुंबई और बैंगलोर जैसे महानगरों में भी पीरियड्स से गुजर रही महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। आधुनिक स्कूलों में पढ़ी महिलाएं भी बेबस हैं। इस मामले में महिलाएं ही महिलाओं की आजादी में बाधक हैं।

चुप्पी तोड़ो अभियान के संस्थापक डॉ. शंभू कुमार सिंह ने सेनेटरी नैपकिन के प्रयोग को लेकर बताया कि प्लास्टिक से बने नैपकिन पर्यावरण के लिए खतरनाक है। इसी को ध्यान में रखकर सेमी—डिग्रेडेबल सामग्री से पैड तैयार किए जा रहे हैं। इन पैड्स की खासियत है कि अन्य पैड की तुलना में ये अधिक समय तक कार्य करते हैं। इस दौरान डॉ. सिंह ने एक नैपकिन का डेमो भी दिखाया कि जेल व स्पेशल फैबरिक से बने होने के कारण यह 150 मीली तक श्राव को सोख सकता है।
इस अवसर पर शार्प माइंड स्कूल के प्राचार्य निर्मल मिश्रा, तरुमित्र की देवोप्रिया, मूर्तिकार हिम्मत शाह समेत शहर के दर्जनों बुद्धिजीवी, टेराकोटा व फोटोग्राफी के छात्र—छात्राएं उपस्थित थीं।

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