लेख्य-मंजूषा : पहले निशब्द होती हूँ, फिर शब्द बुनती हूँ

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पटना : पहले निशब्द होती हूँ, फिर शब्द बुनती हूँ। तब शब्दों को पिरोना होता है उक्त बातें डॉ.अनीता राकेश ने रविवार को लेख्य-मंजूषा के त्रैमासिक कार्यक्रम में कहीं।
मंच से 8 वर्षीय आरव श्रीवास्तव की रचना पर प्रकाश डालते हुए डॉ. अनीता राकेश ने कहा कि साहित्य के प्रति सही मायने में जागरूक कर रही है कि आठ साल के बच्चे की रचना भी समा बाँध जाती है। लेख्य-मंजूषा अपने सफर में वहां पहुँच चुकी है, जहाँ अब उन्हें जज करने की आवश्यकता नहीं दिखाई देती है। सारे सदस्यों की रचना पकी हुई दिखाई देती है।
वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने गद्य कार्यक्रम पर गद्य विद्या के तमाम स्वरूप के बारे में सबको बताया।
रायपुर से उपस्थित लेखिका कंचन सहाय ने लेख्य-मंजूषा का धन्यवाद दिया। सदस्यों की रचना पर गुण दोष पर प्रकाश डाला।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. सी.बी.सिंह ने कहा कि लेख्य-मंजूषा की आज की रचनाओं को आज सुनकर मैं बहुत कुछ लेकर जा रहा हूँ। इसकी तुलना नहीं की जा सकती है। लेख्य मंजूषा के त्रैमासिक कार्यक्रम के तहत जून के पहले रविवार को गद्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के तौर पर हिंदी व भोजपुरी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी, जय प्रकाश नारायण विश्विद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अनीता राकेश और रायपुर से उपस्थित शिक्षिका व साहित्यकार कंचन सहाय थी।

कार्यक्रम की शुरुआत सभी अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर के किया गया। तदोपरांत सभी अतिथियों का स्वागत सम्मान लेख्य-मंजूषा के सदस्यों द्वारा किया गया। इसके बाद सभी सदस्यों ने अपनी रचनाओं का पाठ किए।
कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय कृष्णा सिंह जी, कल्याणी कुसुम, मधुरेश नारायण इत्यादि उपस्थित थे।
मंच संचालन की जिम्मेदारी संस्था के उप सचिव संजय कुमार सिंह जी ने किया।
धन्यवाद ज्ञापन नूतन सिन्हा ने किया।

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