लघुकथा के पर्याय थे लाहौर में जन्मे सतीशराज पुष्करणा

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डॉ. सतीशराज पुष्करणा को श्रद्धांजलि देने के लिए लेख्य-मंजुषा के कार्यक्रम में उपस्थित साहित्यप्रेमी

पटना : “लघुकथा आंदोलन की शुरुआत करने वाले डॉ. सतीशराज पुष्करणा पटना में मेरे पड़ोसी हुआ करते थे। मैंने उनसे साहित्य के अनेक विधाओं के बारे में सीखा, लेकिन लघुकथा नहीं लिख पाया। इसके पीछे की प्रेरणा भी डॉ. सतीशराज पुष्करणा ही थे। वह हमेशा कहते थे जिस विधा में रुचि हो उस विधा में खुद को पारंगत करो।” रविवार को उक्त बातें वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अवधेश प्रीत ने लेख्य-मंजूषा एवं अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के संयुक्त तत्वाधान आयोजित कार्यक्रम ‘शब्दांजलि’ में कहीं। ‘शब्दांजलि’ कार्यक्रम पटना के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए किया गया था।

लेख्य-मंजूषा के उपसचिव अभिलाष दत्ता ने इस संबंध में बताया कि विगत 28 जून 2021 को सतीशराज पुष्करणा का निधन दिल्ली में उनकी बेटी के आवास पर हो गया था। वे 75 वर्ष के थे। पटना के आर ब्लॉक के इंजीनियर्स भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में लघुकथा के पितामह डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी को याद करते हुए अवधेश प्रीत ने बताया कि पुष्करणा जी पटना में जहाँ रहते थे उस जगह का नाम ही उन्होंने “लघुकथा नगर” कर दिया था। उनके यहाँ आने वाली हर चिट्ठी पर यही पता अंकित रहता था। अवधेश जी ने लघुकथा के क्षेत्र में कार्य करने वालों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आने वाले दिनों लघुकथा का इतिहास पुष्करणा से पहले और पुष्करणा के बाद का विमर्श होना चाहिए।

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कार्यक्रम की शुरुआत में हॉल में उपस्थित सभी लोगों ने पुष्करणा जी के तस्वीर पर पुष्प चढ़ाए और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

इस मौके वरिष्ठ पत्रकार डॉ. ध्रुव कुमार भी उपस्थित थे। वह एक ज़माने में डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी के शिष्य हुआ करते थे। पुष्करणा जी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ लोगों का काम इतना बोलता है कि उनका काम ही उनकी पहचान बन जाती है। कुछ ऐसा ही हाल पुष्करणा सर का भी था। उनका नाम सुनते ही लघुकथा दिमाग में आता था और लघुकथा का नाम सुनते ही पुष्करणा सर का नाम दिमाग में आता था। यानी लघुकथा व पुष्करणा जी एक दूसरे के पर्याय हो गए थे।

पुष्करणा जी के जीवन यात्रा के बारे में बताते हुए डॉ. ध्रुव कुमार ने बताया कि पुष्करणा जी का पटना आगमन सन 1964 में हुआ था। वह मूल रूप से राजस्थान पुष्कर के रहने वाले थे। लेकिन, उनका जन्म लाहौर पाकिस्तान में हुआ था। पटना में रहते हुए साहित्यकार हरिमोहन झा (मैथिली साहित्यकार) के संपर्क में आने के बाद वे लघुकथा के क्षेत्र में कार्य करना शुरु कर दिए। हालांकि हिंदी साहित्य में उनकी शुरुआत कविता, गजल व कहानियों से हुई थी। लघुकथा को हिंदी साहित्य के मुख्यधारा से जोड़ने के लिए पुष्करणा सर ने “अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच” की स्थापना की थी, जिसमें बाद में उन्होंने मुझे भी जोड़ लिया था। लघुकथा के क्षेत्र में वह इतने समर्पित थे कि उन्होंने पचास सालों में सोलह सौ से अधिक लघुकथाओं की रचना की। अपने जीवनकाल में उन्होंने नब्बे किताबों को लिखा।

डॉ. ध्रुव कुमार ने अपनी बातों को विराम देते हुए कहा कि अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच से उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि आगामी वर्षो में लघुकथा मंच के वार्षिक कार्यक्रमों में एक नए सम्मान “डॉ. सतीशराज पुष्करणा शिखर सम्मान” से हर वर्ष दो लोगों को सम्मानित किया जाएगा।

शब्दांजलि कार्यक्रम में उपस्थित विदुषी प्रो. अनीता राकेश ने पुष्करणा जी श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि लघुकथा के क्षेत्र में पुष्करणा जी शिखर हैं। उनके बनाये गए सिद्धांत “ज्योत से ज्योत जलाए चलो” का निर्वहन उनके बाद भी करते रहना होगा।

आभा रानी अपने आसुंओ को संभालते हुए कहा कि पुष्करणा जी लाहौर से आये थे। लेकिन वह पटना बिहार को अपना और पटना ने उन्हें अपना बना लिया था। वह कभी भी पटना छोड़कर नहीं जाना चाहते थे।

कार्यक्रम के अंत में लेख्य-मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा कि पुष्करणा जी की याद कभी नहीं खत्म होगी। उनकी लिखी हर रचना हमेशा सबको मार्गदर्शन करती रहेगी।

आज के कार्यक्रम में उपस्थित लेख्य-मंजूषा और अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के सभी सदस्य डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी को अपनी श्रद्दांजली अर्पित करते हुए उनकी लिखी एक-एक लघुकथा का पाठ किया।

कार्यक्रम के अंत में डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी के याद में दो मिनट का मौन रखा गया।

 

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