जादूगरी या साधना? क्या है पं. धीरेंद्र शास्त्री के चमत्कारों का रहस्य?
योगियों के चमत्कारों का गूढ़ार्थ समझे बिना किसी का आकलन उचित नहीं
किशोर कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)
भारत के महान संतों और योगियों ने कभी योग विद्या की बदौलत चमत्कार दिखाए जाने का समर्थन नहीं किया। पर यह भी सही है कि योग और अध्यात्म की विश्वसनीयता बताने या अपने संकटग्रस्त शिष्यों के कल्याण के लिए चमत्कारिक प्रभाव उत्पन्न करने वाली योग-शक्ति का प्रयोग किया जाता रहा है। आदिगुरू शंकराचार्य से लेकर तैलंग स्वामी और स्वामी शिवानंद सरस्वती तक ने अनेक मौकों पर अपनी योग-शक्ति से वैसे कार्यों को संभव कर दिया, जो सामान्य जनों की नजर में किसी चमत्कार से कम न थे।
यह बहस का विषय हो सकता है कि बागेश्वर धाम सरकार और हनुमान भक्त धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के “चमत्कारों” की तुलना हाथ की सफाई दिखाने वाले सामान्य जादूगरों से की जानी चाहिए या नहीं। सच तो यह है चमत्कार जादूगर भी दिखाते हैं और योगी भी। पर दोनों चमत्कारों के कारण में बुनियादी फर्क है। मुझे नहीं मालूम कि धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री किस श्रेणी में आते हैं। पर वे भरी सभाओं में अपने अनुयायियों के कष्ट निवारण के लिए जो तरीके अपनाते हैं, जिन्हें चमत्कार कहा जा रहा है, वे तरीके कोई अनूठे और नए नहीं हैं। स्वामी विवेकानंद ने तो आज से कोई 122 साल पहले अमेरिका के लॉस एंजिल्स में भरी सभा में कहा था कि हम योगियों की जिन क्रियाओं को चमत्कार कहते हैं, वह कुछ और नहीं, बल्कि राजयोग का परिणाम होता है।
स्वामी विवेकानंद ने उसी सभा में अपने साथ घटित एक वाकया सुनाया था। उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के बारे में पता चला, जो किसी के भी मन के गुप्त प्रश्नों को जान लेता था और उसे कागज पर लिखकर समाधान भी बता देता था। उन्होंने उस व्यक्ति की परीक्षा लेने की ठानी। वे दो अन्य सहयोगियों के साथ उस व्यक्ति के पास गए। स्वामी जी का सवाल संस्कृत भाषा में और उनके सहयोगियों के सवाल क्रमशरू ऊर्दू और जर्मन भाषा में थे। आसन पर बैठा व्यक्ति स्वामी जी को देखते ही कागज पर कुछ लिखा और उन्हें थमाकर पूछा, यही सवाल है न मन में? स्वामी जी का कहना था कि उन्होंने संस्कृत की जो पंक्तियां मन में बनाई थी, वही हू-ब-हू उस व्यक्ति द्वारा लिखित कागज पर थी। ऐसा ही बाकी दो सहयोगियों के साथ भी हुआ। कमाल यह कि वह व्यक्ति न संस्कृत जानता था, न ऊर्दू और न ही जर्मन। विवेकानंद समग्र में इस प्रसंग उल्लेख है।
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की तरह ही श्री पंडोखर महाराज भी हनुमान भक्त हैं। उनका धाम मध्य प्रदेश के दतिया जिले के पंडोखर गांव में है। विभिन्न दिशाओं से झांसी जाने वाली ट्रेनें पंडोखर महाराज के भक्तों से भरी होती हैं। वे भी अपने धाम में आए भक्तों के मन में चल रहे सवाल बिना बताए ही जान लेते हैं और उसे पर्चियों पर लिख भी देते हैं। फिर परेशानियां दूर करने के उपाय बतलाते हैं। मैं एक व्यक्ति को जानता हूं, जो अपनी समस्या के निवारण के लिए पंडोखर धाम गए थे। दरबार में बैठे थे तो पंडोखर महाराज की नजर उन पर गई और पास बुला लिया। वह सज्जन यह देखकर हैरान थे कि उनके मन में जो सवाल चल रहा था, उसे पंडोखर महाराज ने पहले से एक पर्ची पर लिख रखा था।
महान संत और हनुमान भक्त नीम करोली बाबा तो विश्वविख्यात हैं। उनके कैंचीधाम आश्रम में देश-विदेश की बड़ी-बड़ी हस्तियां भी जाती रहती हैं। बाबा के चमत्कार की किस्से भरे पड़े हैं। एक वाकया बहुप्रचारित है। बाबा ट्रेन से सफर कर रहे थे। पर उनके पास टिकट नहीं थी। नीम करोली गांव के पास ट्रेन किसी करण से जैसे ही रूकी, टिकट परीक्षक ने उन्हें ट्रेन से उतार दिया। पर बेवजह ट्रेन वहीं ठहर गई। ड्राइवर और तकनीशियनों की सारी कोशिशें बेकार गईं। तब किसी के मन में ख्याल आया कि शायद ट्रेन से उतार दिए गए बाबा की शक्ति से ट्रेन का पहिया थम गया हो। जब उन्हें ट्रेन पर चढ़ाया गया तो ट्रेन चलने लगी थी। बाद में उस जगह पर स्टेशन बना और उसका नाम बाबा के नाम पर रखा गया।
सदियों से मान्यता रही है कि मानव अस्तित्व के पीछे कोई रहस्यमय शक्ति छिपी है। प्राचीन काल के ऋषियों और योगियों से लेकर आधुनिक युग के वैज्ञानिक संत तक अपनी साधनाओं, अपने अनुसंधानों से इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मानव के विचारों की उत्पत्ति व चेतना के विकास में सहायक रहस्यमय शक्ति का विवेचन सैद्धांतिक रूप से नहीं किया जा सकता है। यह अनुभवगम्य है। योग विज्ञान, मुख्यतरू इसकी तांत्रिक क्रियाएँ उस अनुभव तक पहुंचाने का साधन हैं। जादू-टोना तो तंत्र का विकृत रूप है।
प्राचीन काल से योगी महसूस करके रहे हैं कि मन अविच्छिन्न है, विश्वव्यापी है और मानव विश्वव्यापी अविच्छिन्न मन का अंग है। इसी अविच्छिन्नता के कारण दूसरे के विचारों को जानना या अपने विचार को संप्रेषित करना संभव हो पाता है। पर सूक्ष्म रूप में घटित घटना का परिणाम बाह्य आकार मिले बिना दिखता नहीं। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि इन सूक्ष्म शक्तियों पर काबू करके या काबू करने की प्रक्रिया में भी चमत्कारिक प्रभाव पैदा किए जाते हैं। बीमारियों से निजात दिलाने में मदद भी मिलती है।
तुलसीदास कृत रामचरित मानस पर भी वाद-विवाद चलते रहता है। पर मानस के सुंदरकांड के प्रारंभ में ही हनुमान जी का पंचदशाक्षक मंत्र लिखा है। अनेक संतों और योगियों का अनुभव है कि उनकी सिद्धियों में पंचदशाक्षक मंत्र ने उत्प्रेरक का काम किया। खुद तुलसीदास कहते हैं कि उन्हें पंचदशाक्षक मंत्र के साथ हनुमान जी के पूजन से सिद्धियां मिली थीं। तंत्र और मंत्र के अलावा योग की अन्य विद्याएं जैसे, स्वरयोग विद्या, प्राण विद्या आदि की शक्तियां भी आमजन की नजर में चमत्कार ही पैदा करती है। योगी इन यौगिक विद्याओं के जरिए अपनी चेतना का विस्तार करके जनकल्याण करते रहे हैं।
प्राण चिकित्सा में उपचारक अपने हाथों के माध्यम से ब्रह्मांडीय प्राण ऊर्जा को ग्रहण कर हाथों द्वारा रोगी में ऊर्जा प्रक्षेपित करता है। स्वरयोग तो मस्तिष्क श्वसन का तांत्रिका विज्ञान है। पर सामान्य मामलों में इसका प्रभाव भी गजब है। यदि योगी का श्वास दायी नाक से चल रहा हो और प्रश्नकर्ता दाहिनी ओर से सवाल करे कि क्या अमुक काम हो जाएगा, तो उसका उत्तर “हां” में होगा। शिव स्वरोदय के मुताबिक इस योग से वाक् सिद्धि होने पर मुंख से निकली बात घटित हो जाती है।
शक्तिपात योग बेहद शक्तिशाली है। अनेक योगी और महात्मा आज भी हमारे बीच मौजूद हैं, जिन्हें उनके गुरूओं ने शक्तिपात के जरिए योग और आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर किया। ऋषिकेश के स्वामी शिवानंद सरस्वती ने अपने शिष्य परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती को शक्तिपात के जरिए ही योग का ज्ञान कराया था। इसलिए योगियों के आंतरिक जागरण की गहराई कोई ज्ञानी ही समझ सकता है। योगियों का गूढ़ ज्ञान सामान्य दृष्टि वालों की समक्ष से परे है।
(साभार: www.ushakaal.com)