हिंदी पर सुंदर बिंदी लगाता सिनेमा

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हिंदी दिवस विशेष

हिंदी फिल्मों ने हिंदी भाषा का क्षितिज विस्तार किया है

प्रशांत रंजन
परामर्शदातृ समिति सदस्य
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड

करीब चार वर्ष पहले की बात है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनवरी-2019 में मुंबई स्थित ’नेशनल म्युजियम आॅफ इंडियन सिनेमा’ का उद्घाटन करने के बाद समारोह को संबोधित कर रहे थे। उस दौरान प्रधानमंत्री ने एक घटना की चर्चा की। एक बार वे दक्षिण कोरिया गए थे। वहां के राष्ट्रपति ने भोज दिया। उस दौरान वहां के बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। उन्हें आश्चर्य हुआ कि कोरियन बच्चों ने प्रसिद्ध हिंदी गाना ’हाथी मेरे साथी’ पर डांस किया। वे गाने का अर्थ नहीं जानते थे। लेकिन, गाना हर बच्चे को याद था। प्रधानमंत्री ने दूसरी घटना इसराएल की सुनाई। वहां के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतान्याहू के साथ रात्री भोजन कर रहे थे। नेतान्याहू ने उन्हें राज कपूर की फिल्म ’श्री420’ का मशहूर गाना ’इचक दाना, बिचक दाना’ गाकर सुनाया। उन्हें भी इसका अर्थ मालूम नहीं था। लेकिन, गाना पूरा याद था।

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ऊपर की घटना का जिक्र करने का उद्देश्य इतना भर है कि हम इस बात को समझें कि फिल्मों ने बड़े ही रुचिकर ढंग से हिंदी भाषा का प्रसार किया है। आज अगर यूरोप, अमेरिका या मध्यपूर्व में लोेग थोड़ी बहुत हिंदी जानते-बोलते हैं, तो इसमें सबसे अधिक योगदान हिंदी सिनेमा का है। सउदी अरब से लेकर मलेशिया तक लता मंगेशकर के प्रशंसक हैं। रूस में ’मेरा जूता है जापानी, पतलून इंगलिशतानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुुस्तानी’ गाना वहां की हर पीढ़ी के युवाओं की जुबान पर रहता है। अरब देशों के लोग लता मंगेशकर के गाये गानों को पूरी शिद्दत से सुनकर आनंदित होते हैं।

हिंदी फिल्मों को विदेशों में पहले सिर्फ अप्रवासी भारतीय (एनआरआई) ही देखते थे। लेकिन, जब से हिंदी फिल्मों ने विश्वस्तरीय तकनीक के साथ अर्थपूर्ण कहानी को प्रस्तुत करना शरू किया है, तो इसका परिणाम है कि अब अरब, दक्षिण-पूर्व एशिया, यूरोप व अमेरिका के मूल लोग भी इन फिल्मों को देखते हैं। अधिकतर जगहों पर हिंदी फिल्मों को अंग्रेज़ी या वहां की भाषा के सब-टाइटल के साथ दिखाया जाता है। लेकिन, संवाद फिल्म की मूल भाषा में ही होता है। विदेशी दर्शक का सारा ध्यान भले ही सब-टाइटल पढ़ने पर रहता है। लेकिन, हिंदी फिल्म देखने के क्रम में वह फिल्म की मूल भाषा यानी हिंदी को भी सुनता है। कई बार ऐसा होने पर अनायास ही उसका परिचय हिंदी के शब्दों से हो जाता है। इसका प्रमाण आप यूरोप की सड़कों पर घूमते हुए देख सकते हैं। रूसी, अंग्रेज, जर्मन, इतालवी, स्पैनिश या फ्रांसीसी लोगों से जब मिलेंगे, तो आपके भारतीय होने के बारे में जानते ही वे आपको नमस्ते या प्रणाम कहेंगे। बातचीत के क्रम में वे आपसे चाय, मसाला, बाज़ार, शादी, बेटी, भाई, बिंदी, साड़ी, गाना, दिवाली, शिव अथवा योग आदि शब्दों की चर्चा करेंगे। वे भारत आए बिना भी इतने शब्द हिंदी शब्द जानते हैं। कैसे? यही तो फिल्मों का भाषायी प्रभाव है।

आज का भारतीय समाज पाश्चात्य आधुनिकता एवं प्रांजल भारतीयता के संक्रमणकाल में रह रहा है, जहां अंग्रेज़ी का वर्चस्व सर्वविदित है। महानगरों में पल रहे बच्चों पर अंग्रेज़ी लिखने, बोलने, पढ़ने, ओढ़ने, बिछाने का दबाव है। ऐसे में अपनी भाषायी धरोहर को संरक्षित एवं सवंर्धित करने में भारतीय सिनेमा की भूमिका बढ़ जाती है। अंग्रेज़ियत ओढ़े बच्चा भी फिल्मी संवादों के बहाने हिंदी को अपनी जुबान पर जिंदा रखता है। यही कारण है कि भारत के गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों के युवा थोड़ी-बहुत हिंदी बोलते हैं, तो इसमें हिंदी फिल्मों का अहम योगदान है।

सिनेमा के इस भाषायी आयाम का दूसरा पहलू भी है। हिंदी भाषी क्षेत्र के भारतीय बच्चों पर गलाकाट प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए अंग्रेज़ी सीखने का दबाव है। इस काम में अंग्रेज़ी फिल्में उनकी मदद कर रही हैं। खासकर स्पीकिंग इंगलिश सिखाने वाले संस्थान अपने विद्यार्थियों को अंग्रज़ी भाषा में बनीं फिल्में देखने की सलाह देते हैं। टाॅम हैंक्स स्टारर ’फाॅरेस्ट गम्प’ (1994), वाल्ट डिज़नी की ’टाॅय स्टोरी (1995) और ’टेन थिंग्स आई हेट अबाउट यू’ (1999) ऐसी अमेरिकी फिल्में हैं, जिन्हें देखकर बोलचाल की अंग्रेज़ी भाषा से परिचित हुआ जा सकता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि संचार का सबसे प्रभावी माध्यम सिनेमा हिंदी भाषा को गैर-हिंदी क्षेत्रों में प्रचारित कर एक प्रकार से हिंदी के माथे पर सुंदर बिंदी लगाने का कार्य कर रहा है।

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