“घर के अंदर ही माँ पूरी पाठशाला है”। उक्त पंक्तियां जानेमाने साहित्य मर्मज्ञ डॉ. नीरज कृष्णा जी ने साहित्यिक संस्था लेख्य मंजूषा, पटना के त्रैमासिक कार्यक्रम “मातृ दिवस: हर पल नमन” के अवसर में कही। अपने व्यक्तव में डॉ. नीरज कृष्ण ने मंच से कहा कि माँ हमारे जीवन का अस्तित्व है। माँ के लिए तो पूरा जीवन कम पड़ जाता है। हमारा हर दिन माँ के लिए होता है।
मुख्य अतिथि के तौर पर वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने अपने लेख्य मंजूषा की पत्रिका “साहित्यक स्पंदन” में प्रकाशित स्वर्गीय प्रेमचंद जी की रचना ईदगाह पर रोशनी डालते हुए कहा कि अगर आज हर इंसान खुद को हमीद बना ले तो वृद्धाश्रम की जरूरत नहीं पड़ेगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार व लघुकथा के पितामह डॉ. सतीशराज पुष्करणा ने इस मौके पर कहा कि आज की सभी रचना माँ को समर्पित थी। आज के दिवस किसी की रचना को जज नहीं किया जा सकता है। जो बातें आज रचना में सुनने को मिली है उसे हमें अपने जीवन मे आत्मसात करना चाहिए।
लेख्य- मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा कि मैं एक माँ हूँ, स्त्री जब माँ बनती है तो जीवन पर माँ ही बन कर रह जाती है। संस्था के सभी सदस्य मुझे माँ कह कर ही सम्बोधन करते हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए पहले दीप प्रज्वलित करने के बाद, साहित्यिक स्पंदन पत्रिका का लोकार्पण किया गया।
मौके पर महशूर गजलकार समीर परिमल ने चुनावी दौर पर व्यंग्य करते हुए अपनी कविता का पाठ करते हुए कहा कि एक वोट के दम पर सरकार बदलता हूँ। कार्यक्रम में निलंशु रंजन, आयाम संस्था के अध्यक्ष गणेश जी भागी, समाजसेवी रेशमा प्रसाद जी उपस्थित थी। मंच संचालन ईशानी सरकार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन रवि श्रीवास्तव ने किया।
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