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देश की रागात्मक एकता को स्थापित करती है हिंदी, पत्रिका ‘नया भाषा भारती संवाद’ का विमोचन

पटना : हिंदी देश की रागात्मक एकता को स्थापित करती है। भारत को उसकी इस शक्ति को पहचानना चाहिए। जो लोग इस बात को नहीं समझना चाहते हैं, वे राष्ट्र का नुक़सान कर रहे हैं। भारत को यदि एक सूत्र में यदि कोई भाषा बाँध सकती है, तो वह हिन्दी है। यह भ्रांति और मिथ्या प्रचार है कि इसकी उन्नति से भारत की अन्य भाषाओं का अहित होगा, या हिन्दी थोपी जा रही है। हिन्दी के उन्नयन से किसी भी अन्य भारतीय भाषाओं का अहित नहीं हो सकता। बल्कि इससे भारतीय भाषाओं के बीच आत्मीय संबंधों का विकास ही होगा। संपूर्ण भारत के लोग भाषा-बंधन के विकारों से मुक्त होकर एक दूसरे के निकट होंगे और एक सुदृढ़ राष्ट्रीय विचार सुनिश्चित करने में सफल होगे।

बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन और भारतीय भाषा-साहित्य समागम के संयुक्त तत्वावधान में साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका ‘नया भाषा भारती संवाद’ के 20वें वर्ष के चौथे अंक के विमोचन के अवसर पर, आयोजित समारोह का उद्घाटन करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने उक्त विचार वयक्त किए। ड़ा सुलभ ने कहा कि भाषा भारती संवाद, पूरे देश में हिन्दी के लिए संवाद स्थापित कर रही है। इसमें देश भर के साहित्यिक-समाचार ही नहीं, रचनात्मक-साहित्य,शोध और समीक्षा के लिए भी समुचित स्थान दिए जा रहे हैं।

पत्रिका के प्रधान सम्पादक नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि इस पत्रिका के दीर्घ-जीवी और नियमित रहने का बड़ा कारण सम्पूर्ण भारतवर्ष के विद्वान साहित्यकारों क़ा सहयोग और आशीर्वाद है। पूरे देश में इसकी पहुँच के पीछे भी विद्वानों का आशीर्वाद है।

आयोजन के मुख्य अतिथि तथा आंध्रप्रदेश विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो एस एम इक़बाल ने कहा कि दक्षिण में हिन्दी के प्रचार का कार्य भी पूरी तन्मयता से किया जा रहा है। किंतु हिन्दी के प्रति स्थानीय लोगों का उत्साह बढ़ाने के लिए, स्थानीय हिन्दी-सेवियों को अधिक अवसर दिए जाने चाहिए। केंद्रीय सरकार की उदारता से हिन्दी को प्रोत्साहन मिल सकता है, और जो लोग हिन्दी का विरोध करते हैं,उन्हें भी उत्तर मिल जाएगा। प्रो इक़बाल ने दक्षिण में हिन्दी के विकास के लिए अनेक परामर्श भी दिए।

पत्रिका का लोकार्पण करते हुए, वरिष्ठ कवि राम उपदेश सिंह ‘विदेह’ने कहा कि साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन और संपादन बहुत हीं कठिन कार्य है। इनके लिए सामग्री जुटाने से लेकर प्रकाशन के लिए धन की व्यवस्था, सब कुछ प्रकाशक-संपादक को हीं करना पड़ता है। यह अत्यंत श्रमसाध्य और धैर्य का कार्य है। पत्रिका के संपादक प्रशंसा और साधुवाद के पात्र हैं।

समारोह के विशिष्ट अतिथि श्यामजी सहाय, प्रकाश नारायण सिंह, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद,डा कल्याणी कुसुम सिंह, साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, राजीव कुमार सिंह परिमलेन्दु’,डा मेहता नागेन्द्र सिंह, डा कृष्ण कांत शर्मा, कवि घनश्याम,बच्चा ठाकुर, डा अर्चना त्रिपाठी, डा सुधा सिन्हा, विष्णुदेव प्रसाद, डा आर प्रवेश,राज कुमार प्रेमी,प्रो उषा सिंह, डा शहनाज़ फ़ातमी, डा शालिनी पाण्डेय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी,डा नागेश्वर प्रसाद यादव, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, शुभ चंद्र सिन्हा, गणेश झा, कृष्ण रंजन सिंह,राजेश भट्ट, जय प्रकाश पुजारी, अम्बरीष कांत, नेहाल कुमार सिंह, अर्जुन सिंह, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त तथा चंद्रशेखर आज़ाद ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत पत्रिका के सह-संपादक बाँके बिहारी साव ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन पत्रिका के प्रबंध सम्पादक प्रो सूखित वर्मा ने किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र द्वारा किया गया।

(वंदना कुमारी)