कोरोनाकाल में हो रहा पत्रकारों के साथ भेदभाव

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पटना : सिर्फ कोरोना ही नहीं बल्कि देश समाज के हर संकट के क्षण में पत्रकार एक योद्धा के जैसा अपने कर्म में जुटा रहता है। पत्रकारों की जीवटता के कारण ही समाज में जागरूकता आती है। समाज आसन्न संकट के प्रति अपनी मानसिकता तैयार करता है। कोरोना संक्रमण में भी इस गंभीर बीमारी के प्रति जनमानस तैयार करने में पत्रकारों की अप्रतिम भूमिका रही है। पत्रकार एक संवाद योद्धा के रूप में उपस्थित रहा है।उक्त बातें विश्व संवाद केंद्र, बिहार द्वारा आयोजित आद्य पत्रकार देवर्षि नारद स्मृति कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार कुमार दिनेश ने कही। कार्यक्रम का विषय था – कोरोना काल में संवाद योद्धाओं की भूमिका।

सोमवार को वर्चुअल कार्यक्रम के अपने संबोधन में कुमार दिनेश ने कहा कि कोरोना संक्रमण के दौर में पत्रकारों के लिए सबसे अधिक निराशा की बात यही है कि उनकी सुध न तो प्रबंधन लेता है और ना ही सरकार। बिहार में जिस प्रकार बहुत विलंब से पत्रकारों को कोरोना वरियर्स घोषित किया गया और उसमें भी सिर्फ प्राथमिक रूप से टीकाकरण कर छोड़ दिया गया। जबकि इसी सरकार ने स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़े कोरोना वरियर्स को टीकाकरण के साथ-साथ उनकी आर्थिक जरूरतों की भी सुध ली और और जिन चिकित्सकों और पुलिसकर्मियों ने अपनी जान गवाई, उनके परिजनों के लिए भी तात्कालिक राहत के उपाय किए। ऐसी कोई सहूलियत पत्रकारों के लिए नहीं की गई।

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Kumar Dinesh

उन्होंने कहा कि इस संकट काल में एक और पीड़ादायक खबर आई कि जो पत्रकार दिन रात अपनी जान जोखिम में डालकर मीडिया हाउस के लिए समाचारों का संकलन और उसका प्रकाशन—प्रसारण कर रहा है, इस कोरोना की आपदा में उनके वेतन में कटौती की गई और कई को तो नौकरी से निकाल दिया गया। ऐसे समय में टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों का उदाहरण सामने आता है, जिसने घोषणा की कि कोरोनाकाल में अपना जीवन खोने वाले टाटा मोटर्स के कर्मचारी के संबंधित परिजन को आजीवन आर्थिक सहायता मिलेगी।

इससे पूर्व विषय प्रवेश कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र मिश्र ने कहा कि कोरोनाकाल में स्वास्थ्यकर्मी व पुलिस के अलावा पत्रकार बंधु भी अपनी जान जोखिम में डालकर सूचनाएं पहुंचा रहे हैं। उन्होंने दैनिक हिंदुस्तान के पत्रकार प्रेम कुमार, प्रभात खबर के विधि संवाददाता अभय कुमार जैसे कई पत्रकारों का उदाहरण देते हुए बताया कि इसको कोरोनाकाल में कई कर्मठ पत्रकार अपनी सेवा देते हुए दुनिया से विदा हो गए।

Devendra Mishra

वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण कांत ओझा ने कहा कि पत्रकारों को लेकर बिहार सरकार का रवैया पहले भी निराशाजनक रहा है। उन्होंने कई पत्रकार साथियों का उदाहरण देते हुए बताया कि हर साल नियमित रूप से शुल्क अदा कर बीमा कराने वाले पत्रकार जब बीमार पड़ते हैं, तो बीमा कंपनी उनके इलाज का खर्च देने में अड़चनें लगाती हैं और इससे भी दु:खद है कि सरकार के स्तर पर इसके निराकरण के लिए कोई प्रयास नहीं किया जाता है। सरकार को भेदभाव से परे होकर पत्रकारों की मदद करनी चाहिए। पत्रकार प्रशांत रंजन ने कहा कि संकट में पड़े पत्रकार बंधुओं की सहायता के लिए पत्रकार साथी को भी समूहिक रूप से आगे आकर पहल करना चाहिए। यह काम अभी लघु स्तर पर हो रहा है और इसमें पीड़ित पत्रकार साथियों को सहायता भी पहुंचाई जा रही है। इस पहल में वरीय पत्रकारों का मार्गदर्शक मिलने से कार्य में त्वरा आएगी। युवा पत्रकार ताज नूर ने प्रसिद्ध टीवी पत्रकार रोहित सरदाना के निधन की चर्चा की और कहा कि इस विपदा काल में जो पत्रकार नहीं रहे, उनके परिजनों की देखभाल करने को लेकर पहल होनी चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे विश्व संवाद केंद्र के संपादक संजीव कुमार ने बताया कि कोरोनाकाल के कारण आभासी रूप से ही इस देवर्षि नारद स्मृति कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। हर वर्ष इस कार्यक्रम में बिहार के पत्रकारों को सम्मानित भी किया जाता है। आॅनलाइन कार्यक्रम में यह संभव नहीं हो सका है, इसलिए लॉकडाउन के बाद सम्मान समारोह आयोजित होगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक रामनवमी प्रसाद ने कहा कि पत्रकार बंधुओं की सुध के लिए सरकार के साथ-साथ समाज के लोग भी आगे आएं, इसके लिए संगठन के स्तर पर प्रयास किया जा रहा है। व्यक्तिगत स्तर पर भी जो सहायता पत्रकार बंधुओं की हो सकती है, वह करना चाहिए। इस अवसर पर दक्षिण बिहार के प्रांत प्रचार प्रमुख राजेश पांडेय, सह प्रचार प्रमुख अभिषेक ओझा, वरिष्ठ पत्रकार ज्ञान प्रकाश, पत्रकार विपुल कुमार सिंह, मीडिया शोधार्थी गौरव रंजन समेत कई पत्रकार, बुद्धिजीवी व बिहार के विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी उपस्थित थे।

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