90 वर्ष का सपना होगा पूरा, कोसी महासेतु पर चली ट्रायल ट्रेन

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Kosi Mahasetu trial train

हाजीपुर : उत्तरी बिहार के लोगों के कोसी वरदान के साथ-साथ अभिशाप भी है। नदी के बदलते रुख के कारण कोसी क्षेत्र के लोगों को यातायात की समस्या से दो-चार होना पड़ता है। इस दिशा में कोसी महासेतु का निर्माण एक बड़ा कदम था। सड़क मार्ग पहले ही चालू हो गया था। अब इस पर रेलगाड़ी भी दौड़ेगी। इस दिशा में जून के अंतिम सप्ताह में कोसी महासेतु पर पहली पर ट्रायल ट्रेन चला गया। कोविड-19 महामारी के दौरान भी पूर्व मध्य रेल सभी स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों का पालन करते हुए परियोजना को अंतिम रूप देने हेतु लगातार कार्यरत है। जल्द ही कार्य पूरा कर कोसी महासेतु सहित निर्मली-सरायगढ़ रेलखंड को राष्ट्र की सेवा में समर्पित किया जाएगा।

विदित हो कि कोसी नदी संपूर्ण बिहार प्रदेश को ही नहीं अपितु समग्र भारत और नेपाल की प्रमुख नदियों में अन्यतम मानी जाती है। यह बराह क्षेत्र, कुसहा तथा चतरा स्थानों से होते हुए बिहार की सीमा पर सहरसा जिले के बीरपुर और भीमनगर स्थानों पर आती है। अपने प्रवाह का मार्ग परिवर्तित करने में कोसी का कोई जोड़ नहीं है। बिहार में कोसी नदी की धाराओं का विस्थापन पिछले 100 वर्षों में लगभग 150 किलोमीटर के दायरे में होता रहा है। कोसी नदी के दोनों किनारों को जोड़ने में यह एक बहुत बड़ी रुकावट थी।

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लगभग 1.9 किलोमीटर लंबे नए कोसी महासेतु सहित 22 किलोमीटर लंबे निर्मली-सरायगढ़ रेलखंड का निर्माण वर्ष 2003-04 में रू. 323.41 करोड़ की लागत से स्वीकृत किया गया था। इसके उपरांत 06 जून 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शिलान्यास किया गया था। परियोजना की अद्यतन अनुमानित लागत रू.516.02 करोड़ है।

वर्तमान पुल का निर्माण निर्मली एवं सरायगढ़ के बीच किया गया है। निर्मली जहां दरभंगा-सकरी-झंझारपुर मीटर गेज लाइन पर अवस्थित एक टर्मिनल स्टेशन था वहीं सरायगढ़, सहरसा और फारबिसगंज मीटर गेज रेलखंड पर अवस्थित था । सन 1887 में बंगाल नॉर्थ-वेस्ट रेलवे ने निर्मली और सरायगढ़ (भपटियाही) के बीच एक मीटर गेज रेल लाइन का निर्माण किया था। उस समय कोसी नदी का बहाव इन दोनों स्टेशनों के मध्य नहीं था। उस समय कोसी की एक सहायक नदी तिलयु्गा इन स्टेशनों के मध्य बहती थी जिसके ऊपर लगभग 250 फीट लंबा एक पुल था।

कोसी नदी के पश्चिम दिशा में उत्तरोत्तर विस्थापन के क्रम में सन 1934 में यह पुल ध्वस्त हो गया एवं कोसी नदी निर्मली एवं सरायगढ़ के बीच आ गई। कोसी की मनमानी धाराओं को नियंत्रित करने का सफल प्रयास पश्चिमी और पूर्वी तटबंध तथा बैराज निर्माण के साथ 1955 में आरंभ हुआ । पूर्वी और पश्चिमी छोर पर 120 किलोमीटर का तटबंध 1959 में पूरा कर लिया गया और 1963 में भीमनगर में बैराज का निर्माण भी पूरा कर लिया गया। इन तटबंधों तथा बैराज ने कोसी नदी के अनियंत्रित विस्थापन को संयमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसके कारण इस नदी पर पुल बनाने की परियोजना सकार रूप ले सकी।

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