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संस्कृत साहित्य में वैश्विक शांति व पारलौकिक सुख की कामना विद्यमान

दरभंगा : विशाल साहित्य भंडार, वैज्ञानिक व्याकरण तथा विश्व कल्याण की भावना आदि के कारण संस्कृत का मानवीय विकास में महती भूमिका रही है। यह न केवल भारतीय भाषाओं की जननी है, अपितु यूरेशिया के हजारों भाषाओं एवं बोलियों की उत्पत्ति में संस्कृत की महती भूमिका रही है। इसकी ‘सत्यं वद, धर्मं चर, वसुधैव कुटुंबकम् तथा सर्व भवन्तु सुखिनः आदि वाक्य सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक महत्त्व के हैं। संस्कृत साहित्य में वैश्विक शांति व पारलौकिक सुख की कामना विद्यमान हैं।

उक्त बातें सी एम विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो रामनाथ सिंह ने मुख्य अतिथि के रूप में सी एम कॉलेज,दरभंगा के संस्कृत विभाग के तत्वावधान में “वैश्विक संदर्भ में संस्कृत भाषा और साहित्य” विषयक विचारगोष्ठी में कहा। उन्होंने कहा है कि भले ही मैं आज अवकाश ग्रहण कर रहा हूं, पर मैं सदा शिक्षकीय आचरण बनाए रखूंगा और मिथिला विश्वविद्यालय एवं सी एम कॉलेज के प्रति मेरा अनुराग सदा बना रहेगा। सम्मानित अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर जयशंकर झा ने कहा कि संस्कृत भारोपीय परिवार में सबसे समृद्ध तथा प्राचीन भाषा है।

नासा के वैज्ञानिकों ने विश्व के सर्वाधिक व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक भाषा के रूप में संस्कृत को कंप्यूटर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानकर अपने कंप्यूटर भाषा विशेषज्ञों को प्रशिक्षित कर रहा है। प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के लिए ही नहीं, बल्कि वृहत्तर भारत के पुरातात्विक ज्ञान के लिए भी संस्कृत आवश्यक है। संस्कृत में लिखित कई शिलालेख तथा पांडुलिपियाँ भारत, इंडोनेशिया, थाईलैंड व कंबोडिया आदि देशों में पाए गए हैं। अमेरिकन भाषा वैज्ञानिक ब्लूम फील्ड ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘द लैंग्वेज’ में पाणिनीय अष्टाध्यायी को इस भूतल पर आज तक के मानव मस्तिष्क की सर्वोत्तम कृति माना है।

संस्कृत अमृतमयी जीवंत भाषा है :

प्रो० विश्वनाथ झा ने कहा कि संस्कृत भारतीय संस्कृति की रक्षक है जो भारत को विश्वगुरु बनाने में पूर्णतया सक्षम है। संस्कृत भारत की आत्मा स्वरूप है जो ज्ञान-विज्ञान का अक्षय खजाना है। संस्कृत अमृतमयी जीवंत भाषा है। वैज्ञानिकों ने इसे विश्व की सर्वाधिक प्राचीन, समृद्ध, वैज्ञानिक तथा कंप्यूटर हेतु सर्वाधिक उपयोगी भाषा माना है। संस्कृत आदिकाल से ही ज्ञान-विज्ञान,नैतिकता एवं संस्कृति की पोषिका रही है।

मिथिला हमेशा से संस्कृत एवं दर्शन का नेतृत्व करता रहा है। एक बार पुनः मिथिला नेतृत्व की ओर अग्रसर है। उन्होंने कहा कि शीघ्र ही भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से सी एम कॉलेज में “संस्कृत भाषा अध्ययन केंद्र” खोला जाएगा।उन्होंने प्रो रामनाथ के स्वास्थ्य एवं दीर्घायु जीवन की कामना करते हुये कहा कि अवकाश ग्रहण करना मात्र औपचारिकता है।इनमें शिक्षकत्व का भाव आजीवन बना रहेगा।

संस्कृत ‘जियो और जीने दो’ की भावना सिखाती है :

विभागाध्यक्ष प्रो० जीवानंद झा ने विचारगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कहा कि मैं सी एम कॉलेज के पूर्ववर्ती छात्र के रूप में यहां आकर प्रसन्नता अनुभव करता हूं। संस्कृत ‘जियो और जीने दो’ की भावना सिखाती है। यह मानव के सतत एवं समग्र विकास का मार्ग भी प्रशस्त करता है। मानवीय विद्याओं के इस दिव्य साहित्य में पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति एवं संरक्षण का मूल मंत्र सर्वत्र परिलक्षित होता है। संस्कृत आजीविका प्राप्ति की दृष्टि से भी आज सर्वोपरि है। भारत तथा विश्व का कल्याण, संरक्षण,सम्बर्द्ध तथा मानव का उद्धार संस्कृत ज्ञान द्वारा ही संभव है।

विचारगोष्ठी में आज सेवानिवृत्त हो रहे विश्वविद्यालय के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो० रामनाथ सिंह को पाग-चादर, पुष्प, बुके तथा स्मृतिचिह्न आदि से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो० अखिलेश कुमार राठौर, इतिहास के प्राध्यापक डा० अखिलेश कुमार ‘विभु’,डा संजीत कुमार झा,डा संजीत कुमार राम,अमरजीत कुमार,सत्यम कुमार,विनोद गुरुमेता,डा शिशिर कुमार झा तथा त्रिलोकनाथ चौधरी आदि उपस्थित थे।

कार्यक्रम का प्रारंभ डा० संजीत कुमार झा के स्वस्तिवाचन से हुआ, जबकि अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ से किया गया। आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्कृत विभागाध्यक्ष डा० आर एन चौरसिया ने कहा कि अध्यात्म एवं जीवनोपयोगी संस्कृत-विद्या राष्ट्र की उन्नति एवं समाज के कल्याण के लिए आवश्यक है।इस साहित्य में उपलब्ध ज्ञान बहुमुखी एवं मानवीय जीवन से संबंध है, जिसके अध्ययन-अध्यापन से मानव जीवन में गतिशीलता एवं श्रेष्ठता आती है। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन विचारगोष्ठी के संयोजक डा संजीत कुमार झा ने किया।

मुरारी ठाकुर की रिपोर्ट