पौष महीने का है विशेष महत्व, घर-घर बनने लगा पूषपीठा

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नवादा : हिन्दू पंचाग के अनुसार हर महीने की अपनी खासियत होती है और हर एक महीना किसी न किसी देवी- देवता की खास पूजा-अर्चना के लिए होता है। पौष मास में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि, इस महीने में ठंड अधिक बढ़ जाती है।

पौष मास का महत्व और व्रत :-

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विक्रम संवत में पौष का महीना दसवां महीना होता है। भारतीय महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। दरअसल जिस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है। पौष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है। इसलिए इस मास को पौष का मास कहा जाता है।

पौराणिक ग्रंथों की मान्यता के अनुसार पौष मास में सूर्य देव की उपासना उनके भग नाम से करनी चाहिये। पौष मास के भग नाम सूर्य को ईश्वर का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अर्ध्य देने व इनका उपवास रखने का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस मास प्रत्येक रविवार व्रत व उपवास रखने और तिल- चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है। पौष का पूरा महीना ही धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है लेकिन कुछ प्रमुख व्रत व त्यौहार होते हैं।

इस महीने दो एकादाशियां आएंगी पहली कृष्ण पक्ष को सफला एकादशी और दूसरी शुक्ल पक्ष को पुत्रदा एकादशी। पौष अमावस्या और पौष पूर्णिमा का भी बहुत अधिक महत्व माना जाता है। इस दिन को पितृदोष, कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी इस दिन उपवास रखने के साथ-साथ विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

पौष पीठा का है महत्व :-

इस माह तील संक्रांति का जितना महत्व है उससे कम महत्वपूर्ण पौष पीठा का नहीं है। यही कारण है कि गुरुवार को पौष माह के प्रवेश के साथ ही घर घर पौष पीठा बनना आरंभ हो गया है। भले ही इसका धार्मिक महत्व न हो लेकिन जिले के हर वर्ग व हर घर की पसंद पूषपीठा होने के कारण इसे लोग बङे चाव से खाते हैं।

कितने हैं प्रकार :-

पूषपीठा के कई प्रकार हैं। हर गरीब अमीरों के घर उनके स्वाद के अनुसार बनाए जाते हैं। नया अरवा चावल के बनने वाले पूषपीठा में कोइ बादाम, तील, खोबा, तीसी, आलू का चोखा तो कोई काजू- किशमिश भर कर बनाते हैं। हर किसी घर में अपने अपने औकात के अनुसार पूषपीठा का निर्धारण करते हैं।

कहती है महिलाएं :-

महिलाओं का मानना है कि पूषपीठा नवजात के एङी में लगाने से कभी एङी में बेवाय नहीं फटता।

कहते हैं आयुर्वेदाचार्य :-

पूषपीठा का आयुर्वेद से कोई संबंध नहीं है। इसे झारखंड में मकर संक्रांति के पूर्व टिशु पर्व जो नया चावल होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। वहां पूषपीठा का खाने का महत्व है। नवादा झारखंड के नजदीक होने के कारण यहां भी लोग पौष के महीने में इसे अवश्य खाते हैं।

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