नहीं रहे कवि जी, घर को बना गए साहित्यिक तीर्थ
- सांसद सह पूर्व केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह ने जताई शोक संवेदना
मोतिहारी : चंपारण में कवि जी नाम से विख्यात प्रोफेसर महेश्वर प्रसाद सिंह “कवि जी” नहीं रहे। सरस्वती के इस सुपुत्र का निधन गुरुवार वसंत पंचमी 30 जनवरी को हो गया। वे 76 वर्ष के थे। उनका पैतृक गांव वैशाली और मुजफ्फरपुर की सीमा स्थित बनिया गाँव है।
उनका जन्म 19 जनवरी 1944 को हुआ था। बाद में वे मोतिहारी के श्रीकृष्ण नगर में बस गए। वे हिंदी भाषा और साहित्य के मर्मज्ञ थे। उनके निधन पर सांसद सह पूर्व केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. अखिलेश सिंह एवं कला संस्कृति युवा विभाग के मंत्री प्रमोद कुमार, सहित बुद्धिजीवियों व शुभचिंतक प्रोफेसर ने शोक संवेदना जताई है।
हिंदी काव्य जगत के इस अमिट हस्ताक्षर को धूमिल और मुक्तिबोध की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला कवि माना जाता है। हिंदी एवं संस्कृत साहित्य-संस्कृति के समर्थ व्याख्याता,प्रखर वक्ता,ओज व व्यंग्य के रचनाकार कवि जी स्थानीय लक्ष्मी नारायण दुबे महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष थे। इस महाविद्यालय में 1973 में योगदान करने वाले कवि जी ने 31 जनवरी, 2004 को यहीं से अवकाश प्राप्त किया था।
मोतिहारी के साहित्यिक और सामाजिक जन जीवन में रचे-बसे कवि जी संप्रति मोतिहारी रेड क्रॉस सोसायटी के निर्वाचित उप सभापति रहे। वे बिहार विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के नेता और फुटबॉल के राज्य स्तरीय खिलाड़ी भी थे। कवि जी की दूर-दूर तक ख्याति उनकी कविताओं को लेकर थी।
मुक्त छंद की उनकी कविताओं की लयात्मकता,नये विम्बों की खोज और तेवर ने उन्हें आधुनिक कवि के रूप में स्थापित किया ।लंबी कविताएँ भी उन्हें कंठस्थ रहा करती थीं। गद्य और पद में समान गति रखने वाले कवि जी छन्द विधान के भी ज्ञाता थे।
उन्होंने दर्जनों छंदबद्ध भी कविताएँ लिखीं हैं। आंचलिकता और लोकोक्तियों के अनूठे प्रयोगों के दर्शन उनकी कविताओं में होते हैं। बता दें कि कवि जी स्वरचित श्लोक व प्रार्थनाओं से ईश्वर की उपासना करते थे। धर्म और अध्यात्म वे आधिकारिक विद्वान थे। श्री रामचरित मानस और तुलसीदास पर उनका वक्तव्य और विवेचन श्रवणीय होता था।
कवि जी राजनीतिक रूप से भी बहुत चेतनशील व्यक्ति थे। देश-दुनिया में रोज़ घटने वाली घटनाओं पर उनकी सटीक टिप्पणी और भविष्यवाणी हुआ करती थी।उनसे कई से मंत्री,सांसद,विधायक,विधान पार्षद व अन्य नेता जुड़े थे।जो अपने चुनाव कार्यालय का उदघाटन कराने या आशीर्वाद लेने आते थे। अपनी काव्य-साधना से अपने घर को साहित्यिक तीर्थ बना गए कवि जी की चर्चित कविताओं में बोल तिरंगे,नरक के द्वार पर, रुई,पावस संहार एवं मेरी खोपड़ी सिद्धपीठ शामिल हैं।
राजन दत्त द्विवेदी