28 नवंबर : दरभंगा की मुख्य ख़बरें

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सीएम कॉलेज में शीघ्र शुरू होगा दिव्यांगता से संबंधित कोर्स

दरभंगा : दिव्यांगों के अधिकार अधिनियम 2016 को लागू करने वाला बिहार देश का पहला राज्य है। दिव्यांगों के हितरक्षा तथा पुनर्वास हेतु राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामाजिक,कानूनी,शैक्षणिक तथा आर्थिक व्यवस्था आवश्यक है। मानसिक दिव्यांगों का समुचित इलाज के साथ-साथ उनकी सामाजिक स्वीकार्यता बेहद जरूरी है।

हम सबों की नैतिक जिम्मेदारी है कि दिव्यांगजनों को सही इलाज स्थल तक पहुंचाएं तथा उन्हें सरकारी सुविधाओं की जानकारी देकर उनका वास्तविक लाभ दिव्यांगों को दिलवाए। कोई भी सामान्य व्यक्ति किसी विशेष परिस्थिति में दिव्यांग बन सकता है। इसलिए हमें दिव्यांगों के प्रति संवेदनशील और सकारात्मक होना चाहिए।

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उक्त बातें बिहार सरकार के दिव्यांगता-राज्य आयुक्त डॉ शिवजी कुमार ने सी एम कॉलेज,दरभंगा के स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग तथा भारतीय स्वास्थ्य,शोध एवं कल्याण संघ,हिसार,हरियाणा के संयुक्त तत्वावधान में दिव्यांगों के मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का मूल्यांकन एवं हस्तक्षेप विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में कहा।उन्होंने कहा कि न्यूटन, मारकोनी, आइंस्टीन, ग्राहम बेल आदि विश्वविख्यात वैज्ञानिक भी दिव्यांग थे।

विश्व के सर्वाधिक धनाढ्य व्यक्ति बिल ग्रेट भी दिव्यांग हैं।दिव्यांगों को भी समाज में पूरे सम्मान के साथ जीने का पूर्ण अधिकार है। बिहार देश का पहला राज्य है जहां दिव्यांगों के लिए विशेष कोर्ट गठित किए गए हैं।यहां दिव्यांगों के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी नौकरियों में आरक्षण लागू है तथा बिहार सरकार 2005 से ही यहां के इंटरनेशनल खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियां दे रही हैं। दिव्यांगता-आयुक्त विभिन्न क्षेत्रों में शानदार सफलता पाए व्यक्तियों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि मेरे विचार से तो संसाधनों पर दिव्यांगों का पहला हक होना चाहिए।

समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ मुश्ताक अहमद ने कहा कि इस कार्यशाला से सामान्य लोगों को भी दिव्यांगजनों के बारे में विस्तृत जानकारी मिली है। इस तरह के समाजोपयोगी तथा ज्वलंत समस्याओं पर लगातार जागरूकता कार्यक्रम होना चाहिए। उन्होंने महाविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में शीघ्र दिव्यांगता संबद्ध कोर्स प्रारंभ करने की प्रतिबद्धता व्यक्त  करते हुए उक्त प्रासंगिक कार्यशाला के आयोजन हेतु मनोविज्ञान विभाग के सभी शिक्षकों को साधुवाद दिया।

वही तकनीकी सत्र में साधनसेवी के रूप में यू पी कॉलेज,पूसा के मनोविज्ञान विभाग के प्राध्यापक तथा नैदानिक चिकित्सक डॉ दीपक भारद्वाज ने कहा कि दिव्यांगता किसी भी अवस्था, क्षेत्र,स्थिति में हो सकता है, जिनकी सही पहचान तथा उनकी वास्तविक जरूरत पूरी होनी चाहिए। दिव्यांगों के प्रति सामाजिक जागरूकता हेतु सरकारी नीति, शिक्षा, मीडिया तथा गैर सरकारी संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आज के रोचक प्रश्नोत्तर सत्र में साधनसेवी ने प्रतिभागियों की शंकाओं का संतोषजनक जवाब देकर उन्हें संतुष्ट किया।इस अवसर पर डॉ अनुपम कुमार सिंह, डॉ अभिलाषा कुमारी, प्रो रागिनी रंजन, डॉ आर एन चौरसिया, डॉ प्रीति कनोडिया,  डा रीता दुबे, डॉ मीनाक्षी राणा, डॉ पुनीता कुमारी, डॉ प्रीति त्रिपाठी, डॉ विमल कुमार चौधरी, आई ए एच आर डब्लू, दिल्ली के अध्यक्ष डॉ सुनील सैनी, सुरेश राठौर, तुषार भाले राव, भगवान तालवार, शिवाजी राव पालीत, डॉ विष्णुकांत चौधरी तथा एक सौ प्रतिभागियों ने कार्यशाला में भाग लिया।

आयोजन सचिव डॉ विजय सिंह पांडे ने बताया कि कार्यशाला में बिहार के अलावे महाराष्ट्र गुजरात उत्तर प्रदेश हरियाणा दिल्ली तथा झारखंड आदि के एक सौ प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिन्हें प्रमाण पत्र प्रदान किया गया विभागीय  प्राध्यापक  अमृत कुमार झा ने विगत 3 दिनों से चल रहे कार्यशाला का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जबकि  आइक्यूएसी के कोऑर्डिनेटर डॉ जिया हैदर ने अतिथियों का परिचय  कराया डॉक्टर एकता श्रीवास्तव के संचालन में आयोजित समापन समारोह में आगत अतिथियों का स्वागत विभागाध्यक्ष प्रो नथुनी यादव ने किया,जबकि धन्यवाद ज्ञापन कार्यशाला के आयोजन सचिव डॉ विजयसेन पांडे ने किया।

मिथिला में संस्कृत का वृहत भंडार

दरभंगा : कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में गुरुवार को आयोजित सातवें दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली के कुलपति प्रो0 पी0एन0 शास्त्री ने कहा कि इन दिनों संस्कृत भाषा के प्रति कई जानी- अनजानी भ्रांतियां समाज मे फैल गयी हैं। इससे देववाणी को नुकसान हो रहा है।इसलिए जरूरत है संस्कृत में प्रतिपादित मौलिक विचारों को जनमानस तक पहुंचाने की। ताकि व्याप्त भ्रांतियां व आशंकाएं निर्मूल हो सके और संस्कृत भी निर्वाध गति से फल फूल सके।

साथ ही उन्होंने कहा कि संस्कृत में हो रहे शोध कार्यों से निकले नए नए तथ्यों को विभिन्न माध्यमों के जरिये देश-विदेशों में प्रचारित-प्रसारित करने की नितांत जरूरत है। इन माध्यमों में दूरदर्शन, इंटरनेट, पत्र पत्रिकाएं समेत अन्य संसाधनों का भरपूर उपयोग किया जा सकता है।

अपने दीक्षांत भाषण को आगे बढ़ाते हुए प्रो0 शास्त्री ने संस्कृत विश्वविद्यालय को एक महत्वपूर्ण सुझाव यह दिया कि यहां से उपाधि प्राप्त करने वाले छात्रों के लिए कम से कम एक पांडुलिपि के संशोधन, प्रकाशन, मुद्रण या फिर सम्पादन की अनिवार्यता सुनिश्चित कर देना चाहिए। इस प्रयास से दुर्लभ ग्रन्थों का प्रकाशन हो सकेगा और जो पांडुलिपियाँ पंडितों के घरों में , पेटियों में, पुस्तकालयों में जैसे तैसे पड़ी हुईं हैं या कैद हैं उसे पुनर्जीवन मिलेगा। इस अवस्था में पड़े अनेक ग्रन्थ रत्न के समान हैं जो प्रकाशन के अभाव में इस आधुनिक युग मे भी अज्ञात व अनजान हैं। लगे हाथ उन्होंने यूजीसी से फ़रियाद करते हुए कहा कि उक्त अनिवार्यता से सम्बंधित आदेश अगर इस संस्कृत विश्वविद्यालय को मिल जाता तो संकट में चल रही देवभाषा पर महान उपकार होता।

विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकांत के अनुसार, मुख्य अतिथि प्रो0 शास्त्री ने संस्कृत के विकास व उसकी उपयोगिता के लिए हर सम्भव प्रयास करने की वकालत की। उन्होंने मिथिला को जगत जननी सीता की धरती बताते हुए कहा कि यहां संस्कृत के व्यापक भंडार उपलब्ध है। यहां मीमांसा, न्याय, वेद आदिकाल से ही सम्पोषित होते रहे हैं।

उन्होंने संस्कृतानुरागियों और संस्कृतसेवियों से अनुरोध किया कि वे अब जग जाएं और संस्कृत की प्रगति के लिए रोज नए उपायों के साथ कार्यों में लीन हो जाएं। कुछ समय पूर्व यह विद्या राजा -महाराजा के संरक्षण में पल रही थी। उससे और पूर्व यह देवभाषा मानो अभेद्य दुर्ग में कैद थी लेकिन अनेक प्रयासों के बाद वह क़िलाबन्दी टूटी और संस्कृत वहां से निकल कर बाहर आ पायी। इसलिए बिना बिलम्ब किये इसके संवर्धन के लिए चारो ओर से प्रयास होना चाहिए।

संस्कृत भाषा की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए प्रो0 शास्त्री ने कहा कि बहुत पहले ही वैज्ञानिकों एवम अन्वेषकों ने खुले तौर पर जता दिया है कि सॉफ्टवेयर निर्माण समेत अन्य शोध कार्यों में संस्कृत सबसे अधिक सहयोगी है और मददगार भी। इसलिए यह सर्वश्रेष्ठ भाषा है।

पांडुलिपियों के संरक्षण व डिजिटाइजेशन पर दिया बल

दरभंगा : कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में सातवें दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हुए सूबे के महामहिम कुलाधिपति सह राज्यपाल माननीय फागू चौहान ने गुरुवार को कहा कि भारत को फिर से जगतगुरु के रूप में प्रतिष्ठा दिलानी है तो संस्कृत का विकास जरूरी है। यह समय की मांग भी है और भारतीय सांस्कृतिक नव-जागरण वास्ते एक गौरवशाली सार्थक अभियान भी।

उन्होंने कहा कि आदिकाल से चरित्र-शिक्षा, शांति,सद्भाव एवम विश्वबन्धुत्व का पाठ संस्कृत साहित्य से ही हमने सीखा है। वेदों, उपनिषदों, दर्शनों, पुराणों एवम धर्मशास्त्रों ने जीवन यापन का ऐसा आदर्श मार्ग स्थापित किया है जिसपर चलकर हम मानवता का व्यापक कल्याण कर सकते हैं। संस्कृत ज्ञान के अभाव में हम न तो भारत की सांस्कृतिक सम्पन्नता और विपुल ज्ञान सम्पदा से परिचित हो पाएंगे और न ही अपने राष्ट्र की भावनात्मक एकता को सुरक्षित रख पाएंगे।

उक्त जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकांत ने बताया कि महामहिम ने संस्कृत के विकास के लिए और अधिक मार्ग प्रशस्त करने को कहा। साथ ही संस्कृत की संवृद्धि के लिए उसकी बहुमूल्य पांडुलिपियों के संरक्षण एवम उसके डिजिटाइजेशन पर बल दिया। इसी कड़ी में उन्होंने आगे कहा कि पूरी दुनिया के लोगों को अपने परिवार के ही सदस्य की भांति समझने का ज्ञान वसुधैव कुटुम्बकम हमे संस्कृत ही सिखाती है। आज के भूमंडलीकरण के दौर में जिस विश्वग्राम की परिकल्पना की गई है दरअसल इस अवधारणा के मूल में भी भारतीय चिंतन और दर्शन की महान परम्परा ही है जो संस्कृत से पुष्पित व पल्लवित होती है।

विश्वविद्यालय मुख्यालय के शिक्षाशास्त्र विभाग परिसर में बनाये गए भव्य पंडाल में खचाखच भरे छात्रों, शिक्षकों, गवेषकों व अन्य आमंत्रित अतिथियों के साथ सभी कर्मियों के समक्ष संस्कृत की प्रशंसा व उसकी महत्ता बताते हुए महामहिम ने कहा कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की उपयोगिता और सफलता, आर्यभट्ट द्वारा शून्य की खोज, अणु-परमाणु की परिकल्पना, शल्य चिकित्सा के जनक के रूप में सुश्रुत की प्रसिद्धि संस्कृत की महान परंपरा एवम विरासत का परिचय देती है। विश्व के ज्ञान विज्ञान के सम्पूर्ण विषय संस्कृत साहित्य में सुरक्षित है। उन्होंने संस्कृत को विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा बताया।

अपने सम्बोधन के क्रम में महामहिम ने संस्कृत विश्वविद्यालय के संस्थापक महादानवीर महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह के प्रति श्रद्धा निवेदन किया और उनके संस्कृत शिक्षा प्रेम को भी नमन किया। साथ ही मिथिला की धरती पर आयोजित दीक्षांत समारोह में भाग लेने पर प्रसन्नता जताई।

उन्होंने कहा कि उपाधि ग्रहण करने वाले छत्रों के लिए आज का दिन उनके जीवन का स्वर्णिम अवसर है क्योंकि आज उन्हें अपनी साधना व परिश्रम का मधुर फल प्राप्त हुआ है। महामहिम ने सभी छात्रों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए आशा जताई कि विश्वविद्यालय से अर्जित ज्ञान व संस्कार का उपयोग वे अपने जीवन के साथ साथ सम्पूर्ण मानवता के व्यापक कल्याण के लिए करेंगे।

शैक्षणिक सत्र के समय पर संचालन, राजभवन के निर्देशों के पालन में तत्परता एवम विकास कार्यो के लिए उन्होंने विश्वविद्यालय की प्रशंसा की। साथ ही उन्होंने आशा जताई कि यह संस्कृत विश्वविद्यालय कुलपति के नेतृत्व में एक उत्कृष्ट अध्ययन केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाएगा।

सभी सुखी हों, सबका जीवन कल्याणमय हो, सभी उन्नति के शिखर को छुएं ऐसी ही मंगल कामनाओं के साथ महामहिम ने अपने सम्बोधन को पूरा किया।

मुरारी ठाकुर

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