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22 अगस्त : दरभंगा की मुख्य ख़बरें

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में साहित्य और समाज विषयक वेबीनार का आयोजन

दरभंगा : साहित्य का संबंध मानव- जीवन के विविध पक्षों से प्रत्यक्षतः रहा है। कोरोनाकाल में साहित्य का दायित्व अधिक बढ़ गया है। साहित्यसृजन हमें मानवीय मूल्यों एवं सामाजिक संवेदनाओं से युक्त करता है। इसके द्वारा समाज की सोच बदलती है और मानवता उच्चतर होती है।उक्त बातें विश्वविद्यालय हिंदी के नवनियुक्त विभागाध्यक्ष प्रो राजेन्द्र साह ने सीएम कॉलेज,दरभंगा के हिंदी तथा संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में “वर्तमान परिप्रेक्ष्य में साहित्य और समाज” विषयक वेबीनार का उद्घाटन करते हुए कहा। उन्होंने कहा कि आज की विषम परिस्थिति व कोरोना के दौर में समाज को उभारना भी साहित्य का दायित्व है।

मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि साहित्य समाज के प्रति संवेदनशील होता है जो लोकजीवन के चरित्र का सशक्त माध्यम है। समय-समय पर भारत की सामासिक संस्कृति खतरे में पड़ती रही है,जिसका समाधान साहित्य करता है। वस्तुतः आज स्त्री-विमर्श व दलित-लेखन सामाजिक प्रतिकार का ही स्वर है। समय के साथ साहित्य की समग्र एवं गंभीर अभिव्यक्ति होना आवश्यक है।

वेबीनार में हिंदी विभाग के प्राध्यापक डा रीता दुबे,डा मीनाक्षी राणा व डा रूपेंद्र झा, दिल्ली से डा जयप्रकाश नारायण, बरेली से डा विनीता कुमारी,पटना से प्रो अभयानंद शर्मा, मुजफ्फरपुर से डा बालकृष्ण शर्मा व डा शशि शेखर,संस्कृत विश्वविद्यालय से डा दीनानाथ साह,बहेरी से प्रो उमेश कुमार, सीएम साइंस कॉलेज से डा दिनेश प्रसाद साह, पटना से डा लक्ष्मण यादव,डॉ अयोध्यानाथ झा, बेगूसराय से गुरु आनंद,डासंजय कुमार सिंह, डॉ पल्लवी, विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग से डा ममता स्नेही,बेगूसराय से डॉ ज्योति कुमारी,डॉ अंजना कुमारी,डॉ शालिग्राम अहीरवार,डॉ शोभा कुमारी, डॉ गोपाल,समस्तीपुर से डा ममता सिंह,बेगूसराय से डा मोना शर्मा,डा शोभा कुमारी,डा शशिकला यादव, डा सुभाष कुमार सहित एक सौ से अधिक शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया।

वेबीनार की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ मुश्ताक अहमद ने कहा कि साहित्य संकटग्रस्त समाज को सही दिशा व दशा प्रदान करता है। विपरीत परिस्थिति में भी साहित्यकार आंखें बंद नहीं कर सकता न ही साहित्य तटस्थ रह सकता है,बल्कि वह दलित, पीड़ित तथा गरीबों की आवाज़ बन कर सामने आता है। भले ही इतिहासकार राज्याश्रित होते हैं,पर साहित्यकार पक्षपाती नहीं हो सकते। यदि वे लोभी होंगे तो साहित्य समाज का दर्पण नहीं,बल्कि समर्पण बन जाएगा। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री गुरु गोविंद सिंह कॉलेज,पटनासिटी के संस्कृत के प्राध्यापक डा गौरीनाथ राय ने कहा कि साहित्य और समाज एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों का प्रभाव एक-दूसरे पर पड़ता है। साहित्य में समाज के सभी पहलुओं का चित्रण होता है,जिससे समाज जीवंत बना रहता है। समृद्ध साहित्य ही खुशहाल समाज व उन्नत राष्ट्र की असल पहचान है।

विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो रामनाथ सिंह ने विषयप्रवर्तन करते हुए कहा कि साहित्य और समाज में अन्योन्याश्रय संबंध होता है।समाज का दर्पण कहा जाने वाला साहित्य का कोरोनासंकट में अधिक दायित्व है। साहित्य का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रहित होता है। बीएचयू,वाराणसी की हिंदी प्राध्यापिका डा प्रीति त्रिपाठी ने कहा कि साहित्य के द्वारा हम समाज को बेहतर समझ सकते हैं,क्योंकि यह बहुजन से जुड़ा होता है।

वर्तमान दौर कुण्ठा व बेचैनी की है,जिसे साहित्य ही उबार सकता है। साहित्य मानवीय अनुभव की यात्रा है। कल्पना-यथार्थ, बंधन-मुक्ति,सत्य-असत्य, राग-द्वेष,हानि-लाभ,जीवन- मरण ये सब भारतीय साहित्य लेखन के स्थाई संदर्भ हैं। संस्कृत में स्वागतगान संस्कृत शिक्षक डा नंदकिशोर ठाकुर ने प्रस्तुत किया। महाविद्यालय संस्कृत विभाग के प्राध्यापक डा संजीत कुमार झा के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत संस्कृत विभागाध्यक्ष डा आर एन चौरसिया ने किया,जबकि धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो अखिलेश कुमार राठौर ने किया।

मुरारी ठाकुर