21 फ़रवरी : दरभंगा की मुख्य ख़बरें

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मातृभाषा संस्कृति की वाहक एवं मानवीय मूल्यों की धारक : डॉ मुश्ताक

दरभंगा : मानव की विकासात्मक प्रक्रिया में मातृभाषा का सर्वाधिक योगदान होता है। यह हमारी संस्कृति की वाहक तथा मानवीय मूल्यों की धारक होती है। मातृभाषा भावों को सहजता से व्यक्त करने का आधारस्तंभ है, जो हमारे हृदय की भावनाओं की भाषा है।

भाषाविद् ग्रियर्सन ने लिखा है कि भारत भाषाओं का अजायवखाना है,पर यहां किसी भी दो भाषाओं में संघर्ष नहीं है। उक्त बातें सीएम कॉलेज के संस्कृत, हिंदी, मैथिली, उर्दू व अंग्रेजी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ के अवसर पर व्यक्तित्व विकास में मातृभाषा का अवदान विषयक संगोष्ठी सह पुस्तक प्रदर्शनी की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य डॉ मुश्ताक अहमद ने कहा।

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उन्होंने कहा कि दुनिया के 7000 में से 5000 भाषाएं दम तोड़ रही हैं। भारत में किसी तरह 1951 भाषाएं जीवित हैं, कई भाषाओं के बोलने वाले तो 2 अंकों में भी नहीं है। हमने मातृभाषा की अहमियत छोड़ दी है और अंग्रेजी बोल कर अपने को आधुनिक समझते हैं। इसलिए हम अपनी संस्कृति से भी दूर होते जा रहे हैं। जापान, रूस, चीन, जर्मनी आदि विकसित देशों में आज भी अपनी भाषा में ही ज्ञान-विज्ञान की बातें साझा की जाती हैं।

मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ आरएन चौरसिया ने कहा कि मातृभाषा भावा को व्यक्त करने और समझने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है। मातृभाषा, मातृभूमि तथा जन्मदात्री माता से बढ़कर कोई दूसरा नहीं हो सकता। मातृभाषा के महत्व को समझते हुए यूनेस्को ने प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने की स्वीकृति दी थी, जिसका मुख्य उद्देश्य भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना है।

उर्दू के प्राध्यापक अब्दुल हई ने कहा कि हमारे लिए मातृभाषा की महत्ता सर्वाधिक है, क्योंकि इसे हम मां की दूध पीते हुए ही सीखते हैं। इसे सीखने के लिए हमें विशेष श्रम की जरूरत नहीं होती है। यदि हम अपनी मातृभाषा से दूर हो जाएंगे तो हम अपनी पहचान को खो देंगे, क्योंकि हमारी पहचान मातृभाषा से होती है। इसको समझना बहुत आसान होता है। यह हमारे रगों में समाहित होता है, जिससे दूसरी भाषाओं को जानना-समझना आसान हो जाता है।

हिंदी विभागाध्यक्षा डॉ प्रीति त्रिपाठी ने कहा कि मातृभाषा के बल पर ही हम अपनी संस्कृति व समाज को बचा सकते हैं। हिंदी व उर्दू सहित भारतीय भाषाओं में मिठास होती है। हिंदी अनेक भाषाओं का समुच्चय है जो एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।

उर्दू की प्राध्यापिका डा मशरूर सोगरा ने कहा कि उर्दू तहजीब व सलीका की भाषा है। अनेक हिंदी साहित्यकारों ने न केवल अपनी रचनाओं में उर्दू शब्दों का प्रयोग किया है, बल्कि अपने नामों को भी बदलकर उर्दू प्रेम दिखाया है। अपनी मातृभाषा में ही व्यक्ति का संपूर्ण बौद्धिक विकास संभव है। आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए मैथिली की प्राध्यापिका प्रो अभिलाषा कुमारी ने कहा कि जिस भाषा को हम सहज भाव से बोलते व समझते हैं,वही हमारी मातृभाषा है।

इसमें न तो अधिक श्रम की जरूरत है, न ही व्याकरण के नियमों का विशेष प्रयोग होता है। मातृभाषा में स्वाभाविकता अधिक होती है जो हमारे बौद्धिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए आवश्यक है।

इस अवसर पर आयोजित भाषण प्रतियोगिता में सफल विकास कुमार,अमर भारती, राजनाथ पंडित, शशिकांत सिंह यादव, गोविंद कुमार, राकेश कुमार, अमरजीत कुमार, माधुरी कुमारी, निवेदिता, दीपक साहनी, सुधांशु कुमार गुप्ता, खुशबू कुमारी, मनीष कुमार तथा विष्णुकांत राजू आदि को प्रमाण पत्र एवं मैडल प्रदान कर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर मैथिली, उर्दू, हिंदी व संस्कृत आदि भाषाओं में लिखित अनेक पत्र-पत्रिकाएं तथा पुस्तकों आदि की प्रदर्शनी लगाई गई। हिंदी की प्राध्यापिका डा मीनाक्षी राणा के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन मैथिली विभागाध्यक्ष प्रो रागिनी रंजन ने किया।

मुरारी ठाकुर

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