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16 जून : दरभंगा की मुख्य ख़बरें

आत्मनिर्भर भारत के भौगोलिक आधार” विषय पर वेब लेक्चर

दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभाग में आज विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा “आत्मनिर्भर भारत के भौगोलिक आधार” विषय पर ऐतिहासिक राष्ट्रीय वेब व्याख्यानका आयोजन किया गया जिसमें देश के अलग-अलग जगहों से कई विद्वानों व विषय विशेषज्ञों ने शिरकत की।

इस मौके पर मुख्य अतिथि व मुख्यवक्ता के रूप में पटना विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व कुलपति महोदय प्रो० रास बिहारी सिंह ने कहा कि किसी भी देश का संपन्नता उसके स्वाबलंबन व आत्मनिर्भरता पर टिका होता है। उन्होंने स्वाबलंबन व आत्मनिर्भरता को परिभाषित करते हुए कहा कि स्वाबलंबन वो है जब हम हर क्षेत्र में खुद के लिये सक्षम है और आत्मनिर्भरता वो है जब हम खुद के लिये भी सक्षम हैं और दूसरों को प्रदान करने के लिये भी सक्षम हो। उन्होंने कहा कि किसी भी देश के लिये उसका भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीति व सामाजिक ढांचा सबसे अधिक मायने रखता है। उन्होंने कोरोना काल का एक महत्वपूर्ण पहलू की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि हम आज 133 देशों को दवा मुहैया करा रहे हैं जबकि तकरीबन 60 देशों को मुफ्त में दवा उपहारस्वरूप दे रहे हैं। हमारे देश की प्रकृति सदैव यह रही है कि हम विपरीत से विपरीत समय में भी सदैव खुद के लिये व दूसरे देशों के लिये भी खड़े हुए हैं।

उन्होंने भारत के भौगोलिक आधार का जिक्र करते हुए कहा कि उत्तर में हिमालय, दक्षिण में सागर, पूरब में पूर्वांचल की पहाड़ियां, पच्छिम में मरुस्थल भारत के लिये वरदान साबित हो रहा है। हमारे देश का भौगोलिक बनावट ही ऐसा है कि हम पूरे विश्व के अपेक्षा सबसे ज्यादा सुरक्षित व भौगोलिक रूप से संपन्न हैं। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति ही नहीं बल्कि सीमाओं में भी विविधता नजर आता है जो भारत को छोड़कर किसी देश को ऐसा सौभाग्य प्राप्त नहीं है। आज भारत के पास भारत की भूमि, मैदान की उपजाऊ भूमि, उर्वरा शक्ति, नदियां, भूमिगत जल स्तर, मानसूनी वर्षा, मौसम, पहाड़, पठार, खनिज संपदा सब कुछ उपलब्ध है जो भारत को आत्मनिर्भर बनने के लिये अनुकूल है। आज हम मक्का, चावल, गेहूं, कपास, जुट, चाय, कॉफी व मशाला आदि का निर्यातक हैं। हम हरित क्रांति से न केवल स्वाबलंबन हुए बल्कि आत्मनिर्भर भी हुए हैं। मखाना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज भारत 32-33 देशों को मखाना निर्यात कर रहा है, जरूरत है इसके अनुसंधान केंद्र पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने की। भारत के धर्मग्रंथों का जिक्र करते हुए भी उन्होंने कहा कि सनातन काल से ही हमारी संस्कृति “56 प्रकार के भोग” लगाने से जानी जाती है। जमीन के ऊपर के साथ-साथ उन्होंने जमीन के अंदर उपलब्ध खनिज संपदा, टेक्सटाइल, बागवानी, डेयरी, मछली पालन, जैविक संपदा:- वनीय जीव जंतु, बायोमास, वनों में विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण पेड़, वनों का विशाल भंडार, भूमि की विशालता, जैविक संसाधन के प्रचुर उपलब्धता की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि जरूरत इनके संरक्षण व प्रमोशन की भी है।

जनसंख्या का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज सबसे ज्यादा जरूरत है भारत को अपने फिजिकल रिसोर्स को प्रमोट करने की। भारत में 18 से 25 साल के उम्र में करीब 25 करोड़ लोग हैं जो 21 वीं सदी के मध्य की कमान संभालेंगे। यकीनन यह 21 वीं सदी के भारत के निर्माता होंगे। 18 वर्ष से कम उम्र के तकरीबन 32 करोड़ लोग हैं भारत में जो भारत के भाग्य-विधाता साबित होंगे लेकिन यह तब होगा जब नीति-निर्माता नीतियां बनाकर इन्हें मौका दें। कम लागत में गुणवत्ता पूर्ण वस्तुओं के निर्माण व सस्ते वैज्ञानिकों को लाना भारत की चुनौती होगी। स्किल निर्माण, छोटे, मझले व ग्रामीण उद्योग को बढ़ाना होगा।

अंत में उन्होंने कहा कि भारत के पास विश्वगुरु बनने की सभी संभावनाएं मौजूद हैं जरूरत है अपने देश की शक्तियों, अवसरों, भौगोलिक संसाधन को पहचान कर इच्छाशक्ति को और भी बढाने की। उन्होंने कहा कि आज हमारे देश में भाषा के आधार पर नहीं बल्कि विकास के आधार पर राज्य का मांग उठता है। हमारे संविधान ने हमें धार्मिक सहिष्णुता, अभिव्यक्ति, स्वतंत्रता व स्वछंदता प्रदान करता है जो पूरे विश्व में कहीं नहीं है। जिसके बल पर हमें सबों को एक साथ लेकर चलने की विरासत मिली हुई है।

इस मौके पर बोलते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के यशस्वी कुलपति प्रो० राजेश सिंह ने सबसे पहले कोरोना जागरूकता को लेकर अपील किया और कहा कि फिलहाल सबको सतर्क रहने की जरूरत है। भारत सरकार के द्वारा जारी सभी दिशा-निर्देशों का पालन करें, पूरी सतर्कता बरतते हुए अपने कार्यों व दायित्वों का निर्वहन करें।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में यकीनन हम पर अपने अर्थव्यवस्था को बरकरार रखने की चुनौती है। आर्थिक रूप से हम सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। अब हमें “मार्केट कंट्रोल व सोचने की जरूरत” पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है कि यहां से हम क्या कर सकते हैं? कोरोना ने हमें एक बार पुनर्विचार करने का मौका प्रदान किया है। आपदा ने हमें अपने अवसरों को भी पहचानने का मौका दिया। क्या भारत मैन्युफैक्चरिंग हब को कैच कर पाएगा। क्योंकि चीन में वो क्षमता है कि वो किसी भी चीज का वस्तु का निर्माण आज सबसे पहले कर लेता है। कोरोना काल में जिस प्रकार चीन आज पूरी दुनिया से अलग-थलग पड़ रहा है उसके बाद आज पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है क्योंकि एशिया में चीन का एकमात्र अल्टरनेटिव विकल्प भारत ही है। भारत के लिये यह समय है इस चुनौती को स्वीकार करने की, अवसर पहचानने की और इस दिशा में सार्थक कदम बढ़ाने की और अगर ऐसा हो पाता है तो बेशक भारत का पताका पूरे विश्व में लहराएगा। उन्होंने कहा कि यकीनन भारत पहले से भी इस दिशा में काम कर रहा है। 5 लाख हेक्टेयर भूमि इसके लिये अधिग्रहण किया गया है यह काबिलेतारीफ है लेकिन इसे सिर्फ दक्षिण भारत तक में ही सीमित करना कहाँ तक जायज है? बिहार, यूपी आदि को भी इस जमीन का शेयर मिलना चाहिये था ताकि उद्योग-धंधे सिर्फ एक प्रदेश तक सीमित न होकर समग्र प्रदेशों तक में इसका विस्तार होता जिससे एक फायदा यह भी होता है कि देश के एक प्रांत से दूसरे प्रांत में कम से कम रोटी की वजह से पलायन नहीं करना पड़ता है और इससे भारत के गावों की आत्मा मजबूत होती। लोगों को अपने घर में रोजगार मिलता।

उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में भी 15 साल बतौर कृषि वैज्ञानिक रहा हूँ। बतौर कृषि वैज्ञानिक व जनेटिक्स के प्रोफेसर होने के नाते उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि 60 के दशक में कृषि के दृष्टिकोण से अमेरिका को अमेरिका मक्का व सोयाबीन ने बनाया है जिससे उन्हें 300 से 400% तक फायदा हुआ है। आज हमारे बिहार को ही लें पूर्णिया के आसपास का क्षेत्र मक्का उत्पादन में पूरे देश में अग्रणी हैं। बावजूद वहां के किसानों को वो फायदा नहीं मिल रहा है जिसके वो वास्तविक हकदार हैं। यही हाल मखाना का भी है। दूसरे राज्य के उद्योगपति के हाथों इन्हें ये वास्तविक मूल्य से कम पर बेचने को मजबूर हैं। अगर “किसानों व स्थानीय उद्योग धंधों” को बढ़ावा दिया जाय तो निश्चित ही यह और भी बेहतर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि “बाजार का सर्वे” कराने की जरूरत है कि आखिर बाजार क्या चाह रहा है और बाजार सर्वे के अनुकूल अगर नीति निर्माता किसानों व उद्योग-धंधों को के लिये रियायतें व सहयोग दें तो यकीनन हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं। भारत को 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था पाने की चुनौती है, इसके लिये हमें अपने देश के साथ-साथ अमेरिका व चीन के भी हर एक गतिविधि पर पैनी नजर रखनी होगी तभी हम विश्व अर्थव्यवस्था को टक्कर दे सकते हैं।

कुलपति ने शिक्षा जगत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारे पास नालंदा व तक्षशिला जैसा वर्ल्डक्लास विश्वविद्यालय था। हमें अपने विरासत पर गर्व है और सदैव रहेगा लेकिन आज वो वैश्विक परिपेक्ष्य में कहां है? क्या है शिक्षा को लेकर हमारा ब्लूप्रिंट? आज हमारा शिक्षा का बजट 30-35 हजार करोड़ का है। हमें शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक परिदृश्य में क्या चल रहा है इसको आत्मसात करना होगा। क्वालिटी एजुकेशन पर जोर डालते हुए उन्होंने कहा कि आज देश में तकरीबन 800 विश्वविद्यालय हैं जिसमें से लगभग 650 विश्वविद्यालयों में महज 30-40 कोर्स है बाकी 150 विश्वविद्यालयों में 1000-1500 कोर्स जबकि अकेले हावर्ड विश्वविद्यालय में लगभग 10000 के करीब कोर्स हैं। अब हम खुद ही देख सकते हैं कि हम शिक्षा में कहां हैं। आज भी अमेरिका के प्रोफेसर छुट्टियों में सबसे ज्यादा चीन जाते हैं वो भी भाषा ट्रांसलेशन को सीखने की ललक लेकर। हमें अपने शैक्षणिक सिस्टम का स्टडी करना होगा।अलग-अलग भाषाओं को सीखने पर जोर डालना होगा ताकि हम ज्यादा से ज्यादा देश से संबंध व संवाद स्थापित करें। उन्होंने कहा कि आप स्थानीय भाषा, मैथिली आदि भी सीखिये, हिंदी में भी दक्ष हों, अंग्रेजी में भी निपुणता के स्तर को प्राप्त करें साथ ही वैश्विक परिदृश्य में जर्मन, फ्रैंच व स्पैनिश आदि में भी महारथ हासिल करें ताकि विश्व की रफ्तार में सदैव अपना जलवा बरकरार रखें।

अंत में जाते-जाते उन्होंने कहा कि सरकार के साथ-साथ आमलोग भी इस चुनौती को स्वीकार करें और खुद के साथ-साथ समाज के लिये ईमानदारी से योगदान दें सब तो वो दिन दूर नहीं जब भारत, दुनिया को दिशा दिखायेगा और आत्मनिर्भर भारत बनेगा।

इस ऐतिहासिक वेबिनार के मौके पर बोलते हुए विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो० जितेंद्र नारायण परिनियामक की भूमिका में दिखें व सभी आगत अतिथियों का स्वागत व उपस्थति सदस्य से परिचय करवाया। विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान के विभागीय प्राध्यापक प्रो० मुनेश्वर यादव ने भी संक्षिप्त समीक्षा करते हुए कार्यक्रम के अंत में आगत अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।

प्रश्नोत्तरी सत्र में रजनीश, मुकुल बिहारी वर्मा, जग बहादुर प्रजापति, अभिलाष, अविनाश, सीमा व सुरभि आदि ने भाग लिया। इस मौके पर विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान के विभागीय प्राध्यापक प्रो० अखिलेश जायसवाल समेत कई शिक्षकों व कई शोधार्थी श्री संतोष कुमार, वंदना कुमारी, साक्षी कुमारी, हिमांशु कुमार, डॉ० कुमार मदन मोहन, डॉ० चंदन कुमार ठाकुर, सुशील कुमार सुमन, संतोष राय, राहुल कुमार तकनीशियन गणेश कुमार पासवान आदि समेत छात्र नेता सह राजनीति विज्ञान के विद्यार्थी संदीप कुमार चौधरी आदि ने भी भाग लिया।

मुरारी ठाकुर