नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आते ही उनके द्वारा लिए गये कुछ साहसिक नीतिगत फैसलों में प्रमुख है N.G.O को मिलने वाले विदेशी अनुदान पर कार्रवाई एवं रोक। इसके परिणामस्वरूप क्रिश्चियन मिशनरियों और संस्थानों में उपजा क्रोध जिसकी परिणति पालघर में साधुओं की हत्या के रुप में हुई।
सेवा के नाम से इन क्रिश्चियन मिशनरियों को जो अकूत विदेशी फंड मिल रहा था, उसका 10% भी सेवा में नहीं होकर केवल हिंदुओं के धर्मांतरण में किया जाता था। सरकार द्वारा रोक लगाये जाने से करीब 10 हजार स्वयंसेवी संस्थायें और इनका सारा कुनबा ही ध्वस्त हो गया। सच तो यह है कि पिछली तथाकथित सेक्युलर सरकारों ने अपना भरपूर समर्थन और सहयोग ईसाई मिशनरियों को धर्म परिवर्तन हेतु दिया ।
नैतिक शिक्षा के नाम पर बाईबिल की शिक्षा के साथ हिंदु देवी देवताओं, धार्मिक मान्यताओं का मजाक उड़ाने और जहरीली दुर्भावना पैदा करने में सफल हो गये। नेहरू द्वारा अल्पसंख्यकों के धार्मिक सुरक्षा में बनाया गया कानून अब उनके धर्मांतरण के प्रयासों का विरोधी हो गया, जो अब सख्ती से लागू हो गया और अब उन्हें नागवार गुजरने लगा।
कालचक्र में विदेशी पोप समर्थित वामपंथी पोषित अखबारों जैसे न्यूयार्क टाईम्स को जहां मलेशिया से तब्लीगी जमातियों द्वारा फैलाया गया कोरोना गलत लगा। वहीं भारत में इनके द्वारा फैलाई गयी महामारी का दोषारोपन गलत नजर आता है और सारी दुनिया को मुसलमानों पर हिंदुओं का अत्याचार से प्रचारित करते हैं। उनके विरुद्ध दिए गये साक्ष्य फर्जी लगते हैं|
विदेशी ईसाई पत्रकारों ने अपने ऐजेंडा को असफल होता देख मुसलमानों को गुमराह करके हिंदु विरोधी मोर्चा बनाने में चर्च का भरपूर सहयोग किया। पालघर की घटना मिशनरियों ने वामपंथी विचारों से पोषित लोगोंं द्वारा प्रायोजित और दंगे भड़काने की कोशिश की। मोदी सरकार से आशा की जाती है कि सावधानी पूर्वक ऐसी घटनाओं को नियंत्रित करे और कठोरतम तरीके से दोषियों का दमन करे।