मिट चुका कुओं का अस्तित्व, नई पीढ़ी कुआं के अस्तित्व से हैं अनजान
हुलासगंज/जहानाबाद – कभी प्रेमचंद्र जैसे उपन्यासकारों के कहानियों के मुख्य शीर्षक रहे ‘ठाकुर का कुआं ‘ जो उस समय के ग्रामीण परिवेश के संस्कृति का मुख्य धरोहर था। वही कुआं पिछले दो दशक में देखते देखते ग्रामीण परिवेश से भी विलुप्त हो गए हैं। सिंचाई से लेकर पेयजल तक आम आदमी की निर्भरता जिस कुएं पर रहती थी। आज उसका स्थान समरसेबल और गहरे बोरवेल में ले लिया है। कहीं गांव में जहां घर और खुले बधार में पक्का कुआं होता था वही बदलते सामाजिक परिवेश ने घर-घर में हैंडपंप और समरसेबल स्थापित कर दिया है।
पूजा पाठ हो या कोई धार्मिक अनुष्ठान आज कुएं का पानी दुर्लभ हो गई है। जिस कुए के पनघट पर महिलाओं के झुंड होती थी आज परिवेश ने लोगों को एकांकी बना दिया है। जलचरों और जैव विविधता के पोषक कुएं के लुप्त होने से जैव संरक्षण को भी काफी नुकसान हुआ है। जल संरक्षण के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जाने वाले कुएं के लुप्त होने से पेयजल की समस्या गांव में भी आज देखने को मिल रही है। शहरी परिवेश का अनुसरण करती ग्रामीण जनता धीरे धीरे कर अपनी मूल संस्कृति को भूल रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब आने वाले पीढ़ी को कुएं के बारे में कुछ ज्ञात नहीं होगा।
कई बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि 1967 के अकाल के समय में जब खाद्यान्न और पेयजल का संकट हुआ था तो बड़ी संख्या में गांव में कुएं खोदे गए थे। लेकिन 55 वर्षों के इस अंतराल में तेजी से कुए का अस्तित्व सिमटता गया। आज स्थिति है कि धीरे धीरे कर कुएं का अस्तित्व समाप्त हो गया है गांव में भी अब लोग कुएं की कोई जरूरत नहीं समझते। जिले में कितने कुएं आजादी के बाद अपना अस्तित्व खो चुके हैं इसका आंकड़ा शायद किसी विभाग के पास नहीं होगा लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि आज प्रत्येक राजस्व गांव में कम से कम 10 से 15 कुएं अपना अस्तित्व जरूर हो चुका है।
केंद्र सरकार के जल जीवन हरियाली मिशन योजना की शुरुआत करने के बाद परंपरागत कुओं के संरक्षण के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास पिछले दो-तीन वर्षों में जरूर किए गए हैं लेकिन सिर्फ योजना का लाभ संवेदक को मिले इतना ही तक इस योजना का उद्देश्य दिखता है। अधिकतर कुओं के ऊपरी ढांचा को सुसज्जित करने का ही काम इस योजना के अंतर्गत किया गया है। 13वीं वित योजना से कुओं के संरक्षण पंचायतों द्वारा इसपर काफी धन खर्च किया गया लेकिन कुओं की उपयोगिता और सार्थकता को साबित करने में विफल रही है।
प्राथमिक विद्यालय के भवन निर्माण के लिए जमीन दान करने के लिए जमीन दाता काट रहे कार्यालय का चक्कर
– अधर में फंसा विद्यालय के लिए जमीन दान का मामला
हुलासगंज/जहानाबाद – स्थानीय प्रखंड क्षेत्र के बौरी पंचायत अंतर्गत नवसृजित प्राथमिक विद्यालय बुढानपुर प्रखंड क्षेत्र का एकमात्र ऐसा विद्यालय है जो जमीन के अभाव में निजी दलान में कई वर्षों से संचालित हो रहा है। सरकार एक ओर जहां विद्यालय की स्थापना के लिए जमीन खरीद कर भी विद्यालय खुलवा रही है।
वहीं मुफ्त में 3 डिसमिल जमीन देने के लिए गांव के ही वीरेंद्र कुमार यादव तैयार हैं लेकिन प्रशासनिक शिथिलता के कारण विद्यालय के लिए जमीन का निबंधन नहीं हो पा रहा है। विद्यालय के भवन निर्माण के लिए जमीन दान करने के लिए जमीन दाता ने लिखित रूप से अंचल कार्यालय में आवेदन देकर भवन निर्माण कराने का आग्रह किया है लेकिन कई वर्षों से जमीन दाता जमीन दान करने के लिए तैयार बैठे हैं लेकिन प्रशासनिक शिथिलता के कारण जमीन का निबंधन नहीं कराया सका है । बताया जाता है कि मामला जमीन के निबंधन शुल्क जमा करने को लेकर पेंच फंसा हुआ है।
इस संबंध में अंचल अधिकारी और प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को प्रेषित पत्र में जमीन दाता ने आग्रह किया था कि निबंधन शुल्क माफ कराया जाए जिससे कि निबंधन की प्रक्रिया सरल तरीके से की जा सके। इस संबंध में उप समाहर्ता द्वारा अंचल अधिकारी को जांच कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने को भी कहा गया था। लेकिन इस मामले में अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है अंचल अधिकारी अरविंद कुमार चौधरी ने बताया कि जमीन दाता को फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट जमीन दान करने के लिए लिखित में देना होगा।
इसके बाद निबंधन शुल्क माफ करने से संबंधित प्रस्ताव विभाग को भेजा जाएगा। हालांकि ऐसा कम ही मामला देखने को मिलता है जब जमीन दाता खुद जमीन दान करने के लिए कार्यालयों का चक्कर काटे और सरकारी महकमा इस पर शिथिलता बरते। बहरहाल पिछले चार-पांच वर्षों से विद्यालय कभी पेड़ के छांव में तो कभी दालान पर संचालित हो रहा है, लेकिन इसके बावजूद विद्यालय को अपने जमीन पर स्थापित करने के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारी और स्थानीय पदाधिकारी विशेष रूचि नहीं दिखा रहे हैं।