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अब बारिश हुई भी तो इस बार धान की फसल आधी से अधिक आच्छादन संभव नहीं

नवादा : आधा श्रावण बीतने को है। जुलाई का महीना भी तीन दिन शेष रह गया है। आमतौर पर जिले में 15 अगस्त तक धान की रोपनी की जाती है। फिलहाल दो से तीन प्रतिशत रोपनी हो सकी है। जिले में बारिश की बेरूखी जारी है। ऐसे में अब सारी उम्मीदें धूमिल हो कर रह गयी हैं। मंगलवार की देर रात हुई बारिश से कुछ उम्मीदें जगी थी लेकिन बुधवार से स्थिति पू्र्ववत है। ऐसे में अब बारिश हुई भी तो का बर्षा जब कृषि सुखाने की स्थिति रहेगी।

जिले में मौसम की बेरूखी के कारण इस बार जो लक्षण हैं, उससे यही प्रतीत होता है कि किसानों के हाथ इस बार 50 फीसदी तक खाली रह जाएंगे। लगभग 280 करोड़ का नुकसान जिले के धान उत्पादन को होने की आशंका है। जिले में इस बार 79690.2 हेक्टेयर में धान आच्छादन का लक्ष्य निर्धारित है। जिले में प्रति हेक्टेयर 35 क्विंटल तक धान का उत्पादन होता है। इस प्रकार सब कुछ सही रहने पर जिले भर में इस सत्र में 27 लाख 89 हजार 157 क्विंटल धान का उत्पादन प्राप्त होने की संभावना थी।

सरकारी दर पर ही धान की कीमत को मानक मान लें तो कम से कम दो हजार रुपये क्विंटल किसान को प्राप्त होते हैं। इस लिहाज से 557 करोड़ 83 लाख 14 हजार रुपये का औसत उत्पादन जिले के किसानों को धान से प्राप्त हो जाती है। लेकिन इस बार सीधे आधे उत्पादन की प्राप्ति का लक्षण दिख रहा है। यानी 278 करोड़ 91 लाख 57 हजार रुपये की वापसी की ही संभावना बन रही है। जाहिर है इस स्थिति में किसानों की खेतों में लगायी गयी पूंजी तक बाहर निकालना संभव नहीं हो सकेगा। किसान इस स्थिति से पूरी तरह से टूट चुका है।

पुराने हो चले हैं बिचड़े, आच्छादन अब संभव नहीं

वर्तमान में हाल यह है कि 30 दिन से अधिक पुराने हो चले बिचड़े की जड़ में अभी से ही धान की कोंपल फूटते जा रहे हैं। बेहतर खेती के लिए यह जरूरी है कि 21 दिन हो जाने पर धान के बिचड़े का आच्छादन अगले सात दिनों में हर हाल में पूरा कर लिया जाए। लेकिन सारी अनुकूल परिस्थितियां बीत चुकी हैं। किसान कहते हैं कि 30 दिन से अधिक पुराने बिचड़े से बेहतर फलन नहीं मिल सकेगा। शायद आधी फसल ही खलिहान तक पहुंच सके लेकिन इस परिस्थिति में लगायी पूंजी भी लौट पाना असंभव है। बारिश की इस बेरूखी से जिले में फसल चक्र प्रभावित हो गया है। धान समेत अन्य सभी फसलें पिछात होती जा रही हैं।

किसानों की व्यथा

बारिश ने हम किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। हम तो बिचड़ा तक नहीं बो सके। जल संसाधन का अभाव हम सभी को ले डूब। अब वैकल्पिक खेती का ही सहारा रह गया है।

– हरिद्वार सिंह, किसान, कोल्हुआर, कौआकोल

बारिश हुई नहीं और जलश्रोत सूखे पड़े थे। ऐसे में धान का बिचड़ा लगाना भी संभव नहीं हो सका है। धान आच्छादन तो दूर की कौड़ी है। हमारे समक्ष तो खाने के भी लाले पड़ गए हैं।

– चितरंजन सिंह, किसान, बरौन, कौआकोल

बारिश की दगाबाजी ने किसानों की कमर ही तोड़ डाली है। बिचड़ा जैसे-तैसे तैयार कर सके लेकिन यह खेतों में पड़े रह गए। पटवन कर धान की बुआई ऐसे मौसम में बिल्कुल ही संभव नहीं हो रहा।

– सुरेन्द्र सिंह, किसान, बलियारी, हिसुआ

स्थिति गंभीर है। धान आच्छादन अब संभव नहीं लगता। बिचड़े खेतों में ही पड़े सूख रहे हैं। इनका आच्छादन कर पाने की कोई गुंजाइश बनती नहीं दिख रही है। किसान शायद ही इससे उबर पाएं।

– विशुनदेव चौधरी, किसान, चोरवर, रोह

कहते हैं अधिकारी

जिले में सुखाड़ की स्थिति बन कर रह गयी है. किसानों की आर्थिक स्थिति को संभालने की गर्ज से जिला कृषि विभाग वैकल्पिक खेती से किसानों को जोड़ने पर जोर दे रहा है. इसके तहत मक्का, अरहर और कुल्थी जैसे फसलों की उपलब्धता की तैयारी चल रही है।

– संतोष कुमार सुमन, जिला कृषि पदाधिकारी, नवादा