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जिले में सात बरसाती नदियों के बावजूद बूंद-बूूंद के लिए तरस रही धरती

नवादा : जिले में सात बरसाती नदियां होने के बावजूद बूंद बूंद के लिये धरती तरस रही है. परिणाम है कि जुलाई के आधे से अधिक व श्रावण के आठ दिन व्यतीत होने के बावजूद जिले में धान की फसल पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. जिला सूखाड़ की चपेट में है तो भूगर्भीय जलस्तर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. बिजली की स्थिति अच्छी नहीं है तो डीजल की महंगाई के कारण खेती महंगा सौदा बनकर रह गया है.

कभी 200 फीट चौड़े पाट में बहने वाली नदी पर अतिक्रमण, बालू खनन से 10 फीट चौड़ी नाली बन गई है। पिछले साल जून-जुलाई में जो नदियां उफना रही थी वहां इस बार दिल दहला देने वाली वीरानगी छाई है.पानी के बाढ़ की जगह नदी में सालों पुराने गाद, घास, झाड़ी और अवैध बालू खनन से बने बड़े-बड़े गड्ढे सुखाड़ के संकेत दे रहे हैं। यहां तक कि जिले की सबसे प्रमुख सकरी नदी जिसे दक्षिण बिहार की गंगा कहा गया है वह भी बरसात के महीने में सूखी पड़ी है.

इसके अलावा नाटी, बघेल, खुरी, धनार्जय, तिलैया तथा पंचाने नदी भी पानी के लिए तरस रही है। जिले में छोटी-बड़ी सात बरसाती नदियां बहती है और इनसे सैकड़ों पईन और नाले निकाले गए है जो खेतों तक लाल पानी पहुंचाने का काम करती थी. सात बरसाती नदियां रहने बाद भी जिले की धरती बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही है।

इस साल मानसून की दगाबाजी के कारण नदिया सुखी पड़ी है. बरसात कम होने का असर तो नदियों पर पड़ता है साथ ही नदी के किनारों पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण ने नदी को जहां-तहां अवरूद्ध करके रख दिया है. पहले कम बारिश होती थी तो भी काफी समय तक नदी में जलधारा बनी रहती थी लेकिन अब जिले की नदियों का यह हाल यह है कि बारिश के 10 दिन बाद ही नदी की धारा समाप्त हो जाती है।

नाटी नदी

200 फीट से 15- 20 फीट चौड़ी रह गई है. नाटी नदी जिले के कौआकोल, रोह और पकरीबरावां के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. आज अपने अस्तित्व को बचाने को लेकर संघर्ष कर रही है. महुलियाटाड़ और मडुहर के जंगलों से निकलने वाली नदी कौआकोल के बलवा -कोनिया पर आते-आते मात्र 15-20 फीट की नाली बनकर रह गई है।

धनार्जेय नदी

जिले के बीचों-बीच बहने वाली धनार्जय नदी से सिरदला, नरहट, हिसुआ , नवादा और नारदीगंज के करीब 150 गांवों में फसलों की सिंचाई होती थी लेकिन अब यह पुरानी बात हो गई है। नदी में साल में मुश्किल से एक-डेढ माह ही पानी रहती है. परिणाम है कि नदी अब नाला के रुप में तब्दील होता जा रहा है।

खूरी नदी

जिले में सबसे ज्यादा अतिक्रमण का शिकार खुरी नदी हुआ है। नवादा शहर भी इसी नदी के किनारे पर बसा हुआ है। नदी किनारे सैकड़ों मकान अतिक्रमण कर बना लिया गए है। अकबरपुर में भी यही हाल है.अतिक्रमण के कारण खुरी नदी नाली के रूप में तब्दील होती दिख रही है। नदी की चैड़ाई खत्म होने के कारण इसमें पानी नहीं के बराबर आ पा रही है।

सकरी नदी

जिले की सबसे लम्बी और चौड़ी नदी है और इसके उफान के किस्से आज भी सुनने को मिलते हैं। इसे दक्षिण बिहार का गंगा कहा जाता है. वारिसलीगंज को बिहार के धान का कटोरा इसी के बल पर कहा जाता है लेकिन अब ऐसा नहीं रहा।

तिलैया नदी

रामायण काल का तमसा नदी अब तिलैया नदी के नाम से जानी जाती है. जिले के सिरदला, नरहट, हिसुआ और नारदीगंज के किसानों के लिए बड़ी सिंचाई परियोजना तिलैया-ढाढर परियोजना तैयार की गई थी। परियोजना तो खटाई में पड़ी है अब नदी में भी गाद और कास घास का कब्जा हो गया है। ऐसे में अब अपनी अस्तित्व की लड़ाई खुद लड़ रही है।