उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हुआ चार दिवसीय छठ महापर्व

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आरा : भोजपुर जिले के विभिन्न स्थानों पर गुरुवार को भगवान भास्कर का चार दिवसीय छठ महापर्व उदीयमान सूर्य को अर्ध्य देने के साथ ही श्रद्धा एवं शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न हो गया। छठ को लेकर व्रत धारियों ने नदी, तालाब, नहर, कुआं तथा पोखर के पास उदीयमान सूर्य को अर्ध्य देकर पूजा-अर्चना की। इसके अलावे लोगों ने अपने घर की छतों पर भी उगते सूरज को अर्घ्य दिया। इस दौरान छठ व्रतियों ने मानव तथा विश्व कल्याण तथा वैश्विक महामारी कोरोना से मुक्ति की कामना की। पर्व को लेकर पुलिस प्रशासन चौकस दिखा जगह-जगह दंडाधिकारी के साथ पुलिस बल की प्रतिनियुक्ति की गई थी।

छठ महापर्व को लेकर शहर के विभिन्न घाटों, मंदिरों एवं सड़कों को दुल्हन की तरह सजाया गया था। छठ घाट की ओर जाने वाले मार्ग पर पूजा कमेटियो, स्वयं सेवकों एवं मोहल्ले वासियों ने मिलजुल कर रंगोली के माध्यम से अपनी कला का प्रदर्शन किया जो लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ था। इसके अलावा प्रत्येक गली-मोहल्ले में छोटे-छोटे रंगीन बल्बों एवं दूधिया रोशनी से आकर्षक सजावट की गई थी।

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छठ व्रतियों ने वुधवार को अस्ताचलगामी सूर्य को महापर्व का पहला अर्घ्य भोजपुर जिले के चँदवा सूर्य मंदिर, बेलाऊर सूर्य मंदिर , कलेक्ट्रेट घाट आरा, पकड़ियाबर मनोकामना सिद्ध सूर्य मंदिर ,जगदीशपुर शिवजी के पोखरा, बिहिया सूर्य मंदिर मनोकामना सिद्ध मंदिर , गांधी घाट आरा, महुली घाट, सिन्हा घाट इत्यादि जिले के तमाम छठी घाटे में अर्पित किया गया। बता दे कि छठ पूजा एक ऐसा त्‍योहार है जो पूरे बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

यह त्योहार चार दिवसीय त्योहार है। उत्सव की शुरुआत नहाय खाय से होती है, दूसरे दिन भक्त खरना मनाते हैं। खरना का अर्थ है शुद्धि। जो व्यक्ति इस दिन उपवास रखता है वह पूरे दिन उपवास रखता है और शरीर और मन को शुद्ध करने का प्रयास करता है। इस दिन, भक्त स्पष्ट मन से अपने कुलदेवता और छठ मइया की पूजा करते हैं और उन्हें गुड़ से बनी खीर अर्पित करते हैं। तीसरे दिन (षष्ठी तिथि), संध्या अर्घ्य नामक अनुष्ठान करके भक्त सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं।

बताते चले कि प्राचीन कथा के मुताबिक प्रियंवद नाम का एक राजा था। उनकी शादी मालिनी नाम की स्त्री से हुई। शादी के सालों बाद भी प्रियंवद को संतान की प्राप्ति नहीं हुई। इस वजह से वह बहुत दुखी रहा करते थे। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से विचार विमर्श कर यज्ञ करवाने का निश्चय किया।यज्ञ की आहुति की खीर को महर्षि कश्यप ने राजा प्रियंवद की पत्नी को दिया और उस खीर के प्रभाव से उन्हें संतान के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन दुख की बात यह थी कि वह मरा हुआ पैदा हुआ। पुत्र वियोग में जब राजा ने अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया तो तभी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना वहां प्रकट हुई और उन्हें पुत्र को जीवित करने के लिए छठ व्रत करने को कहा।

इस व्रत के प्रभाव से राजा प्रियंवद का पुत्र जीवित हो गया। तब से ही छठ पूजा मनाई जा रही है। बताया जाता है कि यह ही छठी माता हैं। सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने की वजह से इन्हें छठी मैया कहकर पुकारा जाता है। वही छठ पूजा का महत्व बहुत अधिक‌ माना जाता है। छठ व्रत सूर्य देव, उषा, प्रकृति, जल और वायु को समर्पित हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से करने से नि:संतान स्त्रियों को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं।बताया जाता है कि छठ व्रत संतान की रक्षा और उनकी जिंदगी में तरक्की और खुशहाली लाने के लिए किया जाता है। विद्वानों का मानना है कि सच्चे मन‌से छठ व्रत रखने से इस व्रत का सैकड़ों यज्ञ करने से भी ज्यादा बल प्राप्त होता है। कई लोग केवल संतान ही नहीं बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि लाने के लिए भी यह व्रत रखते हैं। प्राचीन काल में सूर्य ने अपने पूर्वजों के जीवन को कैसे बचाया था। शाम की पेशकश में ज्यादातर थेकुआ (एक सूखा मीठा), नारियल और केले होते हैं, जिन्हें बांस की प्लेट पर रखा जाता है और उसे चढ़ाते हुए सूर्य को अर्पित किया जाता है।

राजीव एन० अग्रवाल की रिपोर्ट

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