महिला पहलवान ने छोड़ा बिहार
आरा : सरकार के हर वायदा को झूठा साबित करते हुए बिहार की राष्ट्रीय महिला पहलवान कैमूर जिले के रामगढ़ प्रखंड के साहूका गाँव की पूनम यादव ने कुश्ती के प्रति सरकारी उपेक्षा और आर्थिक कठिनाई के कारण राज्य छोड़कर उत्तर प्रदेश में अपने एक संबंधी के यहां रहकर गुजर- बसर कर रही है। हालांकि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उसने अपनी कुश्ती का अभ्यास जारी रखा है।
पूनम ने राज्य-स्तर पर कुश्ती प्रतियोगिताओं में सात मेडल जीता है। जिनमें पांच गोल्ड मेडल और दो सिल्वर मेडल शामिल है। लड़की होने के बावजूद पूनम यादव ने सामाजिक तानों की परवाह ना करते हुए कुश्ती जारी राखी| अभ्यास के लिए आवश्यक संसाधन नहीं होने की वजह से बिहार छोड़ना पड़ा।
वर्ष 2019 से कुश्ती के अखाडे़ में उतरने वाली पूनम कैमूर जिले में रामगढ़ कॉलेज में बीएससी पार्ट- 2 की छात्रा है। वह महज 2 वर्ष में ही राज्यस्तरीय 7 मेडल जीत चुकी है। जीत का सिलसिला वह अपने जिले कैमूर से शुरू कीं। सबसे पहले कैमूर में उप-केसरी का खिताब, इसके बाद शाहाबाद उप-केसरी और उसके बाद राज्य स्तर पर 5 गोल्ड मेडल जीत लिया।
पांच गोल्ड मेडल जीतने के बाद उसे राष्ट्रीय स्तर पर भी कुश्ती प्रतियोगिता में मौका मिला। लेकिन बिहार में महिला पहलवानों के कुश्ती के अभ्यास के लिए कोई व्यायामशाला, बेहतर कोचिंग, मैट व अन्य सुविधा नहीं होने के कारण 53 किलो भार वर्ग में वह राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतने से वंचित रह गई। पूनम को अफसोस है कि बिहार में लड़कियों के लिए कुश्ती के लिए कोच, व्यायामशाला, यहां तक की मैट की व्यवस्था नहीं है।
साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली पूनम को प्रारंभ से ही आर्थिक तंगी का सामना कर रहना पड़ रहा है। लेकिन कुश्ती के प्रति जोश कम नहीं हुआ है।
पूनम के पिता वीरेंद्र यादव ट्रक चालक और मां गृहिणी है। वह चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी है। परिवार में आर्थिक कठिनाई रहती है, पर पूनम कुश्ती छोड़ना नहीं चाहती। इस वजह से उसे पिछले साल गांव पर पिता के साथ खेती भी करना पड़ा था। कुश्ती लायक सुविधा और सरकार से कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिलने के कारण राज्य छोड़ना पड़ गया। अभी वह के मुगलसराय शहर में हनुमान नगर में अपने मामा राजू यादव के यहां रह रही है।
पूनम ने बताया कि अब तक मुझे स्थानीय स्तर पर बेहतर प्रशिक्षण मिला होता, तो राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी होती। बिहार में लड़कियों के लिए प्रशिक्षण केंद्र, कोच, मैट नहीं है। लड़कों के लिए है। समाज में आज भी महिलाओं को कुश्ती खेलने पर कई प्रकार के ताने सहने पड़ते हैं।
भोजपुरी चित्रकला सम्मान के लिए मौन प्रदर्शन
आरा : भोजपुरी चित्रकला को सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए भोजपुरी कला संरक्षण मोर्चा द्वारा आज आरा रेलवे स्टेशन पर स्टेशन प्रबंधक के कक्ष के समक्ष मुँह पर काली पट्टी बांधकर मौन प्रदर्शन किया गया।उसके पश्चात मोर्चा के चित्रकारों, कलाकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि द्वारा अपनी माँगों का ज्ञापन स्टेशन प्रबंधक प्रवीण ओझा को सौंपा गया।
मोर्चा की प्रमुख माँगों में भोजपुरी भाषी क्षेत्रों के सभी रेलवे स्टेशनों एवं मुख्य रूप से आरा रेलवे स्टेशन पर भोजपुरी चित्रकला के सशुल्क अंकन हेतु अवसर देना है। विदित हो कि विगत 15 दिनों से भोजपुरी कला संरक्षण मोर्चा द्वारा विभिन्न सकारात्मक गतिविधियों के माध्यम से पूर्व मध्य रेलवे प्रशासन से इस बात का अनुरोध किया जा रहा है कि भोजपुरीभाषी क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले सभी रेलवे स्टेशनों एवं मुख्य रूप से आरा रेलवे स्टेशन पर भोजपुरी चित्रकला को सशुल्क अंकित करने का अवसर प्रदान किया जाये।
केवल एक पारंपरिक कला को जीवन मिले बल्कि इस चित्रकला से जुड़े चित्रकारों को रोजगार की भी प्राप्ति हो।काली पट्टी बांधकर मौन प्रदर्शन करने वालों में अशोक मानव,भास्कर मिश्र,कमलेश कुंदन, विजय मेहता,रौशन राय,मनोज श्रीवास्तव,संजय कुमार सिंह,ओ पी पांडेय, रूपा कुमारी,प्रशंसा पटेल, रुखसार परवीन, रतन देवा, किशन सिंह, कमल कांत,युवा चित्रांश वाहिनी के सचिन सिन्हा, चंदन शरण आदि प्रमुख थे।इस अवसर पर भाजपा प्रदेश कार्य समिति सदस्य एवं रेलवे जोनल उपभोक्ता परामर्शदाता समिति के सदस्य सी.डी. शर्मा,कृष्णेन्दु,राजेश तिवारी,धर्मेंद्र कुमार सिंह, संतोष कुमार आदि उपस्थित थे।
राजीव एन० अग्रवाल की रिपोर्ट