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राष्ट्रकवि दिनकर जयंती के उपलक्ष्य में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दिनकर की राष्ट्रीय चेतना विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

दरभंगा : संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.राजेन्द्र साह ने कहा कि ओज, पौरुष, विद्रोह एवं हुँकार के कवि दिनकर की राष्ट्रीय चेतना मानवीय मूल्यों से अनुप्राणित है। युगधर्म के कवि दिनकर ने ‘कलम’ में अपरिमित शक्ति, तेजस्विता, जनमानस की सुषुप्त चेतना को जाग्रत करने में समर्थ, जोश-खरोश पैदा करने एवं उत्साह का अथक संचार करने में सामर्थ्यवान माना है- “कलम देश की बड़ी शक्ति है, भाव जगानेवाली/ दिल ही नहीं, दिमागों में भी भाव जगानेवाली।” दिनकर ने ‘कलम आज उनकी जय बोल’ शीर्षक गीत की रचना कर शहीदों की आहुतियों को, उनके बलिदान को जीवंत कर दिया है।

दिनकर की राष्ट्रीय चेतना का सम्बंध सिर्फ देश की सीमाओं की रक्षा से नहीं है, अपितु राष्ट्रीय-स्तर पर जो ज्वलंत विषमताएँ हैं, समस्याएँ हैं उनकी ओर इशारा करते हुए अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को मुखरित किया है। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक शोषण से लेकर किसानों-मजदूरों की दयनीय स्थिति, सामाजिक भेदभाव, साम्प्रदायिकता, युद्ध एवं शांति आदि विविध विषयों के माध्यम से अपनी प्रखर राष्ट्रीय चेतना को उभारा है। दिनकर ने तटस्थ जीवन को भी अपराध की संज्ञा दी। जहाँ अन्याय एवं अत्याचार है, वहाँ चुप्पी साधना भी प्रकारांतर से इन दुष्प्रवृत्तियों को ही प्रश्रय देना है। ‘विपथगा’ शीर्षक कविता में दिनकर का यह कहना कि ‛युवती के लज्जा-वसन बेच जब ब्याज चुकाये जाते हैं’ में आर्थिक शोषण ही नहीं, सामाजिक अनाचार की पराकाष्ठा है।

डॉ साह ने कहा कि दिनकर को किसी वाद में आबद्ध नहीं किया जा सकता। वे मार्क्सवादी हैं तो गाँधीवादी भी, युद्ध के समर्थक हैं तो उसके विरोधी भी, राष्ट्रवादी हैं तो मानवतावादी भी हैं। ‘हुंकार’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘बापू’, ‘दिल्ली’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, आदि की रचना कर दिनकर ने राष्ट्रवादी चिंतन को विस्तृत फ़लक प्रदान किया तथा मनुष्यत्व की रक्षा के लिए व्यापक दृष्टिकोण को उपस्थापित कर अपनी समर्थ रचनाशीलता का परिचय दिया।

संगोष्ठी में सह प्राचार्य डॉ०सुमन प्रसाद सुमन ने दिनकर जी को याद करते हुए कहा कि वही रचनाकार कालजयी होते हैं जिनके साहित्य में आम अवाम जीती है। दिनकर इसी प्रकार के कवि हैं। वे जनता के समर गाण के कवि हैं। दिनकर अगर याद किये जाते हैं तो कुरुक्षेत्र के लिए, हुंकार के लिए, रश्मिरथी के लिए। लोग जब भी जीवन संग्राम में होते हैं तो दिनकर को गाते हैं। यह बात दीगर है कि दिनकर जी को पुरस्कार ‘उवर्शी’ के लिए मिला। वे जनता के बीच रश्मिरथी, कुरुक्षेत्र, हुंकार में जीवित हैं। दिनकर जी के साथ ही उन्होंने मैनेजर पांडेय का भी उनके जन्मदिन पर स्मरण किया।

सहायक प्राचार्य अखिलेश कुमार ने दिनकर जी को याद करते हुए कहा कि दिनकर औदात्य के कवि हैं। वे जनपक्षधरता के कवि हैं। अपने समय के इतिहास को दिनकर जी ने कलमबद्ध किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए सहायक प्राचार्य अखिलेश कुमार राठौर ने दिनकर की रचना पर,उनकी विचारधारा पर व्याख्यान दिया। दिनकर पर अपने महत्त्वपूर्ण विचार रखनेवालों में स्नेहा कुमारी, कृष्ण कांधा झा, शिवानी कुमारी सियाराम मुखिया, अशोक कुमार, सुभाष कुमार, डॉ०ज्वालाचंद्र चौधरी , धर्मेन्द्र दास, चन्द्रशेखर आजाद तथा समीर कुमार आदि प्रमुख थे|

दिनकर जयंती पर आयोजित भाषण प्रतियोगिता के विजेता इस प्रकार हैं – स्नेहा कुमारी – प्रथम स्थान, शिवानी कुमारी एवं सुभाष कुमार संयुक्त रूप से द्वितीय स्थान पर रहे। कृष्णकांधा कुमार एवं संजय कुमार तृतीय स्थान पर रहे। निबन्ध प्रतियोगिता के विजेता इस प्रकार हैं : स्तुति कुमारी- प्रथम स्थान, स्नेहा कुमारी और दीपक कुमार संयुक्त रूप से -द्वितीय स्थान तथा सुभाष कुमार और ब्रह्मदेव यादव तृतीय स्थान पर रहे। धन्यवाद ज्ञापन कनीय शोधप्रज्ञा पुष्पा कुमारी ने किया। कार्यक्रम में कनीय शोधप्रज्ञ सुशील कुमार मंडल, मंजू कुमार सोरेन एवं छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।