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हाथी हमारी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय धरोहर- चौबे

पटना : केंद्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्वनी कुमार चौबे ने हाथी दिवस पर मंत्रालय द्वारा इंदिरा पर्यावरण भवन में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि हाथी हमारी सांस्कृतिक आध्यात्मिक और राष्ट्रीय धरोहर है, जिसके संरक्षण और संवर्धन के लिए हमने धरातल पर ठोस काम किया है। उन्होंने कहा कि “विश्व हाथी दिवस के अवसर पर हमारे पौराणिक ग्रंथों से लेकर आज तक, उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक में हाथी का महत्व जन जन तक समझा जाता रहा है।भारतीय संस्कृति की परम्परा में हाथी बहुत ही पूज्नीय प्राणी है, पवित्र जीव है। हाथी का उपयोग हम विभिन्न शुभ अवसर पर करते हैं”।

हाथी का संरक्षण व संवर्धन

हाथी के संरक्षण व संवर्धन के संबंध में चौबे ने कहा कि “1980 में हमारे देश में लगभग 15000 हाथी थे, परंतु चार दशक में हमारे प्रयास से इनकी संख्या बढ़कर 30,000 हो गयी है अर्थात 40 वर्षों में हमने हाथियों की संख्या दूनी कर दी है। यह हमारे हाथी संरक्षण के प्रयासों का परिणाम है। पिछले पाँच दशकों में हमारे देश में जनसंख्या में पर्याप्त बढ़ोत्तरी हुई है।

हाथियों को विलुप्त होने से बचाने के उपाय

केंद्रीय मंत्री चौबे ने बताया कि हाथियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए 1992 में हाथी प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। इसी कड़ी में हमने हाथियों के लिए संरक्षित क्षेत्र बनाए। आज हमारे पास 32 संरक्षित क्षेत्र हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल लगभग सत्तर 70,000 स्क्वायर किलोमीटर है।

पहला संरक्षित क्षेत्र सिंहभूमि हमारे बिहार में था, आजकल झारखंड में है। हम प्रयास कर रहे हैं कि संरक्षित क्षेत्रों को हाथियों का इकोलॉजिकल निवास बनाया जाए, जिससे उस क्षेत्र में हाथियों का रहन-सहन उनके अनुकूल हो सके, हाथियों को भी वेटरनरी सुविधा उपलब्ध कराएं, जिससे हथियों की जन्म दर बढ़ाने एवं प्रजनन के लिए अनुकूल स्थिति पैदा की जा सके। वाइल्डलाइफ बोर्ड के सुझाव पर हमने हाथी को 2010 में राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया।

वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट के साथ मिलकर 2011 में “हाथी मेरे साथी” प्रोजेक्ट शुरू किया जिसका उद्देश्य लोगों में हथियों के प्रति जागरूकता पैदा करना तथा हाथियों के प्रति मित्रवत भाव तेज करना था। पूरे भूमंडल का इको सिस्टम अच्छी तरह से चलता रहे, इसके लिए हर प्रकार के जीवों का संतुलन सही अनुपात में होना जरूरी है, इसीलिए इस वर्ष हम जो हाथी दिवस मना रहे हैं उसकी थीम हैः- ईको सिस्टम बचाएं, हाथी बचाएं।

हाथियों से संबंधित जो भी प्रोजक्ट चल रहे हैं- चाहे वे उनके संरक्षण के प्रयास हों या मानव और हाथी के संघर्ष को रोकने का प्रयास हो, सब पर समान ध्यान रखा गया है। हमारे मंत्रालय का प्रयास है कि वह हाथी प्रोजेक्ट के नीति निर्माताओं, जंगल प्रबंधकों, जंगल की सीमा पर रहने वाले जनसमुदाय एवं हाथियों के सभी हितधारकों के मध्य सेतु का काम करें।

इसके लिए हमारा मंत्रालय बिल्कुल ही अभिनव एवं कम लागत से समस्या के निदान का प्रयास कर रहा है। इन प्रयासों में हाथियों के लिए पानी,उनका चारा एवं खाद्यान्न उपलब्ध कराना है। राज्य सरकारों के वन विभाग को सहायता करना है। वैसे हमने चार दशक में हाथियों की संख्या दूनी कर दी है, किंतु हाथी संरक्षण में पिछले तीन वर्षों में जो कार्य किये गये हैं उन्हें बहुत ही सराहनीय कदम कहा जा सकता है।

इसके परिणाम आने वाले समय में हाथी संरक्षण में मील का पत्थर साबित होगें। इसकी मुख्य बातों मेँ उन स्थानों की पहचान करना, उन्हें चिन्हित करना है, जहाँ हाथी और मनुष्य के हित टकराते हैं, वैज्ञानिक ढंग पर हाथियों की संख्या की गणना करनाहै। अभी तक हाथियों की सही संख्या की गिनती के लिए एक कोई वैज्ञानिक एवं एक जैसी व्यवस्था नहीं है। एक राज्य से दूसरे राज्य में हाथियों के आवागमन के लिए समितियों का गठन करनाहै। ऐसे हाथी जो आजकल महावतों के पास हैं, उनके लिए भी प्रबंध समितियों का गठन करना है। माइक को फिर से शुरु करना एवं इसे अधिक प्रभावी बनाना है।

हमने हाथियों का संरक्षण का प्रयास जंगल तक ही सीमित नहीं रखा है। उनके आवागमन में जिस किसी भी मंत्रालय या विभाग के हित टकराते हैं, हमने उन सबका सहयोग लिया है। हमने रेलवे, कृषि, राजमार्ग, विद्युत विभागों से सम्पर्क किया है। सभी हितधारकों के मध्य जागरूकता पैदा की जा रही है और उनके प्रयासों की मोनिटरिंग की जा रही है। विश्व के जिन देशों की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, उनमें भारत एक है। हम देश की विकास की आकांक्षा, देश के नागरिकों के जीवन स्तर को बेहतर करने की इच्छा को भली-भाँति समझते हैं।

चौबे ने कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व मे भारत विकासशील देश से विकसित देश बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, परंतु इस विकास के साथ साथ वन्य जीवों के हित के प्रति भी उतने ही सजग हैं, सचेत हैं, जितना की विकास के लिए। जब हमारे माननीय प्रधानमंत्री कहते हैं ‘सबका साथ सबका विकास’ तो उनका विकास का यह नारा केवल मानव विकास तक सीमित नहीं हैं। हमारी इस धरती पर जो भी प्राणी हैं उनके विकास की बात हम कहते हैं।