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संस्कृति

मिथिला में राम

जब हम कोसलपुरी अयोध्या का नाम लेते हैं, उस समय विदेह-पुरी मिथिला का भी स्मरण हो आता है। ये दोनों ही धार्मिक पुरियाँ हर काल में हमारे लिए प्रेरणा एवं संबल का स्रोत रही हैं। यह वर्तमान में उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई का इलाका है जिसे मिथिला या मिथिलांचल के नाम से जाना जाता था। मिथिला प्राचीन भारत में एक राज्य था। मिथिला की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परंपरा के लिये भारत और भारत के बाहर जाना जाता रहा है। इस इलाके की प्रमुख भाषा मैथिली है। धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका उल्लेख रामायण में मिलता है। मिथिला का उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है।
कुछ दिनों तक यहाँ तीर-भुक्ति (तिरहुत) की भी राजधानी स्थित थी। इसीलिए लोग कभी-कभी इस पुर को तीरभुक्ति भी कहते थे।
मिथिला नरेश राजा जनक थे। जनक की पुत्री सीता थी। सीताजी का प्रादुर्भाव सीतामढ़ी (भारत) के पास पुनौरा गाँव में हुआ था और पालन-पोषण जनकपुर नगर (नेपाल) में। सन 1816 में ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल नरेश के बीच हुई सुगौली संधि के बाद मिथिला का आधा भारतीय हिस्सा नेपाल में चला गया। राष्ट्र पृथक हुआ, पर दोनों ओर के मिथिलावासी सांस्कृतिक दृष्टि से एक रहे। दोनों ओर के लोग इस आसानी से सीमा पार आते-जाते हैं, जैसे खेतों की मेड़ लाँघ रहे हों। उन्हें भगवान राम के रूप में प्रतापी दामाद पाने का बहुत गौरव है। यहाँ तक कि आज भी लोकगीतों में हर दूल्हे में राम की ही छबि देखी जाती है। लेकिन उनका दृढ़ विश्वास है कि अवध-नरेश राम जो कुछ हैं, वह मिथिला की बेटी जनक-दुलारी के प्रताप से। जनकपुर के लोग सीता को जगज्जननी मानते हैं और जनकपुर को सभी जाति-वर्ग के लोगों की ननिहाल। इसलिए उनका मानना है कि जो यहाँ नहीं आता, वह अगले जन्म में कौआ होता है! यहाँ तक कि जो जगन्नाथपुरी जाते हैं, उन्हें जनकपुर जाना ही पड़ता है, क्योंकि वहाँ अँटका (जूठन प्रसाद) खाने से जो दोष लगता है, उसका निवारण वहीं होता है। मिथिलावासियों की मान्यता है कि श्रीराम की जननी कौसल्या तो इस लोक को छोड़कर पतिलोक में चली गयीं, मगर श्रीकिशोरी जी की माता पृथ्वी जन कल्याण के लिए कल्पांत तक यहीं रहेगीय यह पत्थर की लकीर है।
विवाह पंचमी उत्सव के तौर पर मनाया जाता है, इस दिन भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था. इस उत्सव को सबसे अधिक नेपाल में मनाया जाता है,
माता सीता ने एक बार मंदिर में रखे भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था, जिसे भगवान परशुराम के अलावा किसी ने नहीं उठाया था, तब ही राजा जनक ने निर्णय लिया था, कि वे अपनी पुत्री के योग्य उसी मनुष्य को समझेंगे, जो भगवान विष्णु के इस धनुष को उठाये और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाये।
स्वयंबर का दिन तय किया गया चारों और संदेश भेज दिया गया कई बड़े बड़े महारथी इस स्वयम्बर का हिस्सा बने जिसमें महर्षि वशिष्ठ के साथ भगवान राम और लक्षमण भी दर्शक के रूप में शामिल थे. कई राजाओं ने प्रयास किया लेकिन कोई भी उस धनुष को हिला ना सका प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर की बात हैं. इस प्रदर्शन से दुखी होकर राजा जनक ने करुण शब्दों में कहा कि क्या कोई राजा मेरी पुत्री के योग्य नहीं हैं. उनकी इस मनोदशा को देख महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम से प्रतियोगिता में हिस्सा लेने कहा. गुरु की आज्ञा का पालन करते हुये भगवान राम ने शिव धनुष को उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे, लेकिन वह धनुष टूट गया और इस प्रकार स्वयम्बर को जीत उन्होंने माता सीता से विवाह किया. माता प्रसन्न मन से भगवान राम के गले में वरमाला डाली.मिथिला के विवाह लोकगीत में राम का वर्णन –
आजु मिथिला नगरिया निहाल सखिया, चारों दुलहा में बड़का कमाल सखिया!
शिश मणी मौरिया, कुण्डल सोहे कनमा, कारी कारी कजरारी जुलमी नयनमा, लाल चंदन सोहे इनके भाल सखिया, चारों दुलहा में बड़का कमाल सखिया!
श्यामल-श्यामल, गोरे- गोरे, जोड़ीया जहान रे, अँखिया ना देखनी सुनलीं ने कान हे जुगे जुगे, जीबे जोड़ी बेमिसाल सखिया, चारों दुलहा में बड़का कमाल सखिया!
गगन मगन आजु, मगन धरतिया, देखि देखि दुलहा जी के, साँवर सुरतिया, बाल वृद्ध, नर-नारी, सब बेहाल सखिया, चारों दुलहा में बड़का कमाल सखिया!
जेकरा लागी जोगी मुनि, जप तप कईले, से मोरा मिथिला में पाहुन बन के अईले, आजु लोढ़ा से सेदाई इनके गाल सखिया.. चारों दुलहा में बड़का कमाल सखिया!
संपूर्ण मिथिला के लोग राम के भक्त हैं। श्रीराम जब मिथिला में आए तब सारे मिथिलावासी अपना कार्य छोड़कर राम के दर्शन के लिए दौड़ पड़े।
भगवान राम की शादी मिथिला में होने के कारण यहां दामाद के उत्कृष्ट सत्कार की प्रथा है।दामाद को राम का सदृश और बेटी को सीता सदृश सम्मान है। इन्हें अतिथियों में अतिविशिष्ट स्थान हासिल है। मिथिला में छप्पन भोग का वास्तविक स्वरूप दामाद के भोजन के दौरान दिखता है।
​मिथिलांचल में दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश संग होती है राम व सीता की भी पूजा की जाती है। होली के अवसर पर फाग गायन में श्मिथिला में राम खेलत होली..श् प्रचलन है। विवाह के अवसर पर नव दम्पत्ति को सीता और राम की जोड़ी की संज्ञा दी जाती है।राम का जहाँ स्वयंवर में धनुष भंग की वीरता है वहीं के दामाद के रूप में धीरता है।
जगदगुरु रामभद्राचार्य जी ने कहा है कि संपूर्ण मिथिला के लोग राम के भक्त हैं। श्रीराम जब मिथिला में आए तब सारे मिथिलावासी अपना कार्य छोड़कर राम के दर्शन के लिए दौड़ पड़े।
गोस्वामी जी ने भी लिखा है कि –
‘धाए धाम काम सब त्यागी मनहु रंक निधि लूटन लागी।’
वहां के लोग इस तरह दौड़ पड़े जैसे कोई रंक खजाना लूटने के लिए दौड़ पड़े। वहीं, युवतियां झरोखे से राम का दर्शन करने लगीं। गोस्वामी जी ने अपनी चैपाई में लिखा है कि –
युवती भवन झरोखन लागी। निरखहीं राम रूप अनुरागी।
तात्पर्य सह है कि युवती का मतलब सिर्फ बाला नहीं। संतों ने कहा है कि युवती वही है कि जिसका राम भक्त पुत्र हो। इस संदर्भ में भी गोस्वामी जी ने सिद्धांत दिया है कि-
पुत्रवती युवति जग सोई,
रघुपति भगत जासु सूत होई।
जो राम के प्रेम का अनुरागी हैं, वे संसार के संपूर्ण सुख साधन और संपत्ति को त्यागकर राम के रूप के प्रति स्नेह रखते हैं। मिथिला के बच्चे भी राम के आगमन की सूचना पर उनके संग हो गए। सभी बालक भगवान के संग लग गए।
हमारे साहित्य एवं मौखिक परम्पराओं में मिथिला के राजा जनक उतने ही जीवित हैं, जितना कि अयोध्या के राजा दशरथ। वे अपनी दार्शनिक अभिरुचि तथा अनासक्ति के लिये प्रसिद्ध थे।
रामायण के अनुसार मिथिला के नागरिक शिष्ट एवं अतिथिपरायण थे। इस ग्रन्थ के अनुसार महर्षि विश्वामित्र राम एवं लक्ष्मण को साथ लेकर चार दिनों की यात्रा करने के पश्चात् मिथिला पहुँचे थे।

(लेखक – डाॅ. शंकर लाल,  पोस्ट डॉक्टरल फेलो, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी)