सिद्धू ने कैप्टन के छुए पैर! क्या विरोधाभासों से उबर गई कांग्रेस?

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नयी दिल्ली : नवजोत सिद्धू ने आज कैप्टन अमरिंदर सिंह की उपस्थिति में पंजाब प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाल लिया। इस दौरान आयोजित चाय पार्टी में नवजोत सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के पैर छुए तथा इससे राहुल गांधी भी गदगद नजर आए। ऊपरी तौर पर यही लगता है कि पंजाब कांग्रेस में पिछले लगभग ढाई माह से चली आ रही तनातनी खत्म हो गई। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? शायद नहीं, क्योंकि इस अवसर जो तकरीर कैप्टन और सिद्धू की ओर से दी गई उसमें एक दूसरे के लिए तल्खी साफ दिखी। यह तल्खी महज पंजाब तक सीमित है, ऐसा नहीं है। कमोबेश भारत के सभी राज्यों में इस 100 साल पुरानी पार्टी के भीतरी हालात यही हैं।

राजस्थान में सचिन पायलट बने गंभीर चुनौती

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस समय भारत में कांग्रेस एक संक्रमण के दौर से गुजर रही है। पार्टी करीब-करीब हर राज्य में एक राजनीतिक विरोधाभास की शिकार है। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री का पद या मनमाफिक रुतबा नहीं मिला तो कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा में चले गए। राजस्थान में पिछले छह महीने में दो बार सचिन पायलट गहलोत सरकार के खिलाफ बगावती तेवर अपनाकर विरोध जता चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस के पास अपने नए और पुराने नेताओं में तालमेल बनाए रखने वाली जड़ी बूटी खत्म हो गई है?

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कैप्टन फिलहाल शांत पर पंजाब में तल्खी बरकरार

पंजाब में आज बतौर कांग्रेस अध्यक्ष ताजपोशी के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाषण में सिद्धू को सीख देते हुए कहा कि आप देखिएगा अगले चुनाव में कोई नहीं रहेगा। जब आपका जन्म हुआ तो मेरा कमीशन हुआ था। इन सब बातों से कैप्टन ने ये बताने की कोशिश की कि सिदधू जब पैदा हुए तब से उनके परिवार को वो जानते हैं। मंच से कैप्टन ने दो-तीन बार कहा कि सुनो सिद्धू। लेकिन सिद्धू इस दौरान इधर उधर देखते रहे। वहीं मंच से सिद्धू ने जब कार्यकर्ताओं को संबोधित किया तो उनकी बातों में भी तल्खी दिखी। ऐसा साफ लग रहा था जैसे कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से नवजोत सिंह सिद्धू शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। दूसरी तरफ कैप्टन अपने प्रदेश अध्यक्ष को फूटी आंखों देखना नहीं चाहते। यह भी एक प्रयोग ही है कि अपने नेताओं को मनाने के लिए कांग्रेस को पंजाब में चार कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाने पड़े हैं।

पुराने कांग्रेसी निराश, नए नेताओं में तालमेल नहीं

नाम नहीं छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक पुराने महासचिव ने बताया कि कांग्रेस 100 वर्ष पुरानी और सबको साथ लेकर चलने वाली पार्टी है। हम कोई तानाशाह नहीं हैं। बहुत कुछ परंपराएं लेकर चलनी पड़ती है। लेकिन इसके साथ ही वे ये भी सवाल उठाते हैं कि परंपरा लेकर चलने वाले से पूछ लीजिए कि हासिल क्या हुआ? उन्होंने कहा कि मुझे यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि हम रास्ते से भटके थे, भटकते चले जा रहे हैं। जब तक हम राजनीति में समय के साथ तालमेल नहीं बिठा पाएंगे, भटकाव बना रहेगा।

बिना किसी होमवर्क के लिये जा रहे निर्णय

कर्नाटक कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि जो फैसले समय पर लेने चाहिए, वह नहीं हो पाते। जिनके लिए कुछ इंतजार किया जाना चाहिए, वह पहले ले लिए जाते हैं। यही कांग्रेस पार्टी की नियति बन गई है। वह कहते हैं कि इस समय संगठनात्मक स्तर पर कुछ बड़े और कड़े फैसले लेने की जरूरत है। ये फैसले लंबे समय से अटके हैं। इसका असर पार्टी के कामकाज पर पड़ रहा है, लेकिन नहीं लिए जा रहे हैं। वहीं पंजाब में कैप्टन की जिद और नवजोत सिंह सिद्धू के दबाव में पार्टी ने समस्या का इस तरह से हल निकाल दिया। कई राज्यों में तो हमने ऐसे नेताओं के हाथ में कमान दे दी है, जिसका अभी तक पार्टी का निचला कार्यकर्ता नाम ही नहीं जानता।

क्या कांग्रेस अध्यक्ष पद का रुतबा घट रहा है?

कांग्रेस अध्यक्ष पद का रुतबा घटने के सवाल पर एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री कहते हैं कि इसका जवाब देना मुश्किल है। इसे बस इतने से समझिए कि जब आप सत्ता में होते हैं तो एक हनक होती है। सब आपकी सुनते हैं। जब आप बाहर होते हैं तो स्थितियां बदल जाती हैं। बदली परिस्थितियों में कांग्रेस अध्यक्ष के निर्णय लेने, संदेश भिजवाने, बात करने के बाद भी यदि पार्टी का कोई नेता अपनी चलाना चाहता है तो इसका अर्थ आप खुद लगा सकते हैं। हालांकि वह इसमें एक बात और जोड़ते हैं। कहते हैं कि राजनीति में लोग अपने लिए ज्यादा जीने लगे हैं। वह इसके लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद का उदाहरण देते हैं। राज्यसभा सदस्य का कहना है कि हमारे ये दोनों युवा नेता कांग्रेस अध्यक्ष के परिवार के सदस्य की तरह से थे, लेकिन पार्टी छोड़कर चले गए।

संगठन की बजाए मोदी विरोध की गलती

बिहार कांग्रेस के एक पुराने नेता ने कहा कि मेरे विचार में एक बड़ी गलती हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को घेरने के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के संगठन और जमीन के स्तर से बदलाव पर विशेष ध्यान देना होगा। हमारी पार्टी ऐसा नहीं कर पा रही है। यह केवल प्रधानमंत्री मोदी की कटु आलोचना करके भाजपा से राजनीतिक मुकाबला करना चाहती है। पता नहीं क्यों मुझे लग रहा है कि ऐसा करके हम भाजपा से चुनाव नहीं जीत सकते। बिना संगठन में धार दिए कांग्रेस जैसी पुरानी राजनीतिक पार्टी को अपना लक्ष्य नहीं मिल सकता।

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