पटना : बिहार के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति अनियमितता के आरोपों से घिरे हैं। राज्य के एक आरटीआई कार्यकर्ता ने इस राजभवन, शिक्षा विभाग, कई विश्वविद्यालयों से प्राप्त साक्ष्य और अखबारों में प्रकाशित खबरों के आधार पर कुलाधिपति पर गंभीर आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास त्राहिमाम संदेश भेजा है। उच्च शिक्षा को राज्य सरकार के विभागीय हस्तक्षेप से बचाने के ध्येय से इसे राजभवन के अधीन रखा गया। इस उम्मीद में कि पारदर्शी ढंग से राज्य के विश्वविद्यालयों का संचालन हो, साथ ही राजनीति व अफसरशाही इस पर हावी न हो। लेकिन, बिहार के विश्वविद्यालयों के लिए मानो रक्षक ही भक्षक बन गए हैं।
प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी में जो आरोप कुलाधिपति पर लगाए गए हैं, उनके समर्थन में संलग्नक भी हैं, जो उन आरोपों की पुष्टि करते हैं। जैसे एक बड़ा आरोप मगध विश्वविद्यालय के कुलपति पर है। वहां के कुलपति प्रो. राजेंद्र प्रसाद ने बिना निविदा के ओएमआर शीट व प्रश्न संबंधी कार्य के लिए एक कंपनी ‘इंफोलिंक कंसल्टेंसी सर्विसेज प्रा. लिमिटेड’ को 16 करोड़ रुपए का अनियमित भुगतान कराया, जबकि सरकार का स्पष्ट निर्देश है कि सभी खरीद जेम पोर्टल से होगा। इस कंपनी का संबंध कुलाधिपति फागू चौहान के पुत्र रामविलास चौहान से है।
जब इस भुगतान को लेकर मगध विवि के कुलसचिव डॉ. विजय कुमार और वित्त परामर्शी मधुसूदन ने विरोध किया, तो तत्काल उन दोनों का ट्रांसफर कर दिया गया। 5 मार्च 2021 को इन दोनों को कुलपति ने बुलाकर 16 करोड़ वाले फाइल को निपटाने को कहा था। इनकार करने पर अपशब्द कहा और हटाने की धमकी दी थी। इसके बाद कुलसचिव ने राजभवन के प्रधान सचिव व शिक्षा सचिव को पत्र लिखा था। कुलपति पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? इस पर जानकारों का कहना है कि मगध विवि के कुलपति प्रो. राजेंद्र प्रसाद की पहुंच कुलाधिपति तक है। यह भी गौर करने वाली बात है कि कुलाधिपति व मगध विवि के कुलपति दोनों यूपी के पूर्वांचल क्षेत्र के रहने वाले हैं।
प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह फिलहाल ललित नारायण मिथिला विवि, दरभंगा के कुलपति हैं, साथ ही वे पाटलिपुत्र विवि, आर्यभट्ट ज्ञान विवि, पटना एवं मौलाना मजहरुल हक अरबी-फारसी विवि के प्रभारी कुलपति हैं। इस कुलाधिपति के कार्यकाल में उनका शुरू से रेकॉर्ड है कि वे एक से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति रह रहे हैं। इसके अलावा वे कुलाधिपति द्वारा गठित कुलपति नियुक्ति सर्च कमिटि के अध्यक्ष बने बैठे हैं। सबसे गौर करने वाली बात है कि प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह पर फर्जीवाड़ा करने को लेकर एफआईआर दर्ज है। कुलपति बनने की उनकी योग्यता भी संदेह के घेरे में है।
कुलपतियों के अलावा कुलसचिवों पर भी अतिरिक्त काम लादना कुलाधिपति की कार्यशैली है। जैसे पाटलिपुत्र विवि के कुलसचिव जितेंद्र कुमार पर एक साथ ही पटना विवि एवं मगध विवि के कुलसचिव का प्रभार दिया गया है। सवाल यह उठता है कि करीब सवा सौ कॉलेजों वाले पाटलिपुत्र विवि स्वयं इतना बड़ा है, तो उसके कुलसचिव को पटना विवि एवं मगध विवि का प्रभार क्यों दिया गया?
कुलाधिपति के एक और चहेते व सर्च कमिटि के सदस्य हनुमान प्रसाद पांडेय फिलहाल बीआरए बिहार विवि के कुलपति हैं। इनकी योग्यता भी संदेह के घेरे में है।
विगत दो वर्षों में बिहार के विश्वविद्यालयों में एक ट्रेंड देखा जा रहा है। एक व्यक्ति को दो-तीन अथवा चार विश्वविद्यालयों का प्रभार दे दिया जा रहा है। चाहे वे कुलपति के रूप में हों अथवा कुलसचिव। ये नियुक्तियां पिक एंड चूज़ की ओर इशारा करती हैं।