आरा : विश्व प्रसिद्द मधुबनी पेंटिंग के कई आयामों से आरा रेलवे स्टेशन को सजाया जा रहा है| अब यात्री पूर्व-मध्य रेल, हाजीपुर के दानापुर रेल मंडल अंतर्गत आरा के प्लेटफार्म नंबर 4 की बाह्य और आतंरिक दीवारों को रामायण, महाभारत एवं भागवत से उद्धरित विभिन्न कथानकों का मधुबनी पेंटिंग द्वारा सजाया जा रहा है।अब देश के कई बड़े रेलवे स्टेशन की तर्ज़ पर आरा रेलवे स्टेशन पर भी मधुबनी रंग भरी पेंटिंग संस्था द्वारा मधुबनी पेंटिंग बनायी जा रही है। प्रियंका ठाकुर के नेतृत्व में छह सदस्यीय टीम ने आरा रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 4 पर मधुबनी पेंटिंग बनाने का काम शुरू कर दिया है| इसे पूरा होने में करीब 15 दिन लगेंगे। प्रियंका ठाकुर के दल में इनके अतिरिक्त विनय कुमार, विनीता कुमारी, प्रीति कुमारी, चन्द्र कुमारी तथा रिजवी हैं।
प्रियंका ठाकुर ने बताया कि भारत रचनात्मकता, कला और संस्कृति का देश है. मधुबनी पेंटिंग भारत और विदेशों में सबसे प्रसिद्ध कलाओं में से एक है. इस चित्रकला की शैली को आज भी बिहार के कुछ हिस्सों में प्रयोग किया जाता है, खासकर बिहार के मिथिला क्षेत्र में| समृद्धि और शांति के रूप में भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इन कलाओं की इस अनूठी शैली का इस्तेमाल महिलाएं अपने घरों और दरवाजों को सजाने के लिए किया करती हैं।
वह अपनी टीम के साथ आरा रेलवे प्लेटफार्म नंबर 4 के कमरों और दीवारों पर मधुबनी पेंटिंग बनाने के लिए आई है| उन्होंने बताया कि मधुबनी पेंटिंग प्राकृतिक रंगों से बनी लोक चित्रकला शैली है जिसकी उत्पत्ति उत्तर बिहार के मधुबनी में हुई थी | इसे मिथिला चित्रकारी भी कहते हैं| इसके अंतर्गत चित्रकारी को दीवार पर उकेरा जाता है, जो अन्य चित्रों की अपेक्षा कलात्मक व रचनात्मक होता है। इसमें चित्रकला को चिकनी मिट्टी तथा गाय के गोबर के मिश्रण से बनाया जाता है| यह कला प्रकृति और पौराणिक कथाओं की तस्वीरों विवाह और जन्म के चक्र जैसे विभिन्न घटनाओं को चित्रित करती हैं।
मूल रूप से इन चित्रों में कमल के फूल, बांस, चिड़िया, सांप आदि कलाकृतियाँ भी पाई जाती है. इन छवियों को जन्म के प्रजनन और प्रसार के प्रतिनिधित्व के रूप में दर्शाया गया हैं| मधुबनी पेंटिंग सामान्यतया भगवान कृष्ण, रामायण के दृश्यों जैसे भगवान की छवियों और धार्मिक विषयों पर आधारित हैं. इतिहास के अनुसार, इस कला की उत्पत्ति रामायण युग में हुई थी, जब सीता के विवाह के अवसर पर उनके पिता राजा जनक ने इस अनूठी कला से पूरे राज्य को सजाने के लिए बड़ी संख्या में कलाकारों का आयोजन किया था।
मधुबनी पेंटिंग में खासतौर पर कुल देवता, हिन्दू देव-देवताओं की तस्वीर, प्राकृतिक नजारे जैसे- सूर्य व चंद्रमा, धार्मिक दृश्यों का चित्रण होता है| परन्तु आरा रेलवे स्टेशन पर सीता-राम, राधा-कृष्ण, जयमाल, डोली एवं जंगल इत्यादि के दृश्य उकेरे जाते हैं| मधुबनी पेंटिंग की विशेषता के बारे में उन्होंने बताया कि हर पेंटिंग की तरह मधुबनी पेंटिंग की भी अपनी विशेषता है| प्रियंका ठाकुर ने बताया कि मधुबनी पेंटिंग में लीनिंग, कलर कॉम्बिनेशन की खूबसूरती है जो अलग तरह का होता है| इसमें आँखे विशेष होती हैं जो इसे अन्य पेंटिंग से अलग करती है|
उन्होंने बताया की इसके पूर्व उनलोगों ने पटना जंक्सन, पटना एम्स, सेंट्रल अस्पताल में भी मधुबनी पेंटिंग बना चुके हैं| इस अवसर पर आरा स्टेशन के स्टेशन प्रबंधक प्रवीण कुमार ओझा बताया कि चार नंबर प्लेटफार्म पर बन रही मधुबनी पेंटिंग से आरा रेलवे स्टेशन की खूबसूरती बढ़ जाएगी। इसमें वेटिंग रूम के भीतर और बाहर के पुरे एरिया में पेंटिंग बनायी जा रही है| इसके साथ ही इस पेंटिंग से यात्री रु-ब-रु हो पायेंगे।
यहाँ यह बताना जरूरी है कि 1930 से पहले मधुबनी क्षेत्र के बाहर कोई भी इस दुर्लभ सजावटी पारंपरिक कला को नहीं जानता था. 1934 में बिहार को बड़े भूकंप का सामना करना पड़ा था. मधुबनी क्षेत्र के ब्रिटिश अधिकारी विलियम जी आर्चर जो भारतीय कला और संस्कृति के बहुत शौकीन थे, ने निरीक्षण के दौरान मधुबनी की क्षतिग्रस्त दीवारों पर इस अनूठी कला को देखा था.उस समय यह लोगों की जानकारी में आई।
मधुबनी पेंटिंग दो तरह की होतीं हैं- भित्ति चित्र और अरिपन. भित्ति चित्र विशेष रूप घरों में तीन स्थानों पर मिटटी से बनी दीवारों पर की जाती है: परिवार के देवता / देवी, नए विवाहित जोड़े (कोहबर) के कमरे और ड्राइंग रूम में. अरिपन (अल्पना) कमल, पैर, आदि को चित्रित करने के लिए फर्श पर लाइन खींच कर बनाई जाने वाली एक कला है. अरिपन कुछ पूजा-समारोहों जैसे पूजा, वृत, और संस्कारा आदि विधियों पर की जाती है।
राजीव एन० अग्रवाल की रिपोर्ट