पटना। कालीदास का वर्तमान डाक पता क्या है? इसका जवाब किसी के पास नहीं होगा, क्योंकि आज की तारीख में हमारे पास कालीदास हैं ही नहीं। चार सौ साल पहले एक कालीदास हुए। उन्होंने जितना कहा, हम आज पर स्वयं को वहीं तक सीमित किए हैं। वहां से आगे बढ़कर सोचने का साहस नहीं करते हैं।
उक्त बातें, राज्यसभा सांसद प्रो. राकेश सिन्हा ने रविवार को कहीं। राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद् द्वारा आयोजित वार्षिक सम्मेलन के समापन समारोह में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। विषय था— समाज विज्ञान और राष्ट्रीय पुनरुत्थान।
दिल्ली विवि में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक प्रो. सिन्हा ने वैयाकरण पाणिनी, कलहन और कालीदास का उदाहरण देते हुए चिंता व्यक्त की कि आज हमने खुद को एक दायरे में सीमित कर लिया है। उससे परे जाकर हम सोचना नहीं चाहते। सच है कि हम एक महान सभ्यता थे, जहां चाणक्य, पाणिनी, आर्यभट्ट, कलहन, कालीदास जैसे विद्वान हुए। लेकिन, आज उनका पोस्टल एड्रेस क्या है? क्या हमलोगों में से कोई पाणिनी या कालीदास बनने की क्षमता रखता है? अगर नहीं, तो यह चिंता की बात है। हम में से ही किसी को आगे बढ़कर पाणिनी, चाणक्य या कालीदास बनना होगा।
कुछ यूरोपिय विद्वानों ने भारतीय समाज के बारे में राय दे दी, हम उसी को अंतिम सत्य मानकर जीने लगे। अमेरिका व यूरोप खुद के गुणगान में लगे रहते हैं। हम भी उनकी नकल करते हैं। कहीं भी मौका मिले हम बस अपना गुणगान करने लगते हैं।
सांसद ने महात्मा गांधी के जीवन में 1931 में घटी तीन घटनाओं का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे गांधी जी ने इरविन की हथेली में एक मुट्ठी नमक डालकर, ब्रिटिशकालीन नमक कानून का विरोध किया था। फिर वॉयसराय से मिलने के लिए शिमला में 6 मील पैदल चले थे और कैसे लंदन में जॉर्ज पंचम से मिलते समय कपड़ों को लेकर औपनिवेशवाद को बौना साबित कर दिया था। हमें गांधी जी के इन कृतित्वों से सीखना चाहिए।
प्रो. सिन्हा ने राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद् द्वारा आयोजित कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि परिषद के समक्ष कई चुनौतियां है, जिसे आनेवाले समय में पूरा किया जाना है। वे इसमें सहयोग के लिए तैयार हैं।
समापन समारोह को पाटलिपुत्र विवि के कुलपति डॉ. जीसीआर जायसवाल, परिषद के महामंत्री एडीएन वाजपेयी, पीवी कृष्णभट्ट, आईसीएसएसआर के सदस्य सचिव डॉ. वीके मल्होत्रा, यूजीसी सदस्या डॉ. शीला राय आदि ने भी संबोधित किया।
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