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“उमानाथ-महादेव शंकर” पर जलाभिषेक कर श्रद्धालुओ ने माँगी मनोकामना

बाढ़ : पावन महाशिवरात्रि पर “उमानाथ-महादेव शंकर”पर हजारों श्रध्दालुओं ने जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना करते हुये भगवान शंकर से अपनी-अपनी मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना की। महाशिवरात्रि पर गुरुबार को उमड़ी श्रध्दालुओं की भीड़ ने पास के गंगानदी में स्नान कर काशी के बाद बाढ़ अनुमंडल में उत्तरायण गंगा नदी के तट पर स्थित “उमानाथ शंकर महादेव” पर जलाभिषेक करते हुये पूजा-अर्चना कर अपनी-अपनी मन्नतें पूरी होने की कामना किया।

वहीं सुविख्यात अलखनाथ, गौरीशंकर सहित सभी शिव मंदिरों में श्रध्दालुओं ने पूजा-अर्चना किया।धर्मग्रथों में तो बिहार का काशी (बनारस) के नाम से सुप्रसिध्द बाढ़ का “उमानाथ एवं अलखनाथ घाट-मंदिर की “धार्मिक एवं पौराणिक महत्ता बताई गई है। उमानाथ एवं अलखनाथ भगवान शंकर के मंदिर में सुबह से ही “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ,उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्” के मंत्रों का गुंजायमान आरंभ हो गया।

महाशिवरात्रि क्यों मनाये जाते हैं,यह जानना जरूरी है। पौराणिक, धार्मिक और दंत कथाओं की मान्यताओं के अनुसार सम्पूर्ण भारत भूमि के अलग-अलग क्षेत्रो में तीन कारणों से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।प्रथम तो ज्योतिर्लिंग का प्रकाट्य तो दूसरी शिव-पार्वती जी का विवाह तथा तीसरा हलाहल विष का पान करना है।जिसमें शिव-पार्वती का विवाह सबसे ज्यादा प्रचलित है। इसी कारण से महाशिवरात्रि को कई स्थानों पर रात्रि में भगवान शिवजी की बारात भी निकाली जाती है।एक मान्यता यह भी है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं और विवाह जल्द होता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुये थे।यही वजह है कि इसे हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को देवाधिदेव के महाशिवरात्रि का महापर्व के रूप में मनाया जाता है।

शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में क्या अंतर है। बैसे तो हिन्दू कैलेंडर के प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि कहा जाता है और यह मासिक शिवरात्रि के नाम से प्रचलित है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन ही आधी रात को देवाधिदेव भगवान शंकर निराकार ब्रह्म से साकार स्वरूप यानी रूद्र रूप में अवतरित हुये थे, इसीसे इस तिथि को महाशिवरात्रि कहा जाता है।इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है।

सत्यनारायण चतुर्वेदी की रिपोर्ट