नहीं रहे सांस्कृतिक चेतना के आग्रही पत्रकार परमार अखिलेश

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पटना : पत्रकारिता में साहित्यिक व सांस्कृतिक चेतना के आग्रही पत्रकार परमार अखिलेश इस दुनिया में नहीं रहे। ‘आज’ अखबार से अपनी पत्रकारीय जीवन का शुभारंभ करने वाले परमार जी अवकाश ग्रहण करने के बाद अपने गाँव दिघवारा में रह रहे थे। शुक्रवार को हाजीपुर के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे विगत कुछ समय से बीमार चल रहे थे।

हिंदी के विद्वान होने के कारण वहां के एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक के रूप में अपना योगदान दे रहे थे। दिघवारा लौटने के बाद उन्होंने ग्रामीण पत्रकारिता को समृद्ध बनाने के लिए दैनिक जागरण अखबार के साथ मिलकर काम करना शुरू किया।

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पत्रकारिता के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले परमार जी की स्मृति में नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, बिहार के तत्वाधान में पटना में शुक्रवार को स्मृति सभा का आयोजन किया गया। एनयूजे बिहार के अध्यक्ष राकेश प्रवीर ने कहा कि परमार जी की लेखनी में सांस्कृतिक चेतना के साथ-साथ पत्रकारिता की दृष्टि से महत्वपूर्ण संदर्भ भी होते थे। उनका असमय निधन पत्रकारिता के क्षेत्र के लिए भारी क्षति है।

एनयूजे के महासचिव कृष्णकांत ओझा ने कहा कि परमार अखिलेश ने आंचलिक पत्रकारिता को संस्कारयुक्त बनाने के पक्षधर थे। वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र मिश्र ने कहा कि परमार अखिलेश सारण की गौरवशाली पत्रकारीय परंपरा की महत्वपूर्ण कड़ी थे। वहीं, वरिष्ठ पत्रकार कुमार दिनेश ने कहा कि आंचलिक पत्रकारिता को समृद्ध बनाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले परमार जी का जाना बड़ी क्षति है।

पत्रकार संजीव कुमार ने कहा कि परमार जी कि पत्रकारिता जनमत परिष्कार के प्रति समर्पित थी। एनयूजे बिहार के श्रीराम तिवारी ने कहा कि वे नए पत्रकारों के शिक्षक व मार्गदर्शक थे। शोक व्यक्त करते हुए एनयूजे के सत्यपाल श्रेष्ठ ने कहा कि पत्रकारिता में भाषा की शुद्धी पर जोर देने वाले परमार जी हमेशा याद किये जाते रहेंगे। वहीं, पत्रकार प्रशांत रंजन ने कहा कि परमार जी ने भोजपुरी के अमर साहित्यकारों और कवियों की बहुमूल्य कृतियों को सामने लाने का जो काम है वह अतुलनीय और कालजयी है।

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