मनुष्य जाति की धर्ममार्ग में स्वाभाविक प्रवृत्ति हेतु महाराज मनु ने तपस्या करके परमपुरुष से धरती पर आने की प्रार्थना की। परमात्मा उनकी प्रार्थना पर परमात्मा ने मनुष्य रूप में आकर मानवता का मूल्य-मान स्थापित किया। आज मनुष्य जाति में प्रभु के उसी रूप को श्रीराम के रूप में पूजा जाता है। तीन दिनों के कथासत्र में ये बातें आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण जी ने सत्र के दूसरे दिन कहीं।
रसिक शिरोमणि मन्दिर चिरांद के महान्त श्री मैथिलीरमणशरण जी महाराज ने कहा कि रस के प्रति मनुष्य का सहज आकर्षण होता है इसलिये रसिक उपासना मानव मात्र के लिये सुलभ है। इसमें ज्ञान-विज्ञान से अधिक महत्त्व सरलता का है। द्वितीय दिवस की कथा में मोजमपुर के महान्त श्रीकृष्णगिरि नागाबाबा , गोधरौली से पधारे महान्त सीताकांत शरण जी , महान्त जनकदुलारी शरण जी , महान्त अमितकुमारदास जी तथा चिरांद ग्राम के श्री रघुनाथ सिंह , श्रीरासेश्वर सिंह समेत अनेक भक्त श्रद्धालु उपस्थित रहे।
कथा सत्र का आज विराम दिवस है। इसके अतिरिक्त नौ फ़रवरी को श्री रामार्चा महायज्ञ एवं दस फ़रवरी को भण्डारा आयोजित है। आयोजन में संत-महान्त व श्रद्धालुओं का आना निरन्तर जारी है। मन्दिर के पुजारी सीताकांत शरण ने सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुये कहा कि चिरांद रसिकों का तीर्थ है यहाँ सभी का आना स्वाभाविक है।