एके वर्सेस एके : रियल के रंग में रील

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फिल्में मनोरंजन का साधन हैं, जिनमें काल्पनिक कहानियों के माध्यम से दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है। इसमें मानवीय गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर भी दिखाया जाता है, जिसे सिनेमा की भाषा में लार्जर दैन लाइफ कहते हैं। वहीं, कुछ फिल्में यथार्थ के ठोस धरातल पर कथा कहती हैं। दिसंबर-2020 के अंतिम सप्ताह में ओटीटी पर एक फिल्म आई- एके वर्सेस एके।

एके वर्सेस एके की कहानी शुरू होती है, एक चैट शो से, जहां सुपर स्टार अनिल कपूर और प्रयोगधर्मी फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यम बतौर अतिथि उपस्थित होते हैं। वहां वार्ता के दौरान विवाद हो जाता है और फिर अनुराग कश्यप अनिल कपूर को अपनी फिल्म में काम करने के लिए कैसे बाध्य कर देते हैं, यही इसका रहस्य है।

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आम तौर पर फिल्मों में पात्र के नाम से ही उसको जी रहे अभिनेता को पुकारा जाता है। लेकिन, एके वर्सेस एके में कपूर व कश्यप अपने ही असल जीवन के किरदार का रोल प्ले कर रहे हैं। इन दोनों के अलावा अनिल कपूर का पूरा परिवार भी असल जीवन वाले रूप में ही फिल्म में मौजूद है। यानी अनिल की बेटी सोनम कपूर, बेटा हर्षवर्धन, भाई बोनी कपूर भी असल रूप में माॅजूद हैं। फिल्म का कुछ हिस्सा भी अनिल व अनुराग कश्यप घरों में शूट किया गया है। शुरू कि दस मिनट तक यह किसी टीवी रियलिटी शो या डाॅक्यूमेंट्री प्रतीत होती है। उसके बाद फिल्म अपने ड्रामा अवतार में आ जाती है। इन अनोखे वजहों से फिल्म को देखने की इच्छा बलवती होती है।

कहानी एक हाॅस्टेज थ्रिलर है, तो अंतिम समय तक सस्पेंस बना रहता है। रियल किरदारों साथ सस्पेंस थ्रिलर कहानी ही दर्शकों को बांध सकती है। इसकी कहानी लिखने वाले अविनाश संपत को यह बात शायद पता हो। इस फिल्म के साथ विडंबना रही कि इसको बनने में करीब एक दशक का समय लग गया। 2013 में संपत कहानी लेकर फिल्म निर्देशक विक्रमादित्य मोटवाने के पास गए थे। मुख्य पात्रों में अनुराग कश्यप और शाहिद कपूर थे। तक इसका शीर्षक ’एके वर्सेस एसके’ था। बाद में शाहिद की जगह अनिल आ गए।

असलियत की चादर ओढ़े काल्पनिक कथा में भी फिल्मकार ने फिल्म उद्योग की कई सच्चाईयों को रेखांकित किया है। जैसे- सामान्य फिल्म प्रेमियों व फिल्म स्टार के प्रशंसकों को कलाकारों से अधिक लगाव उनके द्वारा निभाए गए किरदारों से होता है। यही कारण है कि एके वर्सेस एके में फिल्म स्टार अनिल कपूर अपनी बेटी सोनम कपूर को ढूंढते हुए एक स्लम में पहुंचते हैं और मंच से गुहार लगाते हैं कि उनकी बेटी को ढूंढने में मदद की जाए। इस पर भीड़ उनसे नाचने की फरमाइश करती है। विवश पिता अपनी फिल्म के हिट गाने पर नाचकर भीड़ का मनोरंजन करते हैं।

इस फिल्म में कल्पना व यथार्थ का ’सिनेमाई मिश्रण’ है। यहां ’सिनेमाई मिश्रण’ से तात्पर्य है कि कथानक के अलावा पूरे क्राफ्ट में ही रील व रियल का मिश्रण है। यानी कहानी के साथ-साथ निर्माण प्रक्रिया व इसके कर्मशीलों की रियलिटी को भी ’रील’ वाले स्टाइल कथानक का हिस्सा बना दिया गया, जबकि इसके विपरीत यथार्थवादी फिल्मों में केवल कथा में ही असली घटनाओं को शामिल करते हैं। बहुत हुआ तो रियल लोकेशन पर शूट कर लिए। लेकिन, एके वर्सेस एके में असल कलाकार, लोकेशन व असल सी दिख रही घटनाओं में कल्पना का तत्व मिलाकर पूरी फिल्म को एक ड्रामे के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

कुशल फिल्मकार विक्रमादित्य मोटवाने ने ’एके वर्सेस एके’ का निर्देशन किया है। हालांकि पूरी फिल्म पर अनुराग की छाप है। मोटवाने इससे पूर्व उड़ान, लूटेरा व ट्रैप्ड जैसी अलग फिल्में निर्देशित की हैं। ट्रैप्ड में तो मोटवाने ने अनोखे कथानक पर फिल्म बना दी थी। ट्रैप्ड जैसी फिल्म कम ही बनती है। वैसा ही अनोखापन ’एके वर्सेस एके’ भी है। दोनों फिल्मों में सारा खेल कंसेप्ट का है। हालांकि दोनों फिल्मों की कहानी बिल्कुल भिन्न है।

इस फिल्म में एक जगह अनिल कहते हैं कि उन्होंने अनुराग के प्रिय अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी के जैसा रियल अभिनय किया है। वैसे अनिल मंजे हुए कलाकार हैं और उनका अनुभव इस फिल्म में परिलक्षित होता है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी इस फिल्म में हैं। लेकिन, किसी भी दृश्य में नजर नहीं आते। केवल उनकी आवाज़ सुनाई देती है। अनिल के बाद सारा ध्यान अनुराग कश्यप के अभिनय पर जाता है। अपने निर्देशन के लिए मशहूर कश्यप ने इसमें ठोस अभिनय किया है। पर्दे पर स्वयं का किरदार निभाना आसान होता है, क्योंकि पात्र से संबंधित जानकारियां उपलब्ध होतीं है। वहीं ऐसे किरदार की अपनी चुनौती है, क्योंकि वहां तय पटकथा के अनुसार खुद को ढालना होता है। इन दोनों ध्रुवों पर कपूर व कश्यप सफल हैं। सिनेमैटोग्राफर के किरदार में योगिता बिहान सहज लगती हैं।

कथा को ऊपरी तौर पर देखने पर यह फिल्म अनोखी है। वहीं अगर मौलिक बनावट के धरातल पर देखें, तो ’एके वर्सेस एके’ एक सामान्य ड्रामा है। इस को महसूस करने के लिए एक बार कल्पना कीजिए कि अनिल कपूर या अनुराग कश्यप के बारे में आप कुछ नहीं जानते हैं। उसके बाद आपको यह फिल्म एक कसी हुई थ्रिलर लगेगी। अलग हटकर सोचने के लिए पूरी टीम को बधाई।

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