बिहार में नवगठित सरकार के दो महीने पूरे होने वाले हैं। परंतु, अभी तक कैबिनेट का विस्तार नहीं हो पाया है। मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर कई तरह की बातें सामने आ रही है, कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन, इन तमाम कयासों पर अब विराम लगता नजर आ रहा है। उम्मीद की जा रही है कि सरकार गठन के दो महीने पूरे होते ही मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है।
टूटेंगे कांग्रेसी
दरअसल, मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर कहा जा रहा था कि छोटे भाई की भूमिका में आने के बाद जदयू बैकफुट पर आ गई थी। भाजपा अपने अनुसार सरकार चलाना चाह रही थी। लेकिन, नीतीश कुमार दवाब में सरकार का नेतृत्व नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपने सबसे भरोसेमंद साथी को कांग्रेस के विधायकों को साथ लाने के लिए लगा दिया। इस बीच हाल के दिनों में कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि कांग्रेस के 11 विधायक टूटकर एनडीए में शामिल होने जा रहे हैं। वहीं, उच्चस्थ सूत्रों की मानें तो टूटने वाले कांग्रेस विधायक इस असमंजस में हैं कि वे भाजपा के साथ जाएं या जदयू के साथ। इसलिए मामला अभी तक अधर में लटका हुआ है।
तीन बड़ी राजनीतिक घटनाएं
लेकिन, इस बीच कांग्रेस के विधायक टूटने के अलावा बिहार के परिप्रेक्ष्य में तीन बड़ी राजनीतिक घटनाएं सामने आई। पहला उपेंद्र कुशवाहा का जदयू में विलय की ख़बरें, दूसरा अरुणाचल प्रदेश में जदयू विधायकों का भाजपा में शामिल होना तथा तीसरा और सबसे अहम चिराग पासवान को एनडीए में साथ रखना।
चिराग स्नेह
बहरहाल, महत्वपूर्ण यह है कि आखिर ऐसी कौन सी नौबत आई, जिसके कारण भाजपा अचानक से बैकफुट पर आ गई। इसको लेकर कहा जा रहा है कि भाजपा चिराग पासवान की पार्टी लोजपा को गठबंधन से अलग नहीं करना चाहती है। क्योंकि, लोजपा को अलग करने से आगामी लोकसभा तथा अन्य चुनाव में भाजपा को नुकसान हो सकता है। ऐसे में भाजपा नीतीश की खिसकती राजनीतिक जमीन के भरोसे नहीं रह सकती है। वहीं, इस बीच उपेंद्र कुशवाहा के जदयू में विलय की बात सामने आने के बाद भाजपा चिराग को साथ रखने के लिए जिद्द पर अड़ गई और नीतीश कुमार को इस मसले पर न चाहते हुए भी झुकना पड़ा।
अरुणाचल की घटना से जदयू को मिली संजीवनी
लेकिन, इसी बीच अरुणाचल प्रदेश में जदयू के छह विधायक भाजपा में शामिल हो गए। विधायकों के जदयू से भाजपा में शामिल होते ही बिहार में जदयू को संजीवनी मिल गई और जदयू ने इस प्रकरण का जबरदस्त तरीके से राजनीतिक इस्तेमाल की। अरुणाचल प्रदेश की घटना के बाद जदयू अपने आप को बेबस व लाचार दिखाना शुरू कर दी। लेकिन, अंदर ही अंदर जदयू इस मसले को लेकर भाजपा पर दवाब बनाना शुरू कर दी। परिणामस्वरूप भाजपा को सन्देश देने के लिए साफ कह दिया गया कि जदयू लव-जिहाद कानून का समर्थन नहीं करेगी। क्योंकि, इस तरह के कानून से समाज में विषमता उत्पन्न होती है।
किसान आंदोलन सहयोगी दलों के लिए एडवांटेज
वहीं, देश में किसान आंदोलन के कारण भाजपा परेशान है। ऐसे में भाजपा के सहयोगी दलों के लिए एडवांटेज है। साथ ही भविष्य में बंगाल चुनाव के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण बिल देश की संसद में पेश होनी है। इस लिहाज से संविधान में संशोधन के साथ-साथ सत्ता बची रही, इसलिए भाजपा नीतीश की मांगों का ज्यादा विरोध नहीं की। वैसे भी राजद की तरफ से जदयू को ऑफर मिलने के बाद भाजपा मौके को भांपते हुए नीतीश को ज्यादा परेशान न कर सारी मांगों पर सहमति देना ही मुनासिब समझी।
शर्तें मंजूर!
नीतीश कुमार ने भाजपा के सामने मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर दो शर्त रखी थी। पहला यह कि मंत्री आपके ज्यादा होंगे, लेकिन विभाग बराबर अथवा मंत्री तथा विभाग बराबर-बराबर। वहीं, नीतीश ने दूसरी शर्त यह रखी थी कि राज्यपाल कोटे से मनोनीत एमएलसी में सीटें बराबर-बराबर। फिलहाल, जो जानकारी छनकर सामने आ रही है, उस अनुसार मंत्रिमंडल को लेकर शर्त मंजूर हो गई है तथा एमएलसी को लेकर भी बातें बन चुकी है।
भाजपा ने दे दिया संदेश
भाजपा के बैकफुट पर आने की बात को लेकर प्रदेश के एक बड़े नेता ने कहा कि भाजपा ने नीतीश कुमार को यह अहसास दिला दिया है कि समय आने पर भविष्य में अगर आप ज्यादा इधर-उधर करेंगे तो आपकी भी पार्टी टूट सकती है। वैसे भी नीतीश कुमार यह मान चुके हैं कि इस बार सत्ता भाजपा के कारण ही मिली है। इसलिए भाजपा जो संदेश नीतीश कुमार को देना चाहती थी वो दे चुकी है। अगली प्राथमिकता है पूरे 5 साल सरकार चलाने की और सरकार अपना कार्यकाल अच्छे से पूरा करेगी।
ज्ञातव्य हो कि 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में नियम के मुताबिक 15 प्रतिशत विधायक मंत्री बन सकते हैं। यानी मुख्यमंत्री सहित 36 मंत्री हो सकते हैं। साफ है कि नीतीश कैबिनेट में फिलहाल 23 नए मंत्री बनाए जा सकते हैं। वर्तमान में भाजपा के सात, जदयू के चार, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी के एक-एक मंत्री हैं।