विलुप्त होता जा रहा लौंडा नाच जिसने दिलाई थी भिखारी ठाकुर को पहचान
आरा : बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश का क्षेत्र भोजपुरिया पट्टी के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र की एक लोकनृत्य विधा ‘लौंडा नाच’ है, जिसने भोजपुरी के भिखारी ठाकुर को एक नई पहचान दिलायी थी पर आज यह विधा तकनीक और उदारीकरण के दौर में दम तोड़ रही है। इस प्रतिकूल माहौल में ‘लौंडा नाच’ को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गरीमामयी पहचान दिलाने में लगे भोजपुरिया समाज लगातार प्रयासरत है।
आज जो भी भोजपुरी फिल्म बन रही है उसमे इतनी अश्लीलता है है कोई भी सभी अपने परिवार के साथ उसे नही देख सकता| अश्लीलता और भोजपुरी फिल्म आज की तारीख में पर्यायवाची हो चुके है| वही भोजपुरी कलाकार संध्या सेठी लौंडा नाच पर एक फिल्म बनाने की सोच रखी है| उनका कहना है कि अगर उन्हें कोई साफ़ सुथरी फिल्म बनाने का ऑफर मिलेगा तो वे जरूर इसपर गंभीरता से विचार करेंगे|
लौंडा नाच वैसे तो अपने विस्तार एवं नाम के अनुरूप पढ़े-लिखे लोगों के बीच चर्चा का हिस्सा नहीं है फिर भी लोग इसे जानते समझते हैं। लेकिन इसी तर्ज पर एक गोंड नाच भी है जो इसी से मिलता-जुलता है पर लौंडा नाच के बनस्पत इसकी चर्चा तो लगभग शून्य है। हाल ही में आरा के पटेल बस स्टैंड में भोजपुरी के शेक्सपीअर भिखारी ठाकुर का जन्म उत्सव मनाया गया था| इसको देखने समझने के बाद यह बात पुख्ता हुयी कि विविध लोकाचार और उत्सवधर्मी भारतीय समाज अपने अन्दर कितना कुछ समेटे हुए है।
भारत विविधताओं का देश है इसमें हजारों जातियां-उपजातियां है और प्रत्येक समाज के खान-पान, जीवन-यापन, त्यौहार, संस्कृति, सभ्यता भी अलग ही हैं। इन्ही में भारत की सबसे बड़ी जनजाति गोंड है जो पूरे देश विभिन्न हिस्सों में फैली है मगर इनकी लगभग 60 प्रतिशत आबादी मध्य प्रदेश में पायी जाती है। इस जनजाति की एक अलग नृत्य शैली भी है जिसे बिहार में गोंड का नाच कहा जाता है।
इस नाच में भी लौंडा नाच के समानांतर ही बहुत सारे मौकों के लिए अलग-अलग नृत्य पद्धति है। दशहरा-दुर्गापूजा, शादी-विवाह के साथ बच्चे के जन्म लेने जैसे शुभ अवसर पर लोग इनको अपने यहाँ बुलाते हैं और इनके नाच-गाने का आयोजन करवाते हैं। इस नाच में घुरुका और झाल नामक दो ही वाद्य यंत्र बजाये जाते हैं। झाल तो वैसे जाना-पहचाना नाम है पर घुरुका को समझने के लिए हम इसे डमरू की तरह का मान सकते है|
आरा में भोजपुरी की प्रतिश्ठा बचाने के लिए कलाकारों ने अश्लीलता मुक्त भोजपुरी समाज के नाम से अश्लीलता के खिलाफ आन्दोलन चला रखा है| वैसे भोजपुर के लोगों का प्रयास है कि उनकी सांस्कृतिक धरोहर अक्षुण्ण बनी रहे और वे इसके लिए प्रयासरत भी है| कोई भी समाज यह नही चाहता कि उसकी सांस्कृतिक तथा सामाजिक धरोहर नष्ट हो ताकि आने वाली पीढ़ी उनसे ये ना पूछे कि इस तरह की कोई विधा भी थी क्या| अगर ऐसा हुआ तो निश्चित है कि भोजपुर को संस्कृति शून्य समाज होने से कोई नहीं बचा सकता|
राजीव एन० अग्रवाल की रिपोर्ट