बक्सर में शुरू हुई पंचकोशी परिक्रमा, बिहार-यूपी समेत शामिल होंगे देशभर के साधु-संत

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बक्सर : बक्सर का नाम सुनते ही लोगों के मन में ऐतिहासिक शहर की छवि उभरती है। वह चाहे श्रीराम की यात्रा, राक्षसी ताड़का का वध हो या बक्सर की 1764 की लड़ाई।

इसी कड़ी में सैकड़ों सालों से बक्सर में पंचकोशी मेला लगता है। इस मेले में पांच दिन अलग-अलग गांवों की यात्रा होती है। अलग-अलग जगहों पर हर दिन परंपरा के अनुसार अलग-अलग किस्म का खाना खाया जाता है।

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इस मेला में बिहार के साथ यूपी और पूरे देश से साधू-संत और लोग शामिल होते है। वह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है। इसी का निर्वहन करते हुए आज से पंचकोशी यात्रा शुरू हो गई है। इस यात्रा के दौरान अहिरौली, नदांव, भभुवर, बड़का नुआंव तथा अंतिम पड़ाव के दिन नौ तारीख को चरित्रवन में लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण कर पूरा होगा। हालांकि कोरोना संक्रमण को लेकर कल्पवास की व्यवस्था इस बार नहीं रहेगी।

ऐसा माना जाता है कि यह मेला त्रेतायुग से तब प्रारंभ हुआ जब महर्षि विश्वामित्र अयोध्या से श्री राम और लक्ष्मण जी को लाए और उनके द्वारा इस बक्सर जिले को ताड़का राक्षसी व मारीच, सुबाहु के आतंक से सिद्धाश्रम को मुक्त कराया गया ।इसी दौरान भगवान श्रीराम और लक्ष्मण ने साधु संतों के मंडली के साथ परिक्रमा किए। इस दौरान भक्तों ने पकवान वगैरह से उनका स्वागत किया था।

पंचकोशी यात्रा के पहले दिन सुबह रामरेखा घाट पर स्नान करके पहले पड़ाव स्थल अहिरौली पहुंचने के बाद लोग वहां अहिल्या के आश्रम में लोगों ने जलाभिषेक कर उनका दर्शन किया। मान्यताओं के अनुसार भक्तों ने श्रद्धा के साथ पुआ-पूड़ी के अलावे पकौड़ा खाया और एक दूसरे को प्रसाद के रूप में ग्रहण कराए।

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