क्या बेवजह बदनाम हैं एसबीआई जैसे सरकारी बैंक? आम आदमी को कंफ्यूज करने वाले बड़े खिलाड़ी कौन?
क्या आपको लगता है कि एसबीआई वाले ठीक से आपको सर्विस नही दे रहे?
या आपको यह भी लगता है कि सरकारी बैंकों से बेहतर सेवा प्राइवेट बैंक देते हैं?
अगर ऐसे सवाल आपके मन में भी है, तो पढ़िए यह चौंकाने वाली खबर। बैंकों को लेकर देश में कैसा खेल चलता है, इससे यह स्पष्ट हो जाएगा।
दशकों से देखा जा रहा है कि सरकारी बैंकों (PSBs) को लेकर लोगों के मन में ग़लत धारणाएं डाल दी गई है! क्लेम यह किया जा रहा है कि सरकारी बैंक के कर्मचारी कामचोर हैं और प्राईवेट बैंकों की तुलना में सर्विस दे ही नहीं सकते।
इसमें से सबसे ऊपर रखा जाता है एसबीआई को। हर साल जो लोग सिर्फ समाचार पत्र का शीर्षक ही पढ़ते हैं उनके इस बात को कैसे झुठला सकते की देश में सारे बैंक के कस्टमर की शिकायतों को मिला दें तो भी SBI आगे रहेगा! फ़िर जोक्स व मीम बनने स्वाभाविक हैं!चेतन भगत सरीखे समझदार पढ़े लिखे लोग भी इस बात पर आए दिन मज़ाक उड़ाते रहते हैं! ग़लत भी नहीं कहा जा सकता। अब वे या उनके जैसे विद्वान लोग समाचार के लिए दो स्रोतों पर विश्वास करेंगे। पहला प्राइमरी यानी रिजर्व बैंक और दूसरा बिजनेस से रिलेटेड न्यूज़ पेपर या जर्नलिस्ट।
जब न्यूज़ में एक्सपर्ट पत्रकार ऑथेंटिक सोर्स के हवाले यह लिखे कि SBI के ख़िलाफ़ 21,206 और ICICI के ख़िलाफ़ मात्र 5,000 लोगों ने कंप्लेन किया, तो ICICI अच्छी हुई? यह स्टोरी यही दिखाने के लिए कि कैसे बिजनेस एक्सपर्ट जिनके लिए रेपुटेशन बहुत बड़ी बात है बेवकूफ़ बने हैं!
ये बात हमेशा परेशान करती रही कि जो SBI कंट्री के टॉप मोस्ट टैलेंट को सेलेक्ट करता है! जिसमे काम करने का हमारे जैसे लोगों के लिए सपना ही है वो इतना ग़लत कैसे हो सकता है? जिसने न्यूज़ बनाई वो सिर्फ़ RBI के आंकड़ों को देखता है! समझ नहीं पाता।
अपने विचारों का पीछा करते हुए मुझे करीबन एक महीने लगे आंकड़े ढूंढने में जो कि RBI के साइट पे ही है पर तितरबितर हैं! फ़िर उसे समझने में और आज आपके सामने में डालने में! बैंक A के 100 कस्टमर हैं बैंक B के 10,000 आरबीआई जब डाटा निकालता है तो कभी यह नहीं दिखाता की complaint/Customer कितना है! वो हर साल यही निकालता है कि बैंक B के अगेंस्ट 100 कंप्लेन A के 50! हो गई फ़िर बैंक A अच्छी भले ही उसके काम से उसके सिर्फ़ आधे कस्टमर ख़ुश हैं और बैंक B के 99 फ़ीसदी! आइए देखते हैं पिछले साल के रिपोर्ट में टॉप 15 बैंक कौन थे! इतनी जल्दी इससे आंकलन मत करिएगा! ये सिर्फ़ वे आंकड़े हैं जो मुझे RBI पे मिल पाया! इसमें सबसे घटिया सर्विस RBL और कोटक महिंद्रा की है! पर उनके सरीखे बैंक और छोटे बैंक जैसे नैनीताल बैंकों को हटा के आकलन किया है!
अब ये तो सिर्फ़ एक पहलू था! अब सोचिए की बैंक A के यहां 25 employee काम कर रहे और B के यहां 250 यानी बैंक A का 1 employee 4 कस्टमर को सेवा दे रहा B का 1 employee 40 को! बैंक A के कस्टमर अधिकांशतः पढ़े लिखे हैं!
एसबीआई और ICICI के लगभग बराबर कंप्लेन के बाद बात आती है कि SBI का एक emp ICICI के तुलना में तीन गुना ज़्यादा कस्टमर को सेवा दे रहा! उसके बाद भी कंप्लेन अगर इतने कम हैं तो आपकी समझ में आ जाना चाहिए कि कौन आपको बेवकूफ़ बना रहा है और क्यों?
अब आते हैं असली कहानी पर। 1994 में 12 बैंकों को लाइसेंस मिला था और जब मार्केट कट थ्रोट नहीं था तब भी सिर्फ़ 7 बच पाई! उनमें से 3 बिग boys ICICI, HDFC और Axis बैंक की नज़र हमेशा से भारत की लोन मार्केट पर थी!। 20 सालों तक पब्लिक में बदनाम करने के बाद भी 15-17% लोन ही इनके हिस्से आई। पिछले 10 सालों के systemic abuse की कहानी NPA के रूप में आप जानते हैं।
Money मार्केट जिसकी समझ आम आदमी को नहीं है उसे शायद थोड़े बहुत लोग @suchetadalal जी के स्कैम नाम कि वेब सीरीज देखने के बाद हुआ होगा! पर लोग उसमे भी ये पकड़ना मिस कर गए कि हर्षद मेहता अकेला नहीं था! जो वो कर रहा था उसे सिटी बैंक और उसके सरीखे बड़े लोगों की बैंक भी कर रही थीं। उनकी कमियां भी सामने आईं पर तबादले के अलावा उनमें से किसी के विरुद्ध कुछ नहीं हुआ।
आज भी money मार्केट में PSBs ठीक से घुस नहीं पाया है फ़िर भी 2012-13 तक प्रॉफिट देता रहा और लोन के मामले में बेताज़ बादशाह रहा! जब सारे हथकंडे विफल हो गए। फ़िर कहानी शुरू हुई NPA रिकवरी की। NPA का 75-80 फ़ीसदी बड़े—बड़े लोगों की वज़ह से है। पर, ना तो आम आदमी इसकी मांग कर रहा कि कानून लाओ और ना ही लोगों का ध्यान इस पर जा रहा कि RBI उनके नाम तब भी पब्लिक नहीं कर रहा जब न्यायालय उसे आदेश देता है।
जब NPA की कहानी से भी लोगों का भरोसा नहीं टूटा, तो पीसीए आया जिसमें आधे से ज़्यादा सरकारी बैंकों पर आरबीआई ने लोन देने से रोक लगा दी और उसका नतीज़ा अब दिख जाएगा आरबीआई के वर्किंग कमेटी के रिपोर्ट में। 2015-20 के बीच में लोन प्रतिशत पर ध्यान दीजिए। बड़ी—बड़ी कंपनियां पैसे होते हुए भी सरकारी बैंकों में पैसे नहीं चुका रहीं। वे ही कंपनियां प्राईवेट बैंक में चुका देतीं हैं! कमिटी के 5 में से 4 लोगों के मना करने के बाद भी आरबीआई रिकमेंड कर देती है प्राइवेट हाथों में बैंक को सौंपने की। मुझे नहीं पता कौन कर रहा? कौन करवा रहा? पर, जब सरकारी बैंकों के 15% लोन की उगाही में 85% एम्पलॉइज को लगा गया है और साल दर साल खराब लोन राइट ऑफ किए जा रहे हैं, वसूली 60-80% तक की hair cut (यानी माफी) के बाद हो रही, बिना वज़ह बैंकों का privatization हो रहा तो इतना पता है ग़लत हो रहा।
अनुराग चंद्रा