17वीं बिहार विधानसभा के पांच दिनों के शीतकालीन सत्र का तीसरा दिन ऐतिहासिक साबित हुआ। दरअसल, 51 साल बाद विधानसभा के अध्यक्ष वोटिंग के जरिए चुने गए। विधानसभा अध्यक्ष को लेकर महागठबंधन और एनडीए ने उम्मीदवार उतारा था। लेकिन, मतदान के बाद एनडीए उम्मीदवार विजय कुमार सिन्हा 12 वोटों से विजयी हुए। विजय कुमार सिन्हा के समर्थन में 126 और विरोध में 114 वोट पड़े।
कैसे रेस से बाहर हुए नंद किशोर
बहरहाल, महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिर रातोंरात नंद किशोर यादव की जगह विजय सिन्हा का नाम कैसे आया। इसको लेकर यह कहा जा रहा था कि भाजपा इस बार बिहार में पुराने लोगों को मार्गदर्शक की भूमिका में रखना चाहती है। इसलिए काफी विचार-विमर्श के बाद यह तय हुआ कि अब बिहार में नए लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाए।
नंद किशोर यादव का नाम रेस से बाहर होने के पीछे सर्वविदित थ्योरी यह है कि भाजपा सवर्णों को नाराज नहीं करना चाहती थी, इसलिए विजय सिन्हा को आगे किया गया। लेकिन, विजय सिन्हा का नाम सबसे आगे आने का महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि जब नंद किशोर यादव को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाने की चर्चा तेज हुई और आलाकमान की मुहर लगने वाली थी। इससे पहले उन्हीं के समकक्ष एक वरिष्ठ नेता ने भावनात्मक रूप से अपनी व्यथा को नेतृत्व के समक्ष रखा, इसके बाद उस नेता की बातों को ध्यान में रखकर प्रदेश नेतृत्व ने पुनः विचार किया और विचारोपरांत नंद किशोर यादव का नाम कट गया।
दिग्गज हुए दरकिनार
क्योंकि, पुराने लोगों में जब सुशील मोदी, प्रेम कुमार व विनोद नारायण झा को जब इस बार मुख्यधारा से दूर रखा गया तो नंद किशोर यादव को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती थी। अगर, ऐसा होता है तो संगठन में गुटबाजी की आशंका प्रबल हो सकती है! इसलिए, नंद किशोर यादव अंतिम समय में अध्यक्ष पद के संभावित उम्मीदवार के रेस से बाहर हो गए।
जब सहयोगी दल के नेता ने किया विजय का विरोध
जिस तरह नंद किशोर यादव को अध्यक्ष बनने के लिए साथियों ने अड़ंगा लगाया, उसी तरह विजय कुमार सिन्हा विधानसभा नहीं पहुंचे, इसके लिए कथित रूप से उनके सहयोगियों पर उनका सहयोग नहीं करने का आरोप लग रहा है। इस बात की चर्चा लखीसराय में काफी तेज है।
दरअसल, सहयोगी दल के एक बड़े व कद्दावर नेता द्वारा विजय सिन्हा को पिछले दो चुनावों से घर में घेरने की तैयारी चल रही है। 2015 के चुनाव में विजय सिन्हा को हराने के लिए भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष सुजीत कुमार को उतारा गया था। लेकिन, भाजपा का मज़बूत गढ़ होने के कारण सहयोगी दल के बड़े नेताओं का चक्रव्यूह तोड़ने में सफल रहे।
खुद के बुने जाल में फंस सकते हैं सांसद!
इसके बाद इस चुनाव में विजय सिन्हा को हराने के लिए 2 और भूमिहार जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया। इनमें से एक पूर्व विधायक फुलैना सिंह और दूसरे उम्मीदवार के तौर पर सुजीत कुमार को उतारा गया। लेकिन, एक बार पुनः तमाम तरह के विरोध के बावजूद विजय सिन्हा व गिरिराज सिंह डटकर क्षेत्र में खड़े रहें। साथ ही नड्डा ने सिन्हा के पक्ष में सभा की। इसका परिणाम यह हुआ कि विजय सिन्हा एक बार फिर सहयोगी दलों के कद्दावर नेता का प्रभाव कम करते हुए उनके रचे चक्रव्यूह को भेद कर विधानसभा पहुंच गए।
विजय सिन्हा के अध्यक्ष बनने के बाद यह बातें कही जा रही है कि आने वाले दिनों में जिस तरह विजय सिन्हा को घर मे घेरने की तैयारी की गई थी, उसी तरह कहीं आगे सहयोगी दल के कद्दावर नेता व सांसद का प्रभाव जनता कम न कर दे! इसकी तैयारी भाजपा ने विजय सिन्हा को अध्यक्ष बनवाकर कर दी है।
विधानसभा का नवनिर्वाचित अध्यक्ष चुने जाने के बाद विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि आज 17वीं विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी संभालने का अवसर प्राप्त हुआ है, जिसके बाद अब भारतीय लोकतंत्र की स्वस्थ संसदीय परंपरा के निर्वहन की जिम्मेदारी मुझे मिली है जिसे हरसंभव पूरा करने की मेरी कोशिश होगी। मेरा प्रयास विधानसभा के सभी माननीय सदस्यों के सहयोग से सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने की होगी। साथ ही लखीसराय एवं बिहार के देवतुल्य जनता को हृदय से आभार, बिहार की उन्नति के लिए हमेशा तत्पर रहूँगा।