गिरिराज ने फेंका तुरुप का इक्का, पिटारे से निकला जनसंख्या नियंत्रण का जिन्न
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर तीसरे चरण का मतदान 7 नवंबर को होना है। तीसरे चरण के मतदान से पहले केंद्रीय मंत्री व भाजपा नेता गिरिराज सिंह ने कहा कि आपको मेरे चेहरे से नफरत हो सकती है लेकिन, आपको अपने परिवार, समाज, बिहार और हिंदुस्तान से नफरत नहीं हो सकती। बिहार को संभालने और सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए जनसंख्या विस्फोट को रोकना होगा। इसलिए NDA को वोट करे।
अब यहाँ सवाल यह है कि गिरिराज सिंह का इस तरह का बयान तीसरे चरण के मतदान के समय क्यों आया? पहले और दूसरे चरण के मतदान के पहले क्यों नहीं? इसका जवाब है कि जनसंख्या की दृष्टि से बिहार का सीमांचल यानी पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज व अररिया जिले की हालात बहुत खराब है। इन जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की अवैध बस्तियां धड़ल्ले से बसी हुई हैं। उन अवैध बस्तियों में अवैध धंधेबाजों व अपराधियों के अड्डे बने हुए है। बिहार के इन जिलों से देश विरोधी व आतंकी गतिविधियां संचालित होती रही हैं। दलितों के साथ अत्याचार के भी मामले सामने आते रहे हैं। लेकिन, तुष्टीकरण की राजनीति में इन अवैध घुसपैठियों पर कार्रवाई की बात गुम हो जाती रही है। जनगणना रिपोर्ट साक्षी है कि अवैध घुसपैठियों के कारण इन जिलों की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
बिहार के 9 विधानसभा क्षेत्रों में हिंदू मतदाता अल्पसंख्यक
कटिहार, अररिया, किशनगंज और पूर्णिया जिले के नौ विधानसभा क्षेत्रों में हिंदू मतदाता अल्पसंख्यक हो गए हैं। अररिया जिले के जोकीहाट में मुस्लिम मतदाताओं की सख्या 67.47 प्रतिशत है। अररिया विधानसभा क्षेत्र में 58.97, किशनगंज के बहादुरगंज में 59.19, ठाकुरगंज में 62.68, कोचाधामन में 74.21, पूर्णिया के अमौर में 74.30, बायसी में 69.05, बलरामपुर में 65.10 प्रतिशत तक मुसलिम मतदाताओं की संख्या पहुंच चुकी है। यह स्थिति पिछले 25 वर्षों में हुई है। वहीं पूर्वी व उत्तर बिहार के 10 विधानसभा क्षेत्रों में हिंदू और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर हो गयी है। वहीं करीब 30 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या कुल मतदाताओं की संख्या के 20 प्रतिशत से ऊपर है। ऐसी स्थिति घुसपैठियों के कारण हुई है।
बांग्लादेशी घुसपैठिए कर रखे हैं सरकारी भूमि पर कब्जा!
बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठिए मजदूर बहुत कम पारिश्रमिक में ही काम करते थे। इसलिए भारतीय ठेकेदार बांग्लादेशी घुसपैठियों को ही काम देने लगे। इसके कारण हिंदू मजदूर बेकार होने लगे। बांग्लादेशी घुसपैठिए सरकारी भूमि पर बसने लगे। धीरे-धीरे उनकी स्थिति मजबूत होने लगी। असम के ‘उल्फा’ आतंकी संगठन में भी बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या अधिक थी। असम के कोकराझार और आसपास के जिलों में दो साल पहले हुई हिंसा में कम से कम 77 लोग मारे गए थे और कई लापता हो गए थे। बोडो आदिवासियों के गांव दुरामारी में ही पक्की सड़क की दूसरी तरफ रहने वाले बोडो-कचारी आदिवासियों के एक बड़े वर्ग में रोष इस बात को लेकर है कि अपनी ही जमीन पर वो अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं। लेकिन, कई ऐसे भी हैं, जो अब इस राजनीति से उकता गए हैं और चाहते हैं कि कोई उनके गांवों के विकास की भी बात करे।