सूर्य के दिन तारों की पूजा से होती है संतान की अनहोनी से रक्षा, इस दिन है अहोई अष्टमी व्रत

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पटना : कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन माताएं अहोई अष्टमी का व्रत मनाती हैं। इस व्रत को अहोई आठे नाम से भी जाना जाता है। अहोई अष्टमी का दिन भी कठोर उपवास का दिन माना जाता है। यह व्रत संतान की दीर्घायु और अनहोनी से रक्षा के लिए किया जाता है। माता पार्वती को समर्पित यह व्रत शाम को आकाश में तारों को देखने के बाद खोला जाता है। अहोई अष्टमी इस साल 8 नवंबर यानी परसों रविवार को है। इस दिन तारों को अर्घ्य दिया जाता है तथा उसके बाद ही इस निर्जला व्रत को खोला जाता है। अहोई अष्टमी के व्रत में नया करवा नहीं लिया जाता है। अहोई अष्टमी पर चाकू से सब्जी या किसी नुकीली चीज जैसे सुई का इस्तेमाल नहीं करते हैं।

व्रत रखने का मुहूर्त

अष्टमी तिथि प्रारंभ: 08 नवंबर को सुबह 07 बजकर 29 मिनट
अष्टमी तिथि समाप्त: 09 नवंबर को सुबह 06 बजकर 50 मिनट पर
पूजा का मुहूर्त: 5 बजकर 37 मिनट से शाम 06 बजकर 56 मिनट के बीच
कुल अवधि: 1.27 मिनट।

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अहोई अष्टमी की पूजा शाम 05 बजकर 37 मिनट से शाम 06 बजकर 56 मिनट के बीच कर लेना चाहिए।
इस वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 8 नवंबर को सुबह 7 बजकर 29 मिनट से हो रही है। इस तिथि का समापन 9 नवंबर को सुबह 06 बजकर 50 मिनट पर होगा। महिलाएं अहोई माता का चित्र लगाकर पूजा करती हैं। अगर बच्चों को कोई शारीरिक कष्ट हो, या स्वास्थ्य ठीक न रहता हो, बार-बार बीमार होते हों तो इस त्योहार पर संतान की माता द्वारा व्रत करने से संतान को विशेष लाभ प्राप्त होता है। संतान की कामना रखने वाली महिलाएं भी यह व्रत रखकर अहोई माता से संतान प्राप्ति की प्रार्थना कर सकती हैं। एक साल व्रत लेने के बाद आजीवन यह व्रत टूटना नहीं चाहिए।

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