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क्या शहाबुद्दीन की धौंस से बाहर निकल गया सिवान? किसके साथ अल्पसंख्यक वोटर!

सिवान/पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में 3 नवंबर को सिवान जिले की 8 सीटों पर भी मतदान होगा। इन सभी सीटों पर जिले के 15 फीसदी अल्पसंख्यक मतदाता हार और जीत पर बड़ा असर डालते हैं। लेकिन इसबार यहां के मुस्लिम वोटरों का मिजाज कुछ बदला—बदला सा है। करीब एक दशक पूर्व तक सिवान में राजद नेता और यहां के सांसद रहे बाहुबली सैयद शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी। खौफ ऐसा कि उनके विरोधी किसी भी पार्टी या नेता यहां चुनाव में अपने दल का झंडा भी लगाने में डर महसूस करते थे। लेकिन शहाबुद्दीन पिछले बड़े अरसे से जेल के भीतर है और इस बार उसके परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव मैदान में नहीं है। ऐसे में यहां के अल्पसंख्यक वोटरों के मिजाज में भी स्पष्ट बदलाव के संकेत ने राजद की बेचैनी बढ़ा दी है। साफ लग रहा है कि शहाबुद्दीन फैक्टर की धौंस से सिवान बाहर निकल चला है।

3 नवंबर को जिले की 8 विधानसभा सीटों पर है चुनाव

2019 के लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब चुनाव हार गई थीं। 15 फीसदी मुस्लिमों की आबादी वाले जिले में यह शहाबुद्दीन जैसे बाहुबली नेता की धमक पर करारी चोट थी। इसी का नतीजा है कि 2020 के विस चुनाव में राजद को जिले की सभी 8 सीटों पर 3 नवंबर को होने वाली वोटिंग से पहले भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी तरफ शहाबुद्दीन के लंबे वक्त से जेल में रहने के दौरान सिवान आरजेडी में उसकी कद और धमक का कोई नेता नहीं उभर सका। शहाबुद्दीन अर्से बाद 2016 में जेल से बाहर आए थे। लेकिन नीतीश सरकार उनकी जमानत रद्द करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी। शहाबुद्दीन अभी तिहाड़ जेल में हैं।

कैसा है 15 फीसदी मुस्लिम वोटरों का रुख

यदि शहाबुद्दीन के परिवार की मौजूदा विधानसभा चुनाव में अभिरुचि की बात करें तो प्रतीत होता है कि रघुनाथपुर सीट पर राजद के हरि शंकर यादव शहाबुद्दीन के करीबी माने जा रहे हैं। लेकिन इसबार का चुनाव उनके लिए आसान नहीं है। सिर्फ शहाबुद्दीन फैक्टर के भरोसे उनकी चुनावी नैया भंवर में फंसी दिख रही है। इसका कारण यह है कि यहां के मुस्लिमों का मन डोल रहा है। ये अलग बात है कि सिवान के मुसलमान शहाबुद्दीन को ही अपना नेता मानते हैं, लेकिन वे तेजस्वी और राजद से बेहद खफा हैं। उनके अनुसार लालू यादव की तरह तेजस्वी शहाबुद्दीन का बचाव करने में विफल रहे हैं।

राज्यसभा भेजने में राजद द्वारा हिना शहाब की अनदेखी

सिवान के अल्पसंख्यक मतदाताओं की आम शिकायत यही है कि शहाबुद्दीन ने इस क्षेत्र में राजद के लिए बहुत कुछ, यानी सबकुछ किया। लेकिन जब हमारे नेता 2016 में 14 साल बाद जेल से बाहर आए तो तेजस्वी यादव के उपमुख्यमंत्री रहने के बावजूद बिहार सरकार उनकी जमानत रद्द करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। तेजस्वी ने शहाबुद्दीन जैसे बड़े सिपाही को बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया। इसके अलावा जब शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब लोकसभा चुनाव हार गईं तो राजद ने राज्यसभा में उन्हें भेजने का कोई जतन नहीं किया। इतना ही नहीं, पार्टी ने दूसरे नेताओं को राज्यसभा भेज दिया।

स्पष्ट है कि इसबार सिवान के अल्पसंख्यक वोटरों ने विधानसभा चुनाव में राजद के प्रति उदासीनता वाला रुख अपना लिया है। उन्हें लगता है कि राजद ने अब तक सिर्फ उन लोगों का अपने लिए इस्तेमाल किया है। छपरा, सिवान और गोपालगंज में 29 विधानसभा सीटें हैं लेकिन आरजेडी ने सिर्फ एक सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार दिया है। ऐसे में अगर इसबार यहां के अल्पसंख्यक एनडीए को छोड़ किसी भी अन्य या छोटे विकल्प पर भी दांव लगा दें तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा।