पटना : हिन्दुओं के सारे त्योहार और उत्सव लोकजीवन से गहरे जुड़े हैं। दशहरा समेत सभी धार्मिक उत्सवों के पीछे कोई न कोई ठोस वैज्ञानिक और सामाजिक आधार है। दशहरा के बाद हमारे यहां मां दुर्गा की प्रतिमाएं विसर्जित कर दी जाती हैं। इसके अलावा भारत में बंगाली समुदाय में महिलाएं दशहरा के बाद प्रतिमा विसर्जन से पहले सिंदुर खेला करती हैं। इन सभी तौर—तरीकों के पीछे एक ठोस सामाजिक परंपरा आधार बनती है।
जिस प्रकार बेटियां अपनी ससुराल से मायके घूमने आती हैं और कुछ दिन बिताने के बाद वापस अपने घर यानी अपनी ससुराल चली जाती हैं, उसी प्रकार मां दुर्गा भी अपने मायके यानी इस धरती पर आती हैं और 9 दिन के बाद फिर से अपने घर यानी शिवजी के पास माता पार्वती के रूप में कैलाश पर्वत पर चली जाती हैं। बेटियों को विदा करते समय उन्हें कुछ खाने-पीने का सामान और अन्य प्रकार की भेंट दी जाती है, ठीक उसी प्रकार विसर्जन के समय एक पोटली में मां दुर्गा के साथ भी श्रृंगार का सारा सामाना और खाने की चीजे रख दी जाती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि देवलोक तक जाने में उन्हें रास्ते में कोई तकलीफ न हो।
सुहाग से जुड़ा है सिंदूर खेला रस्म का रहस्य
शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन दुर्गा पूजा और दशहरा के अवसर पर बंगाली समुदाय की महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। इसे सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है। इस दिन पंडाल में मौजूद सभी सुहागन महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। यह खास उत्सव मां की विदाई के रूप में मनाया जाता है।
पति की लंबी उम्र और धुनुची नृत्य की परंपरा
सिंदूर खेला के दिन पान के पत्तों से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श करते हुए उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाकर महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इसके बाद मां को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है। यह उत्सव महिलाएं दुर्गा विसर्जन या दशहरा के दिन मनाती हैं। सिंदूर खेला के दिन बंगाली समुदाय में धुनुची नृत्य करने की परंपरा भी है। यह खास तरह का नृत्य मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
क्या है देवी बोरन का धार्मिक महत्व
कहा जाता है कि सबसे पहले लगभग 450 साल पहले बंगाल में दुर्गा विसर्जन से पहले सिंदूर खेला का उत्सव मनाया गया था। इस उत्सव को मनाने के पीछे लोगों की मान्यता थी कि ऐसा करने से मां दुर्गा उनके सुहाग की उम्र लंबी करेंगी। माना जाता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं। इन्हीं 10 दिनों को दुर्गा उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसके बाद 10वें दिन माता पार्वती अपने घर भगवान शिव के पास वापस कैलाश पर्वत पर चली जाती हैं। ससुराल भेजने से पहले मतलब विसर्जन से पहले मां दुर्गा के साथ पोटली में श्रृंगार का सामान और खाने की चीजें रखी जाती हैं। इस प्रथा को देवी बोरन कहा जाता है।