पटना : बिहार में राजनीति ने अब नया रंग ले लिया है। यहां हर कोई ‘बेचारा’, ‘शहीद’ कहलाने को उतावला है। उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी, तेजस्वी यादव—सभी इस श्रेणी में आने के लिए हाथ—पांव चला रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने तो इसमें सारी हदें पार कर दी। कहां—कहां नहीं गए, यहां तक कि एनडीए के मंत्री रहते तेजस्वी और शरद यादव तक से मिल आए। बात कहीं नहीं बनी। अब शहीद ही बन जाएं, इस कारगुजारी में लगे हैं। आइए जानते हैं क्या है उपेन्द्र की कुलबुलाहट का असल राज? इसबीच यह भी खबर है कि वे एनडीए में भी दरवाजा बंद नहीं करना चाहते और दिल्ली में शीघ्र ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलने वाले हैं। ऐसे में चारों तरफ मुंह मारने के बाद वे लौट के….घर को आए, वाली कहावत चरितार्थ कर दें तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं।
बिहार में दोस्त—दुश्मन की नई केमेस्ट्री
नीतीश कुमार के फिर से एनडीए में शामिल हो जाने के बाद से ही उपेंद्र कुशवाहा असहज महसूस करने लगे। उनकी इस कुलबुलाहट को हवा देने के लिए कांग्रेस और राजद की ओर से भी प्रयास किए गए। अब लोकसभा चुनाव नजदीक आते—आते उनकी यह कुलबुलाहट खलबली में तबदील होने लगी है। नतीजा, बिहार की राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी की नई केमिस्ट्री फिर से बननी—बिगड़नी शुरू हो गई। इसके तहत बिहार की राजनीति में विक्टिम साइकोलॉजी का जबरदस्त तड़का लगाने की कोशिश चल रही है। विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने डीएनए के माध्यम से इस मनोविज्ञान का उपयोग कर बिहारी भावना को उभारा और उसका राजनीतिक लाभ लेने में सफल रहे थे।
नीतीश का दांव उन्हीं पर आजमाने की चाहत
अब ‘नीच’ शब्द के माध्यम से इस तकनीक का उपयोग नीतीश कुमार पर उनके पूर्व सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा करना चाहते हैं। इससे जो माहौल बने हैं उसमें उपेन्द्र कुशवाहा से अलग हो चुके जहानाबाद सांसद अरुण कुमार का साथ उन्हें मिल गया है। अरुण कुमार ने बिना लागलपेट कहा है कि उपेंद्र कुशवाहा की जाति को ‘नीच’ कहने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को माफी मांगनी चाहिए। जहानाबाद सांसद ने इसे नीतीश कुमार का अहंकार करार दिया है।
एनडीए और महागठबंधन के बीच लटके उपेंद्र
वहीं राजद और कांग्रेस के नेता उपेन्द्र कुशवाहा की कथित उपेक्षा को लेकर ऐसा माहौल बनाने लगे हैं जिसमें उपेन्द्र कुशवाहा एनडीए छोड़ने पर मजबूर हो जाएं। लेकिन, ऐसा नहीं लगता है कि उपेन्द्र कुशवाहा एनडीए छोड़ने वाले हैं। मीडिया में यह बात जोर-शोर से चली कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उपेन्द्र कुशवाहा को मिलने के लिए समय नहीं दिया। वहीं कुछ दिन पूर्व यह बात भी खूब प्रचारित की गयी थी कि अमित शाह के निमंत्रण को उपेन्द्र कुशवाहा ने दरकिनार कर दिया। जबकि बात यह है कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में व्यस्त होने के कारण दोनों की मुलाकत टलती रही है। वैसे दोनों के बीच टेलीफोन पर बात होती रही है। एनडीए के सूत्रों ने बताया कि एक-दो दिनों में दिल्ली में दोनों के बीच बातचीत होनी तय हुई है।
‘लव’ और ‘कुश’ की खींचतान में फंसा एनडीए
नीतीश कुमार के उस कथित बयान को लेकर उपेन्द्र कुशवाहा की प्रतिक्रिया और उसके बाद समस्त कुशवाहा महासभा द्वारा प्रदर्शन। प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और बीती रात रालोसपा के पाली प्रखंड अध्यक्ष की हत्या के मामले को तूल देकर नीतीश कुमार पर रालोसपा के हमले तेज हो गए हैं।
इस घटनाक्रम को उपेन्द्र कुशवाहा के एनडीए से दूर होने के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन यह सच नहीं है। उपेन्द्र कुशवाहा को जानने वाले बताते हैं कि वे राजद और कांग्रेस के साथ नहीं चल सकते क्योंकि इनकी मानसिकता वहां से मेल नहीं खाती। उधर भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. सीपी ठाकुर ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा का अपना जनाधार है और उनके जाने से एनडीए को बड़ा नुकसान होगा। उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार में पहले से ही सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। साफ है कि कम शब्दों में ही सही, डा.ठाकुर ने भाजपा के रूख को स्पष्ट कर दिया। स्पष्ट है कि उपेन्द्र की निजी नाराजगी बिहार में सत्ता में वाजिब हिस्सेदारी को लेकर है। वे ‘कुश’ समाज के लिए ‘लव’ से वजिब हक चाहते हैंं। भाजपा से उन्हें कोई गुरेज नहीं। ऐसे में एनडीए की एकजुटता तो सभी घटकों की भी जिम्मेदारी बनती है। अब देखना है कि ‘लव’ और ‘कुश’ की खींचतान को एनडीए कैसे और कहां तक झेल पाता है।