न उस डाल, न इस पात… विचार परिवार ने दिखाई ‘सिपाही’ को औकात!

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पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के लिए नामांकन की प्रक्रिया आज यानी 8 अक्टूबर को समाप्त हो रही है। पहले चरण के लिए सभी प्रमुख दलों ने अपने-अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। आज सभी किसी न किसी सूरत में नामांकन कर ही लेंगे।

पहले चरण को लेकर सबसे ज्यादा ज्यादा चर्चे में रहने वाली सीटों में से एक था बक्सर सीट, जहां से सबसे पहले यह बातें सामने आई थी कि वहां से जदयू के सिंबल पर डीजीपी पद से वीआरएस लेने वाले गुप्तेश्वर पांडेय चुनाव लड़ेंगे। लेकिन, जदयू ने उन्हें टिकट नहीं दे सकी। इसके पीछे यह कारण बताए जा रहे हैं कि भाजपा अपनी पारंपरिक सीट होने के कारण किसी भी कीमत पर बक्सर सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी।

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वहीं, जैसे ही जदयू की तरफ से पांडेय को न बोला गया तो वे भाजपा नेताओं से संपर्क साधने लगे और भाजपा के कुछ नेताओं ने उन्हें टिकट का आश्वासन भी दिया।

लेकिन, सूत्रों के मुताबिक़ जैसे ही बक्सर सीट जदयू कार्यकर्ता गुप्तेश्वर पांडेय को देने की चर्चा हुई। इतना सुनते ही भाजपा के कई क़द्दावर नेता अड़ गए और इन नेताओं का कहना था कि किसी भी सूरत में यहां से उम्मीदवार भाजपा कार्यकर्ता ही होगा।

विचार परिवार का दखल

गुप्तेश्वर मामले में सबसे अहम मोड़ तब आया, जब विचार परिवार के लोगों को पता चला कि भाजपा के लोग इस सीट पर गुप्तेश्वर पांडेय को उम्मीदवार बनाने की सोच रहे हैं। इसके बाद विचार परिवार के लोगों ने भाजपा से जुड़े विचार परिवार के लोगों से संपर्क साधा और उन लोगों ने भी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बक्सर सीट को लेकर सभी तथ्यों से अवगत कराया। इतना कुछ होने के बाद विचार परिवार ने जो निर्देश दिया उस निर्देश का पालन किया गया।

जदयू में जाना सबसे बड़ी भूल!

इसके अलावा प्रदेश भाजपा के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा इस चुनाव में यह बिल्कुल भी नहीं दिखाना चाहती है कि जदयू इस बार के चुनाव में बड़े भाई की भूमिका में है और भजोआ जदयू के निर्देशों का पालन कर रही। क्योंकि, गुप्तेश्वर जदयू में शामिल हुए थे ऐसे में अगर भाजपा उनको टिकट देती तो भाजपा कार्यकर्ताओं में एक संदेश जाता कि भाजपा, जदयू के इशारे पर काम कर रही है। लेकिन, काफी माथापच्ची के बाद यह निर्णय लिया गया कि कुछ भी हो जाए अपना जो पुराना कार्यकर्ता है, उसी को टिकट देना है।

हुआ भी यही विचार परिवार का दखल, वरिष्ठ नेताओं का दवाब, पहले से ही कई परंपरागत सीटों की कुर्बानी तथा पार्टी कार्यकर्ताओं के जिद्द के कारण पुराने और भाजपा के पारंपरिक उम्मीदवार को ही टिकट दिया गया। इस तरह अब जदयू से गच्चा खाने के बाद पूर्व डीजीपी भाजपा की तरफ से भी गच्चा खा गए।

मालूम हो कि जदयू में शामिल होने के बाद गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा था कि मैं पार्टी का एक अनुशासित सिपाही हूं, पार्टी जो कहेगी में करूंगा। बता दें कि रिया चक्रवर्ती द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ सवाल उठाए जाने पर उन्होंने रिया की औकात को लेकर सवाल खड़ा कर दिया था।

मान लिए हार!

वहीं सूत्रों ने बताया कि अगर गुप्तेश्वर भाजपा में शामिल होते तो भाजपा उन्हें उम्मीदवार बना सकती थी। लेकिन उन्होंने राजनीतिक अपरिपक्वता के कारण नीतीश को समझने में भूल कर बैठे और उन्हें टिकट से वंचित होना पड़ा।

एक अन्य सूत्र बताते हैं कि 6 अक्टूबर की शाम तक उन्हें भाजपा से सिंबल मिलने की प्रबल संभावना थी। इसको लेकर उन्होंने पूरी तैयारी कर रखी थी। लेकिन हुआ वही जो उन्होंने नहीं सोचा था। हुआ यूं कि धरे रह गए नॉमिनेशन पेपर, टिकट बन गया वॉटर वेपर।

2009 के बाद एक बार फिर राजनीति की पिच पर बोल्ड होने वाले गुप्तेश्वर पांडेय ने फेसबुक पोस्ट के जरिये कहा कि अपने अनेक शुभचिंतकों के फ़ोन से परेशान हूँ। मैं उनकी चिंता और परेशानी भी समझता हूँ। मेरे सेवामुक्त होने के बाद सबको उम्मीद थी कि मैं चुनाव लड़ूँगा लेकिन मैं इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहा। हताश निराश होने की कोई बात नहीं है। धीरज रखें। मेरा जीवन संघर्ष में ही बीता है। मैं जीवन भर जनता की सेवा में रहूँगा।

कृपया धीरज रखें और मुझे फ़ोन नहीं करे। बिहार की जनता को मेरा जीवन समर्पित है। अपनी जन्मभूमि बक्सर की धरती और वहाँ के सभी जाति मज़हब के सभी बड़े-छोटे भाई-बहनों माताओं और नौजवानों को मेरा पैर छू कर प्रणाम! अपना प्यार और आशीर्वाद बनाए रखें !

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