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राम—सीता ने भी किया था छठ, इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग

पटना : चतुर्दिवसीय छठ अनुष्ठान की शुरूआत 11 नवंबर दिन रविवार से हो चुका है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी रविवार को सर्वार्थ सिद्धि योग में नहाय खाय है। नहाय खाय यानी कद्दू—भात प्रथम दिवसीय महापर्व का आरंभ माना जाता है। इसमें व्रती महिलाएं जलाशय में स्नान कर घर में कद्दू भात का भोजन बनाती है व इसी दिन से संकल्पबद्ध होकर महापर्व का उपवास रखती हैं। अतः कार्तिक शुक्ल पंचमी को एक बार भोजन कर (कद्दू-भात) पर्व मनाया जाता है। महिलाएं चार दिवसीय कठोर व्रत पुत्र प्राप्ति, रोग, शोक, भय आदि से मुक्ति परिवारिक सुख समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए पूरे विधि विधान से छठ व्रत का पालन करती हैं। ज्योर्तिविद श्री नीरज मिश्र के अनुसार 12 नवंबर को खरना में व्रती पूरे दिन उपवास कर शाम में भुवन भास्कर को षष्ठी माता की पूजा उपासना कर भोग लगा कर प्रसाद ग्रहण करेंगी। षष्ठी देवी (छठी माता) शक्ति है जो समस्त संसार के छोटे बालकों व शिशुओं की रक्षा करती है। इस महापर्व में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चली आ रही है। एैसी मान्यता है कि भगवान श्री राम ने राज्याभिषेक के बाद सीता जी के साथ यह व्रत किया था। दंपति ने अज्ञातवास के दौरान राजपाट की पुनः प्राप्ति की कामना से संकल्प से यह व्रत किया था। षष्ठी माता एवं सूर्यदेव की कृपा से घर में समस्त वैभव एवं सुख शांति की प्राप्ति होती है। भगवान सूर्य परमात्मा के प्रत्यक्ष स्वरूप हैं। ये आरोग्य के अधिष्ठात्री देवता हैं। वैदिक मान्यताओं के अनुसार नहाय खाय से छठ के पारण सप्तमी तिथि तक उन भक्तों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है जो श्रद्धापूर्वक व्रत उपासना करते हैं। उन्हें किसी भी जन्म में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। खासकर शरीर, मन तथा आत्मा की शुद्धि हो जाती है व सूर्य जैसा तेजस्वी पुत्र प्राप्त करने की कामना की पूर्ती होती है। सर्वप्रथम षष्ठी देवी की पूजा सूर्य ने की थी पुराणों में उल्लेख है कि राजा प्रियंवद के कोई सन्तान नहीं थी। तब मर्हिर्षि कश्यप ने पुत्रोष्टि यज्ञ करवाया। उसके प्रभाव से राजा की पत्नी के एक पुत्र उत्पन्न हुआ परंतु वह मृतावस्था में उत्पन्न हुआ। प्रियवंद पुत्र के वियोग में अत्यंत व्याकुल हुए और प्राण त्यागने को उद्धत हुए उसी समय षष्ठी देवी प्रकट हुई। उन्होंने कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृति छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ, राजन! तुम मेरा पूजन करो, तब राजा ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को पुत्रेच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उनकी पूजा की। उसके प्रभाव से उन्हें पूत्र की प्राप्ति हुई। एैसा माना जाता है कि तब से यह पूजा प्रचलित है।