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नीतीश के सोशल इंजीनियरिंग में फिट बैठे गुप्तेश्वर पांडेय! लड़ सकते हैं लोकसभा उपचुनाव

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से ठीक पहले बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने वीआरएस (VRS) लेने का फैसला किया। गुप्तेश्वर पाण्डेय के वीआरएस को सरकार ने स्वीकार कर लिया है। इसके बाद यह चर्चा तेज हो गई है कि गुप्तेश्वर पांडेय सक्रीय राजनीति में आ सकते हैं।

पूर्व डीजीपी के राजनीति में आने को लेकर यह बातें सामने आ रही है कि वे जदयू के टिकट पर वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। मालूम हो कि वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट वैधनाथ महतो के निधन के बाद से खाली है। हालांकि गुप्तेश्वर पांडेय को लेकर यह भी बातें सामने आ रही है कि राज्यपाल कोटे से उनको एमएलसी बनाया जा सकता है।

वैसे गुप्तेश्वर पांडेय को लेकर यह चर्चा ज्यादा तेज है कि वे बक्सर सदर या शाहपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन, सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जदयू उन्हें वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट के लिए उम्मीदवार बना सकती है। क्योंकि, बिहार की राजनीति में वही जीतता है, जो सोशल इंजीनियरिंग का माहिर खिलाड़ी हो। यहां इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि बिहार की राजनीति के चाणक्य नीतीश कुमार ने गुप्तेश्वर पांडेय से डीजीपी की कुर्सी खाली कराके एक तीर से कई निशान साधे हैं।

नीतीश के सोशल इंजीनियरिंग में फिट बैठे गुप्तेश्वर ‘बाबा’

नीतीश के सोशल इंजीनियरिंग में फिट बैठे गुप्तेश्वर पांडेय इसलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि, नीतीश कुमार को एक वैसा ब्राह्मण चेहरा चाहिए था, जिसे पूरा बिहार जानता हो। ऐसे में नीतीश की इस टेंशन को गुप्तेश्वर पांडेय आसानी से खत्म कर सकते हैं। गुप्तेश्वर पांडे हाल के दिनों में काफी चर्चे में रहे हैं। क्योंकि, गुप्तेश्वर पांडेय ने जिस तरीके से सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने के लिए जो मुहिम छेड़ा उसे पूरे देश ने देखा।

यह बात सर्वविदित है कि उनकी ही पहल पर सुशांत मामले में एफआईआर दर्ज किया गया, जो सीबीआई जांच का आधार बना। एक तरह से संवैधानिक पद पर रहते हुए उन्होंने वैसा सबकुछ किया जो एक दूत कर सकता हो। इसके आलावा पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने नीतीश के हर फैसले के साथ मजबूती से खड़े रहे, चाहे शराबबंदी हो या अन्य प्रशासनिक मामले।

एक तीर से कई निशाने

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक वैधनाथ महतो के निधन के बाद वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट पर भाजपा ने ब्राह्मण बहुल सीट का हवाला देते हुए एक बार फिर सतीश चंद्र दुबे को चुनाव लड़ाना चाह रही थी। लेकिन, नीतीश मोदी लहर को भांपते हुए किसी भी सूरत में सीट नहीं छोड़ना चाहते हैं। इसलिए नीतीश कुमार डीजीपी के राजनीति प्रेम को देखते हुए डीजीपी की कुर्सी खाली करवा ली।

वहीं, अगर पांडेय वाल्मीकिनगर सीट से लोकसभा का उपचुनाव लड़ते हैं तो जदयू को बिहार में एक मजबूत व बना-बनाया ब्राह्मण चेहरा मिल जाएगा। और ऐसे ही चेहरे की तलाश जदयू को है क्योंकि, जानकारी के मुताबिक इसबार आरा, बक्सर, रोहतास व अरवल जिले की कुछ सीटें जो पारंपरिक रूप से भाजपा की है उसपर जदयू अपना दावा ठोक रही है। इस लिहाज से आरा व बक्सर में ब्राह्मण वोटरों को रिझाने के लिए गुप्तेश्वर पांडेय काफी हद तक एक शानदार मोहरा हो सकते हैं।

वहीँ, अगर ऐसा होता है तो यह बातें बिलकुल स्पष्ट हो जाएगी कि जिस भाजपा के सहयोग से गुप्तेश्वर पाण्डेय राजनीतिक महत्वकांक्षा पाले 2009 में नौकरी से इस्तीफ़ा देकर चुनाव लड़ने वाले थे। लेकिन, टिकट नहीं दे पाने के बाद वही भाजपा ने वापिस इनको पुलिस सेवा में बहाल करवाई, अब वही खेल नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ खेलना शुरू कर दिया है।

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